विशेषज्ञों की टीम ने लिए नमूने
इस तीन-सदस्य शोध टीम में सिंगापुर से इयान मेनदेनहाल, पायलट दोविह और बेंगलुरु स्थित राष्ट्रीय जीवविज्ञान केंद्र के उमा रामाकृष्णन शामिल हैं। पीएलओए उपेक्षित ऊष्णकटबंधीय बीमारी नमक शोध जर्नल में प्रकाशित शोध पत्र में बताया गया कि कुछ चमगादड़ों के ब्लड-सीरम के नमूनों के अध्ययन से पता चला कि चमगादड़ों के ब्लड-सीरम में फाइलोवाइरस समूह मौजूद हैं जो मानव और अन्य जानवरों में पाये जाने वाले एंटिबोडिज़ के प्रतिसक्रिय हैं।
वायरस के फैलने की संभावना
पूर्वोत्तर राज्यों खासकर नागालैंड में जनजाति के लोगों भोजन और परंपरागत दवाइयों के बनाने में कई पीढिय़ों से चमगादड़ों का शिकार और फ़ार्मिंग करते आ रहे हैं। चमगादड़ के शिकारियों, पालकों और फार्मिंग हाउस में पायी जाने वाली चमगादड़ों में फाइलोवाइरस जैसे इबोला वाइरस, मार्बर्ग वायरस और डाइनवाइरस का पनपने कि संभावना हो सकती हैं। मिमी गांव के 85 लोगों के लिये गये ब्लड सीरम के नमूनों में से 5 में ऐसे एंटीबोडीज की मौजूदगी मिली हैं जो फाइलोवाइरस के खिलाफ प्रतिरोधक प्रतिक्रिया करने के प्रमाण मिले हैं।
चीन में भी है ऐसे चमगादड़
हालांकि नागालैंड से 800 किलोमीटर दूर चीन में जिस चमगादड़ प्रजाति में फाइलोवाइरस में एंटीबोडीज का मौजूदगी पायी गयी है, उसी चमगादड़ की प्रजाति नागालैंड में भी पाली जाती हैं। चमगादड़ शिकारी या पालन करने वाले लोग चमगादड़ की कुछ परजातियों के लार, रक्त और बीट से संपर्क में आते हैं ऐसे में इनमें इबोला जैसे वायरस का संक्रमण होने की संभावना हो सकती हैं। इस अध्ययन ने ऐसे विशेष और संभावित क्षेत्रों में भविष्य में बीमारी के संक्रमण होने को रोकने के लिए चमगादड़ों पर समुदाय-आधारित बहतरीन निगरानी रखने कि जरूरत हैं। इस शोध अध्ययन ने अपने निष्कर्ष में लिखा हैं कि पूर्वोत्तर और म्यांमार में चमगादड़ों में मौजूद फाइलोवाइरस पथोजेनिक या लक्षणीय प्रकार का अध्ययन किया जा रहा हैं। जितना ज्यादा चमगादड़ों के साथ लोगों का संपर्क उतनी ही ज्यादा फाइलोवाइरस के संक्रमण की संभावना रहती हैं। धीरे-धीरे चमगादड़ों और इंसानों की आवासीय आबादी एक-दूसरे के नजदीक आ रही हैं। इसके अलावा मवेशी या जंगली जानवर और चमगादड़ों के बीच भी संपर्क बढ़ रहा हैं।
हांगकांग और चीन में फैला था वायरस
1999 में हाँगकाँग और चीन के गुआंगदोंग प्रांत में सार्स कोरोनावाइरस और मलेशिया में चमगादड़ों के निपाह वाइरस का संक्रमण मवेशी या पालतू जानवरों के माध्यम से इंसानों में हुआ था। हालांकि पूर्वोत्तर का पारिस्थितिकीय मौसम जैसे ऊष्णकटिबंधीय जलवायु परिस्थितियां फाइलोवाइरस के संक्रमण को मानव और जानवरों में पनपने में बाधक बनी हुयी हैं। लेकिन बदले जलवायु के चलते फाइलोवाइरस का मानव और जानवरों में संक्रमण होने की संभावना बढ़ जाती हैं। इबोला वाइरस के चपेट में आने से 50 फीसदी मामलों में इंसानी मरीजों की मौत हो जाती है, इसलिये इबोला वाइरस का संक्रमण को बहुत ही खतरनाक माना जाता हैं और अभी तक इसके खिलाफ कोई टीका या दवा नही बन पायी है।