केरल के इंतजामों से खुश हैं
असम के लोग केरल के इंतजामों से इतने खुश है कि संकट की इस घड़ी में भी घर आने से बचना चाहते हैं। सिर्फ उनकी एक आस है कि असम की सरकार असम में रहनेवाले उनके परिवारों को एक-एक राशन कार्ड दिला दे ताकि उनके परिवार को राशन नि:शुल्क मिलता रहे। केरल के एक कार सर्विसिंग सेंटर पर कार्य करने वाले धेमाजी जिले के माछखोवा देवघरीया इलाके के डिंबेश्वर बरुवा ने कहा कि केरल में रह रहे असम के लोग वापस अपने घरों को नहीं जाना चाहते हैं। अन्य राज्यों की तरह संकट की घड़ी में मकान मालिक ने अपने किराएदारों को निकाल बाहर नहीं किया है। केरल की जनता के साथ ही सरकार और कंपनी के मालिक अपने साधनों के अनुसार मदद कर रहे हैं। पहले केरल में दिन-मजदूरी करने वाले लोग आतंकित थे। पर अब स्थिति सामान्य हो गई है। अपने गृहराज्य के लिए रेल मिलने से कुछ जाना चाहते हैं लेकिन अधिकांश नहीं जाना चाहते हैं।
स्थानीय प्रतिनिधि व कार्मिक लेते हैं सुध
बरुवा का कहना है कि केरल में पंचायत के अध्यक्ष, विधायक, पुलिस और स्वास्थ्यकर्मी महामारी के दौरान स्थानीय लोगों के साथ जाकर प्रवासी लोगों का हालचाल पूछ रहे हैं। वे किराए के मकानों में आकर पूछते हैं कि खाना मिल रहा है या नहीं। यदि कोई कहता है कि नहीं मिला तो उसे पानी की बोतल, चावल, दाल वगैराह देते हैं। केरल के आल्हापारा जिले में स्थानीय लोग कंपनी में कार्यरत लोगों की मदद कर रहे हैं। सिर्फ असम ही नहीं देश के अन्य राज्यों के लोगों को केरल के लोग अपने लोगों की तरह ही मदद कर रहे हैं।इसलिए हम असम लौट जाने के बारे में सोच ही नहीं सकते।
रोजगार का संकट नहीं
केरल में लगभग चालीस हजार असम के लोग रहते हैं। बरुवा ने बताया कि असम का एक लड़का काम करने वाली कंपनी बंद हो गई तो वह घर लौटना चाह रहा था। यह बात पता चलने पर हमने एक हार्डवेयर स्टोर के मालिक से बात की तो उसने 12 हजार के वेतन पर उसे रख लिया। उसने कहा कि असम पंचायत प्रतिनिधियों को केरल से सीख लेनी चाहिए। असम सरकार से अनुरोध करते हैं कि वे यहां पंचायत प्रतिनिधियों को सीखने के लिए भेजे।
कंपनियां दे रही हैं वेतन
शिवसागर जिले के बकता का रिदीप चुटीया केरल के कोच्चि में रहता है। एक इंजीनियरिंग संस्थान में काम करने वाले रिदीप का कहना है कि लॉकडाउन के दौरान यहां पचास प्रतिशत वेतन दिया जा रहा है। इसलिए कोई समस्या नहीं होगी। इस वजह से घर जाने का सोचा नहीं है। कंपनियों में फिर से काम शुरु होने से साहस मिला है। कंपनियों ने आशा व्यक्त की है कि फिर से पुराने दिन लौटेंगे। केरल में खाने का कोई संकट नहीं है।
असम में राशन कार्ड की मांग
लखीमपुर जिले के घिलामारा का मंटु कोच केरल के एनार्कुलम में एक बर्फ की फैक्ट्री में काम करता है। वह भी कहता है कि हम वापस असम फिलहाल नहीं जाना चाहते हैं। जिन लोगों का वेतन कम है उन्हें कंपनियां ही खाना खिला रही है। पीने का पानी चाहिए तो तुरंत देते हैं। अब यात्रा कर असम में वायरस क्यों ले जाएं। धेमाजी जिले का दिलीप बूढ़ागोहाईं कहता है कि हमारे धेमाजी के घर में एक राशन कार्ड मिलने का इंतजाम कर दीजिए।
पूरी देखभाल हो रही है
असम के अपने गांव को लेकर चिंता होती है। केरल में हमें कोई दिक्कत नहीं है। पुलिस और स्वास्थ्यकर्मी आकर पूछते रहते हैं। स्वास्थ्य खराब लगने से ही जांच करते हैं। केरल के स्थानीय लोगों में कोरोना होने की अब खबर नहीं है। सिर्फ बाहर से लौट रहे लोगों में ही कोरोना पाया जा रहा है। काम फिर से शुरु हो गया है इसलिए वेतन के लिए यहीं रहकर काम करेंगे। केरल में जहां महामारी के खिलाफ जंग लड़ी जा रही है तो लोगों को प्रेरित करने और जीवन जीने में मदद करने स्थानीय लोग आगे आ रहे हैं। हम आशावादी हैं। इसलिए केरल में ही रहना चाहते हैं।