विपक्ष के नेता ने एसकेएम की आलोचना करते हुये कहा कि इसके अध्यक्ष पीएस गोले को मुख्यमंत्री बनाने के निर्णय को असंवैधानिक बताया। सदन में पवन चमलिंग के इस बयान के बाद विधानसभा में सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच वाकयुद्ध शुरू हो गया। शोर-शराबे के बीच विपक्ष ने सदन की कार्यवाही का बहिष्कार करते हुये बाहर आ गया। बाद में मीडिया से बात करते हुये मुख्यमंत्री पीएस गोले ने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री जनता के जनादेश को स्वीकार नहीं किया हैं और एसडीएफ़ रचनात्मक विपक्ष की भूमिका नहीं निभा रहा हैं। बाद में, एसडीएफ़ के प्रवक्ता भीम दहल ने कहा कि पार्टी के 15 एमएलए विधानसभा के सभी अधिवेशनों का बहिष्कार करते रहेंगे जब तक पीएस गोले मुख्यमंत्री बने रहते हैं।
वहीं मंत्री अरुण उप्रेती ने बहिष्कार करने के विपक्ष के निर्णय कि आलोचना करते हुये कहा कि पहले ही दिन विधानसभा के अधिवेशन का बहिष्कार करना अनुचित है जब एक अनुसूचित जाति समुदाय के एमएलए को विधानसभा का अध्यक्ष चुना गया। इसी बीच विपक्ष के नेता पवन चमलिंग ने मीडिया से बात करते हुये, जयललिता के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का हवाला देते हुये कहा कि पीएस गोले मुख्यमंत्री बनने का अधिकार नहीं रखते हैं। कड़ी प्रतिक्रिया देते हुये एसकेएम के अध्यक्ष और सीएम ने विपक्ष के द्वारा सदन की गैलरी से नारे लगाने की आलोचना की और इस प्रकार की गतिविधि को गरिमाहीन और लोकतान्त्रिक मूल्यों के खिलाफ बताया। पीएस गोले ने सदन में विपक्ष के इस प्रकार के व्यवहार को आलोकतांत्रिक और निंदनीय बताया। उन्होने आगे कहा कि सदन के अध्यक्ष ऐसे कृत्यों के खिलाफ उचित और आवश्यक कार्रवाई करेंगे।
मुख्यमंत्री पीएस गोले सिक्किम विधानसभा के सदस्य नहीं हैं। पीएस गोले भष्ट्राचार निरोधक कानून के अंतर्गत सज़ायाफ़्ता होने की वजह से जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8 के तहत विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ सके थे। जन प्रतिनिधित्व कानून के अंतर्गत कोई व्यक्ति भष्ट्राचार के मामले में सजा पूरी होने के बाद से 6 साल तक चुनाव नहीं लड़ सकता हैं। वैसे पीएस गोले ने 10 अगस्त 2018 को भष्ट्राचार के एक मामले में एक साल की सजा पूरी कर रिहा हुये थे। फिर भी राज्यपाल गंगा प्रसाद ने उन्हें मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी।
पीएस गोले ने 11 मंत्रियों के साथ सोमवार को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। 17 एमएलए में से 11 को मंत्री बनाया गया हैं। राज्य में इस बार 15 सदस्यीय एसडीएफ़ को 25 साल के बाद विपक्ष में बैठना पड़ा हैं। राज्य में विधानसभा की कुल सदस्य संख्या 32 हैं।