आखिर कब तक भोगेंगे पलायन !
जिस गुना जिले से कामगाार पलायन के लिए मजबूर हुए, वहां से दो कद्दावर राजनेताओं का ताल्लुक है।
Tippni Rajeev Jain on elopement and Guna incident
अहमदाबाद की एक फैक्ट्री के परिसर में एक ही परिवार के नौ लोगों की मौत से एक बार फिर रोजगार और पलायन का मुद्दा ज्वलंत हो गया। वैसे तो इसे हादसा बताया जा रहा है मगर यह प्रवासी कामगारों की दुर्दशा का उजागर करता है। मृतक मध्यप्रदेश के गुना जिले के थे और एक कमरे में 12 लोग रह रहे थे।
जिस गुना जिले से कामगाार पलायन के लिए मजबूर हुए, वहां से दो कद्दावर राजनेताओं का ताल्लुक है। ज्योतिरादित्य सिंधिया और दिग्विजय सिंह। यहीं एनएफएल और गेल जैसी बड़ी सरकारी कंपनियां भी हैं, लेकिन स्थानीय लोगों को रोजगार नहीं मिल पाया। करीब दो दशकों से यहां से काम की तलाश में लोग गुजरात और दिल्ली की ओर कूच करते आ रहे हैं। दावे भले ही स्थानीय स्तर पर रोजगार के किए जाते हों मगर ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं। अव्वल तो कोई योजना है ही नहीं और है भी तो जमीन पर कुछ दिखता ही नहीं। अफसोसजनक तो यह है कि सरकार के पास इलाके के अनुसार कुशल—अकुशल श्रमिकों का रिकॉर्ड भी मौजूद नहीं है। सरकारों को ऐसा तंत्र विकसित करना चाहिए, जिससे मजदूरों को जिले में ही काम मिल सके। कहने को मनरेगा में जरूरतमंद लोगों को 100 दिन रोजगार दिया जाता है, लेकिन इसकी हकीकत किसी से छिपी नहीं है। इस योजना में बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार का दीमक लग गया है। जो काम मजदूरों से हाथों से होने चाहिए, वे सीधे भारी-भरकम मशीनों से कराकर अपने-अपने लोगों के जॉबकार्ड में एंट्री कराकर या फर्जी मस्टररोल में भरे जा
रहे हैं।
सरकारें मौत के बाद परिजनों को आर्थिक सहायता देकर अपना दामन बचा लेती हैं पर यह नाकाफी है। जनप्रतिनिधियोंं और अफसरों को चाहिए कि वे गरीबों का दर्द समझें। लोग पलायन न करें, इसके लिए ठोस कार्ययोजना बनाएं।
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