बंद को विफल करने के लिए सरकार ने किए थे प्रयास
भाजपा गठबंधन सरकार ने बंद को विफल करने के लिए अनेक कदम उठाए थे। व्यापारियों को ट्रेड लाइसेंस रद्द करने की धमकी दी गई। कर्मचारियों को अनुपस्थित रहने पर वेतन काटने और अनुशासनात्मक कार्रवाई की धमकी दी गई। यहां तक कि बंद को विफल करने के लिए सुप्रीम कोर्ट और गौहाटी हाईकोर्ट के आदेश का डर दिखाया गया। इन सबको अनदेखी करते हुए राज्य में संपूर्ण बंद हुआ। अनेक स्थान पर रेल रोकी गई। बसों को नुकसान पहुंचाया गया। सड़कों पर टायर जलाकर विरोध किया गया।
बंद को मिला आशातीत समर्थन
बंद के मुख्य आयोजक कृषक मुक्ति संग्राम समिति के सलाहकार अखिल गोगोई ने कहा कि हमने भी नहीं सोचा था कि बंद इतना सफल होगा। बंद के सफल होने से यह बात साफ हो गई कि राज्य के सभी लोग विवादित प्रस्तावित विधेयक के खिलाफ है। अगप के अध्यक्ष तथा सरकार में मंत्री अतुल बोरा ने कहा कि इस विधेयक को पारित करने से राज्य में जो स्थिति उत्पन्न होगी उसके लिए केंद्र सरकार पूरी तरह जिम्मेदार होगी। केंद्र को यह स्पष्ट करना होगा कि वह असम को विदेशियों का बनाना चाहती है या स्वदेशियों का।
सरकार के लिए पैदा हो सकती है मुश्किलें
बोरा ने आगे कहा कि असम समझौते को मानना है, तो इस विवादित विधेयक को डस्टबिन में फेंकना होगा। असम समझौता हमारे लिए कुरान, गीता और बाइबल की तरह पवित्र है। स्वदेशियों के अधिकारों को हनन करने नहीं दिया जाएगा। प्रस्तावित विधेयक के पक्ष में जो हैं और असम समझौते के खिलाफ हैं उन्हें उखाड़ फेंकने की जरुरत है। असम में जिस तरह प्रस्तावित विधेयक के खिलाफ माहौल बना है वह भाजपा के लिए लोकसभा चुनाव में नुकसानदायक साबित हो सकता है।