scriptमिजोरम: चकमा जन जाजि को नहीं मिल रहा था आरक्षण का फायदा,कोर्ट ने इंजीनियरिंग और मेडिकल शिक्षण संस्थानों के प्रवेश नियम खारिज किए | admission rules of engineering-medical education institutes rejected | Patrika News
गुवाहाटी

मिजोरम: चकमा जन जाजि को नहीं मिल रहा था आरक्षण का फायदा,कोर्ट ने इंजीनियरिंग और मेडिकल शिक्षण संस्थानों के प्रवेश नियम खारिज किए

गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने मिजोरम की चकमा जनजाति के पक्ष में दिया फैसला…
 

गुवाहाटीFeb 22, 2019 / 09:51 pm

Prateek

file photo

file photo

(आइजोल,सुवालाल जांगू): गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने आरक्षण के मामले में मिजोरम के चकमाओं के पक्ष फैसला सुनाया है। मिजोरम राज्य तकनीकी प्रवेश परीक्षा (एमएसटीईई) नियम 2016 में पिछले दरवाजे से बदलाव कर दिया था, जिससे राज्य के चकमा समुदाय के विद्यार्थी राज्य इंजीनियरिंग और मेडिकल शिक्षण संस्थानों में प्रवेश पाने से वंचित हो गए। इसके खिलाफ राज्य के चकमा समुदाय के हजारों लोगों ने आइजोल में विरोध प्रदर्शन किया। राज्यपाल को भी इस भेदभाव के बारे में ज्ञापन दिया गया था।

 

नियमों में बदलाव करने की वजह राज्य स्तर की तकनीकी शिक्षा और प्रतियोगी परीक्षाओं में चकमा समुदाय को मिजो समुदाय के समान आरक्षण नहीं मिल रहा था। राज्य सरकार ने पिछले दरवाजे से चकमा समुदाय के प्रत्याशियों को मिजो जनजाति (प्रथम श्रेणी) से बाहर कर उन्हें राज्य में गैर-मिजो जनजाति (द्वितीय श्रेणी) में रख दिया था। जिससे चकमा समुदाय आरक्षण से वंचित हो गया। राज्य में इंजीनियरिंग और मेडिकल शिक्षण पाठ्यक्रमों में 2017-2018 के दौरान कई चकमा प्रत्याशी प्रवेश पाने से वांचित हो गए थे। आरक्षण के नियमों में बदलाव करने से राज्य में द्वितीय और तीसरी श्रेणी में आरक्षण मात्र 5 फ़ीसदी रह गया था।

 

मिजोरम में आरक्षण की तीन श्रेणियां

राज्य में आरक्षण के तीन श्रेणी है:- प्रथम श्रेणी में जो–एथनिक ग्रुप यानी मिजो जनजाति के समुदाय शामिल है। द्वितीय श्रेणी में गैर–जो यानी गैर–मिजो जनजाति समुदायों को रखा गया है। 2015 में चकमाओं को इसी द्वितीय श्रेणी में रखा गया था। और तीसरी श्रेणी में गैर– जनजाति समुदाय के लोग आते है। राज्य में आरक्षण की ओबीसी और एससी श्रेणियां नहीं है। प्रथम श्रेणी में राज्य के सभी जनजातीय समुदायों को एक समान माना जाता है और राज्य में 95 फीसदी आरक्षण इसी प्रथम श्रेणी को दिया गया है। राज्य में इंजीनियरिंग और मेडिकल शिक्षण पाठ्यक्रमों की 95 फीसदी सीटें प्रथम श्रेणी में आती है। मिजोरम चकमा छात्र संघ-एमसीएसयू ने भेदभाव के खिलाफ गुवाहाटी उच्च न्यायाल में एक जनहित याचिका दायर की थी। गुवाहाटी न्यायालय ने जनहित याचिका पर निर्णय देते हुए कहा कि राज्य तकनीकी शिक्षण प्रवेश परीक्षा के आरक्षण संबंधित नियमों में किये गए बदलाव असंवैधानिक है। राज्य में 2016 नियमों में बदलाव एक विशेष समुदाय को फायदा देने के लिए दूसरे समुदाय के हितों की बलि दी गई।

 

चकमा राज्य का सबसे बड़ा धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय

राज्य में चकामाओं को अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिला हुआ। राज्य में चकमा समुदाय की आबादी लगभग 80 हजार है। अधिकतर चकमा आबादी राज्य के दक्षिणी जिला लॉंगतलाई में संविधान की 6 वीं अनुसूची के अंतर्गत चकमा स्वायत्त जिला परिषद क्षेत्र में रहती है। जिसकी सीमा बांग्लादेश से लगती है। राज्य की 40 विधानसभा क्षेत्रों में से सिर्फ दो विधानसभा क्षेत्र चकमाओं के प्रभाव में है। मौजूदा विधानसभा में इस समुदाय के दो एमएलए है। जिनमें भाजपा और कांग्रेस के एक—एक एमएलए है। पूर्व कांग्रेसी एमएलए बीडी चकमा ने 2018 के राज्य विधानसभा चुनाव में भाजपा को पहली बार जीत दिलाई है। चकमा बौद्ध धर्म से तालुक रखते है जो मिजोरम का सबसे बड़ा धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय है जो राज्य की कुल आबादी के 9 फीसदी के करीब है।

 

राज्य में गोरखा समुदाय सबसे बड़ा हिन्दू अल्पसंख्यक समुदाय है जिसको अनुसूची जनजाति का दर्जा मिला हुआ। नेपाली हिन्दू समुदाय राज्य में ओबीसी में आरक्षण की मांग कर रहे। ब्रू समुदाय राज्य दूसरा बड़ा धार्मिक अल्पसंखयक समुदाय है जिसकी आबादी राज्य में लगभग 6 फ़ीसदी है। इस समुदाय के लगभग 30 हजार लोग 1997-98 में राज्य में हुई जनजातीय हिंसा की वजह से त्रिपुरा में भाग गए। जो वहां पिछले 20 सालों से शरणार्थी शिविरों में रह रहे है। उनकी घर वापसी नहीं हो पा रही है। मिजोरम में चकमाओं को बांग्लादेश के शरणार्थी मान कर राजनीतिक मुद्दा बनाया जाता है। मिजो संगठनों ने राज्य में 30 हजार बांग्लादेशी चकमाओं की उपस्थिति होने को मान रहे है। राज्य के चकमा और ब्रू समुदाय नागरिकता संशोधन बिल 2016 का समर्थन कर रहे।

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो