कोंगथांग कोऑपरेटिव सोसाइटी के अध्यक्ष रोथेल खोंगसिट ने कहा कि इस गांव के 650 लोगों के लिए अलग-अलग सुर बनाया हुआ है। इन सुरों (Intonation ) को उनकी माताओं ने तैयार किया है। खोंगसिट ने आगे बताया कि यह प्रथा कब शुरु हुई इसका कोई रिकार्ड नहीं मिलता। हमें तो यही बताया गया है कि जब से गांव का गठन हुआ तब से ही यह प्रथा चली आ रही है। जैसे ही एक मां अपने बच्चे को जन्म देती है तो वह उसके लिए एक अनूठा सुर तैयार करती है। बच्चा जब तक बड़ा नहीं होता तब तक वह उसे पुकारने के लिए इसका इस्तेमाल करती है। हां,बच्चों को एक नाम जरुर दिया जाता है पर अनूठे सूर को वरीयता मिलती है।
अति प्राचीन समय से इस गांव की माताएं अपने बच्चों के लिए अनूठा सुर कंपोज करती है जिस स्थानीय भाषा में जिंगरवई आइयावेबेई कहा जाता है। यह गांव ईस्ट खासी हिल्स जिले के सोहरा जाने के दौरान खाट-अर-शोनंग इलाके में पड़ता है। इसमें 125 घर हैं और इसकी मेरे लिए भी एक है। इस सोसाइटी का गठन इस अनूठी प्रथा के प्रोत्साहन और संरक्षण के लिए किया गया है। साथ ही गांव को एक पर्यटन स्थल के रुप में तब्दील करने के लिए किया गया है। यह प्रथा जहां हर मां अपने बच्चे के लिए एक सुर देना सुनिश्चित करती है, आज भी चली आ रही है।
खोंगसिट ने आगे कहा कि हमारे गांव में हम किसी को बुलाते हैं तो साधारणातया नाम का इस्तेमाल नहीं करते बल्कि मां द्वारा उसे बुलाए जानेवाले सुर के जरिए बुलाते हैं। गांव का प्रत्येक व्यक्ति इस बात से वाकिफ रहता है कि किस की मां किसे किस सुर से बुलाती है। बुलाने के दौरान लोग पूरे सुर का इस्तेमाल करने के बजाए शुरुआती सुर गुनगुना देते हैं। लेकिन जब वे खेतों में काम के लिए जाते हैं तो पूरा सुर गुनगुनाया जाता है जो कि मुश्किल से एक मिनट का ही होता है।