संजीव ने यह पत्र लवासा के पिछले साल दिसम्बर में प्रकाशित उस लेख के जवाब में लिखा है जिसमें उन्होंने ईमानदारी से काम करने में होने वाली मुश्किलों एवं कठिनाईयों के बारे में लिखा था। अशोक लवासा 1980 बैच के हरियाणा कैडर के आइएएस हैं तथा वर्तमान में केन्द्रीय चुनाव आयुक्त हैं। लवासा पिछले साल लोकसभा चुनाव के समय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चुनाव आचार संहिता के कथित उल्लंघन के मामलों में बाकी चुनाव आयुक्तों के साथ मतभेद को लेकर चर्चा में आए थे।
इसके बाद प्रवर्तन निदेशालय तथा आयकर विभाग ने उनके पुत्र की कम्पनी में मारीशस से आए कथित निवेश, पत्नी के दर्जन भर कम्पनियों में निदेशक रहते हुए आयकर भुगतान की कथित अनियमितताओं तथा गुरुग्राम के 1.75 करोड़ के फ्लैट में स्टाम्प ड्यूटी के भुगतान को लेकर जांच शुरू की थी। इसी के बाद लवासा का उक्त लेख प्रकाशित हुआ था। यह संभवत: पहला अवसर है जब किसी सेवारत चुनाव आयुक्त ने इस प्रकार का लेख लिखा हो।
संजीव 2002 बैच के भारतीय वन सेवा के अधिकारी हैं तथा वर्तमान में उत्तराखण्ड में मुख्य वन संरक्षक के पद पर तैनात हैं। दिल्ली सरकार ने फरवरी 2015 में उनको प्रतिनियुक्ति पर लाने के लिये केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से अनुरोध किया था। उस समय लवासा इसी मंत्रालय में सचिव थे।
पत्र में संजीव ने किए यह खुलासे
संजीव चतुर्वेदी ने अपने पत्र में लवासा के केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय का सचिव रहते हुए, उनके दिल्ली सरकार में नियुक्ति किए जाने के मामले में लवासा की कार्य प्रणाली पर कोर्ट की तीखी टिप्पणियों का जिक्र करते हुए लिखा कि उनके द्वारा न केवल मामले को जान बूझकर लटकाया गया बल्कि प्रधानमंत्री को प्रदत्त शक्तियों का अवैधानिक प्रयोग करके आदेश जारी किए गए, जिन्हें न्यायालय को निप्रभावी करना पड़ा। इसी तरह मई 2015 से जून 2016 के बीच में चतुर्वेदी के द्वारा दायर की गई याचिकाओं पर कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए यह कहा था कि इन मामलों में न्यायालय के स्पष्ट आदेशों की अनुपालना नहीं की जा रही है।
अपै्रल 2016 के अपने आदेश में न्यायालय ने लवासा को नियमों के दायरे में रहकर काम करने का आदेश दिया। लवासा के सचिव रहते चतुर्वेदी के एक और मामले में कोर्ट ने अपने आदेश में रविन्द्रनाथ टैगोर की एक प्रसिद्ध कविता का उल्लेख करते हुए यह नसीहत दी थी कि केन्द्र सरकार द्वारा ऐसा कुछ न किया जाए कि ईमानदारी दंडित हो तथा भ्रष्टाचार पुरस्कृत हो।
संजीव ने अपने पत्र में लवासा को यह स्पष्ट करने को कहा है कि पूरे सेवाकाल में कब ईमानदारी से काम करने के कारण उनको प्रताडऩा या मुश्किलों का सामना करना पड़ा।