गुवाहाटी

डिटेंशन कैंप में भेजे जाने के बाद हुई मौत, परिजनों ने किया शव उठाने से मना, रख दी बड़ी मांग

Assam Detention Camps: वृद्ध व्यक्ति की मौत के बाद बवाल मच गया, (Assam NRC) परिजनों ने शव उठाने (Assam NRC Final List) से मना कर दिया है उनकी मांग है कि…

गुवाहाटीOct 15, 2019 / 05:16 pm

Prateek

डिटेंशन कैंप में भेजे जाने के बाद हुई मौत, परिजनों ने किया शव उठाने से मना, रख दी बड़ी मांग

(गुवाहाटी,राजीव कुमार): असम के एक विदेशी न्यायाधिकरण (Foreign Tribunal) द्धारा विदेशी घोषित एक व्यक्ति की बीते दिनों डिटेंशन कैंप में भेजे जाने के बाद मौत हो गई। गुस्साएं परिजनों ने शव उठाने से मना कर दिया है। उन्होंने कई मांगें रखते हुए कहा है कि अगर उनकी बात नहीं मानी गई तो शव को स्वीकार नहीं किया जाएगा।


मौत के बाद मचा बवाल…

65 वर्षीय दुलाल पाल को तेजपुर स्थित विदेशी न्यायाधिकरण ने वर्ष 2017 में विदेशी करार दिया था। इसके बाद उन्हें डिटेंशन कैंप भेजा गया। वह मानसिक रोगी थे। डिटेंशन कैंप भेजने के बाद कुछ दिनों पहले उनकी तबीयत बिगड़ गई। इसके बाद उन्हें गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती कराया गया। इलाज के दौरान उनका देहांत हो गया। पाल की मौत के बाद बवाल मच गया। घटना के विरोध में आलसिंग में बंगाली समुदाय के लोगों और संगठनों ने सड़क जाम किया।

 

यह है परिजनों की मांग…

परिजनों ने पाल का शव उठाने से मना कर दिया। पाल के बड़े बेटे आशीष ने कहा कि वह अपने पिता के शव को तब तक स्वीकार नहीं करेगा जब तक सरकार अपने गलती को सुधार नहीं देती। सरकार को उन्हें भारतीय घोषित करना होगा। उन्हें बांग्लादेशी करार देकर डिटेंशन भेजा गया था। अब वे मारे जा चुके हैं तब सरकार हमें उनका शव देने के लिए दवाब क्यों बना रही है। मेरे पिता की मौत एक बांग्लादेशी के रुप में हुई है इसलिए उनका शव बांग्लादेश भेजा जाना चाहिए।

 

इंसाफ की लड़ाई में बेचनी पड़ी जमीन…

आशीष ने बताया कि मेरे पिता के पास 1960 के जमीन के कागजात हैं। लेकिन फिर भी उन्हें बांग्लादेशी करार दिया गया। अब अंतिम संस्कार के लिए भी उनका शव बांग्लादेश भेजा जाए। पाल के परिवार ने विदेशी न्यायाधिकरण में कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए अपनी जमीन का एक हिस्सा बेच दिया था। आशीष कहता है कि हम गरीब हैं। फिर भी पिता के मामले को लड़ने के लिए हमने डेढ़ लाख रुपए खर्च किए हैं। वे मानसिक बीमारी से ग्रस्त थे। बाद में उन्हें डायबिटीज हो गई। हम उन्हें डिटेंशन कैंप से बाहर निकालने के लिए हरसंभव प्रयास कर रहे थे। बता दें कि वर्ष 2011 से अब तक छह डिटेंशन कैंपों में रहने वाले 26 लोग मारे जा चुके हैं।


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