सबसे महत्वपूर्ण है इनर लाइन परमिट
विशेषज्ञों से बात करने के बाद मिली जानकारी के अनुसार त्रिपुरा और मेघालय को छोडकर नागालैंड, मिज़ोरम, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम और असम भारतीय संविधान के अनुच्छेद 371 के अंतर्गत क्षेत्रीय जनजातियों के प्रतिनिधित्व के मामलों में स्वायत्ता रखते है। जिनमें सबसे महत्वपूर्ण इनर लाइन परमिट व्यवस्था का लागू करना।
क्या है इनर लाइन परमिट
पूर्वोत्तर के राज्यों में मिज़ोरम, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश को इनर लाइन परमिट व्यवस्था की शक्तियां प्राप्त हैं। जिसकी वजह से इन राज्यों में देश के नागरिकों को प्रवेश करने के लिए न केवल इनर लाइन परमिट लेना पड़ता बल्कि इन राज्यों में बाहरी नागरिक स्थायी निवासी नहीं हो सकता हैं। मतलब इन राज्यों में जमीन और संसाधन का स्थानांतरण बाहरी नागरिक को नहीं हैं। जैसे जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 और 35-ए के अंतर्गत कोई बाहरी व्यक्ति स्थायी निवासी नहीं हो सकता था। राज्य में जमीन खरीद नहीं सकता और स्थायी निवासी नहीं हो सकता था। पूर्वोत्तर के इन तीन राज्यों के लोगों को इनर लाइन परमिट प्रणाली को खोने का अब डर लगने लगा हैं।
मोदी की इस नीति की वजह से लग रहा डर
नागालैंड में इनर लाइन परमिट को लेकर अभी हाल ही में सर्वोच्चय न्यायालय में एक जनहित याचिका लगाई गई थी। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने इस जनहित याचिका को खारिज कर दिया। क्षेत्र के जनजातीय समुदायों खासकर नागालैंड, मिज़ोरम और अरुणाचल प्रदेश के नेताओं को इस बात का डर है कि अगर न्यायालय हमारे साथ हो सकता हैं लेकिन संसद में बीजेपी का भारी बहुमत होने की वजह से अनुच्छेद 371 को खत्म करना आसान हो गया हैं। क्षेत्र के जनजातीय समुदायों खासकर ईसाई बहुल मिज़ोरम, मेघालय और नागालैंड के लोगों को मोदी सरकार के एक भाषा, एक राष्ट्र, एक संस्कृति, एक राष्ट्र एक चुनाव जैसे नारे से चिंता होने लगी हैं।
अनुच्छेद 371-ए में और विशेष अधिकार है शामिल
सबसे पहले अनुच्छेद 371-ए के अंतर्गत नागालैंड राज्य को 1949 और 1963 में तीन विशेष अधिकार दिए गए जिनमें
पहला: भारतीय संसद का कोई कानून नागा लोगों की सांस्कृतिक और धार्मिक मामलों में लागू नहीं होगा
दूसरा: नागा लोगों के प्रथागत क़ानूनों और परम्पराओं को लेकर भारतीय संसद का कानून और सर्वोच्च्य न्यायालया का कोई निर्णय लागू नहीं होगा
तीसरा: नागालैंड में जमीन और संसाधन किसी गैर नागा को स्थांतरित नहीं किया जा सकेगा।
अनुच्छेद 371-बी के अंतर्गत 1949 में असम को राष्ट्रपति की अनुमति और राज्य विधानसभा के अनुमोदन से राज्य विधानसभा में जनजातीय क्षेत्रों के प्रतिनिधित्व के लिए 6वीं अनुसूची के अंतर्गत आरक्षित किया गया है। अनुच्छेद 371-सी के अंतर्गत मणिपुर में राष्ट्रपति की अनुमति से 1949 और 1972 में राज्य की विधानसभा में हिल क्षेत्रों के जनजातीय समुदायों के आरक्षण का प्रावधान किया गया हैं।
अनुच्छेद 371—एफ के अंतर्गत सिक्किम को भारतीय संघ में मिलाया गया और 1974 के समय सिक्किम जन प्रतिनिधित्व सदन की शक्तियों को सिक्किम विधानसभा की शक्तियों में बदला गया। सिक्किम के तीन प्रमुख स्थानीय समुदायों का जनसंख्यात्मक विधानसभा में प्रतिनिधित्व बनाए रखने की शक्तियां भारतीय संसद के पास हैं। अनुच्छेद 371—जी के अंतर्गत 1949 और 1986 में मिज़ोरम राज्य को नागालैंड राज्य की तरह ही शक्तिया मिली हुई हैं।
अलावा पूर्वोत्तर के असम, त्रिपुरा, मेघालय और मिज़ोरम के कुछ क्षेत्र भारतीय संविधान की अनुसूची 6वीं के अंतगर्त स्वायता जिला परिषद के अधीन प्रशासित होते है जो राज्य विधानसभा के अंतर्गत नहीं आते हैं बल्कि सीधे ही भारतीय संसद के अंतर्गत शक्तियां प्राप्त हैं।
आसानी से हो सकता है अनुच्छेद 371 में संशोधन
अनुच्छेद 371 को आसानी से संशोधित किया जा सकता हैं। इसके लिए न तो संबंधित राज्य की विधानसभा की अनुमति की जरूरत हैं और न ही संसद में 2/3 बहुमत की। हालांकि 6वीं अनुसूची में संशोधन करने के लिए संसद में 2/3 बहुमत की जरूरत होती हैं क्योंकि अनुसूची में किसी प्रकार का सुधार संवैधानिक संशोधन कहलाता हैं।