सरकारी आवास उपलब्ध न होने से इन्हें ज्यादा परेशानी
पत्रिका ग्राउंड रिपोर्ट में सामने आया है कि सरकारी आवास उपलब्ध न होने से सबसे ज्यादा परेशानी दो विभागों के अधिकारी-कर्मचारियों को हो रही है। इनमें पहला नाम है स्वास्थ्य और दूसरा पुलिस। क्योंकि इन विभागों के स्टाफ को समय पर पहुंचना तथा नियमित ड्यूटी के अलावा रात्रिकालीन व इमरजेंसी ड्यूटी करनी पड़ती है। ऐसे में कार्य स्थल के नजदीक आवास का होना जरूरी है। खासकर डॉक्टर व पैरामेडिकल स्टाफ। इस आवश्यकता को देखते हुए 4 साल पहले स्वास्थ्य विभाग के तत्कालीन संयुक्त संचालक ने जिला अस्पताल के भ्रमण के दौरान सिविल सर्जन से कहा था कि यदि आप अस्पताल में पर्याप्त व अच्छे डॉक्टर व टेक्नीकल स्टाफ चाहते हैं तो उनकी सुविधा का भी ख्याल रखें और पुराने आवासों को तुड़वाकर बहुमंजिला आवास बनवाएं ताकि कम जगह में ज्यादा लोगों को सुविधा का लाभ मिल सके। वर्तमान में जिला अस्पताल परिसर में जो सरकारी आवास हैं उनमें से दो तीन ही रहने लायक स्थिति में हैं। शेष आवास बेहद जीणशीर्ण हालत में पहुंच चुके हैं। यही कारण है कि कई डॉक्टर्स व स्टाफ आवास खाली कर दूसरे भवन में शिफ्ट हो चुके हैं।
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आवास सरकारी फिर निजी खर्च क्यों करें
सरकारी आवासों की जर्जर हालत में पहुंचने की एक वजह यह भी सामने आई है कि इनमें रहने वाले अधिकारी कर्मचारी इनको दुरुस्त रखने के लिए अपनी जेब से कुछ भी खर्च नहीं करना चाहते। क्योंकि उनका कहना है कि यह आवास सरकारी हैं। यहां हमें कब तक रहना है यह निश्चित नहीं है। ऐसे में वे इनके रख रखाव में बड़ी राशि खर्च क्यों करें। जबकि शासन इसके लिए अलग से बजट उपलब्ध कराता है। ऐसे अधिकारियों की संख्या न के बराबर है जिन्हें वेतन काफी मिलता है लेकिन वे सरकारी आवास में रहने के बावजूद उसके मेंटनेंस पर निजी खर्च करते हैं।
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मैं जिस सरकारी आवास में कई सालों से रह रहा था। उसकी हालत बहुत खराब हो चुकी थी। कई बार मेंटनेंस के लिए संबंधित विभाग को पत्र लिखा। लेकिन कुछ भी नहीं हुआ। कई बार छत से प्लास्टर टूटकर भी गिर चुका है। जब लगने लगा कि अब तो यहां रहना खतरे से खाली नहीं है तब जाकर मुझे इस आवास को छोड़कर दूसरे में जाना पड़ा है। इमरजेंसी ड्यूटी करने वाले स्टाफ की ओर ध्यान देना चाहिए।
डॉ बीएल कुशवाह, सर्जन
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यह बोले जिम्म्ेदार
सरकारी आवासों के मेंटनेंस की जिम्मेदारी पीडब्ल्यूडी पर है तो सही लेकिन काम बजट अनुसार ही हो पाएगा। जो भवन अत्यंत जर्जर अवस्था में हैं, उन्हें ठीक नहीं किया जा सकता। विभाग प्रमुख अपने यहां की समस्याएं बताते हैं। प्रस्ताव शासन को भेज दिया जाता है। वहां से जो आदेश और बजट उपलब्ध कराया जाता है, उसके अनुसार ही काम किया जा रहा है। जहां तक नए आवासों के निर्माण का सवाल है तो इसके लिए शासन के पास बजट नहीं है।
महेश गुप्ता, एसडीओ पीडब्ल्यूडी