script45 साल पहले नाट्य मंदिर में लगती थी टिकट के लिए लाइन, अब फ्री में भी दर्शकों को तरसे नाटक | 45 years ago the Natya Mandir seemed to be the ticket for the ticket | Patrika News
ग्वालियर

45 साल पहले नाट्य मंदिर में लगती थी टिकट के लिए लाइन, अब फ्री में भी दर्शकों को तरसे नाटक

45 साल पहले नाट्य मंदिर में लगती थी टिकट के लिए लाइन, अब फ्री में भी दर्शकों को तरसे नाटक

ग्वालियरMar 27, 2019 / 05:58 pm

Mahesh Gupta

theatre day

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वल्र्ड थिएटर डे आज: संगीत और कला की नगरी में थिएटर के कद्रदानों का संकट

ग्वालियर ग्वालियर को हमेशा से संगीत और कला की नगरी के नाम से जाना जाता रहा है। 1970-80 के दशक में मनोरंजन का साधन नाटक हुआ करते थे, जिसके लिए नाट्य मंदिर में हर हफ्ते एक नाटक का मंचन होता था, जिसमें टिकट लेने के लिए लाइन लगा करती थी। यहां संस्थाएं समय-समय पर नाटक करातीं ओर लोगों को इंतजार रहता। नाटक के दिन बाहर रंगकर्मियों के पोस्टर लग जाया करते थे। लेकिन आज समय बदल गया है। लोग टिकट लेना तो दूर फ्री में भी नाटकों को दर्शक नहीं मिल रहे। जबकि अभिनय कला शहर की पहचान रही है, जिसने देश को कई बड़े नाम दिए हैं। इनमें एक्टर पियूष मिश्रा, मनोज जोशी, राजा बुंदेला आदि नाम शामिल हैं। शहर के वरिष्ठ रंगकर्मी रमेश उपाध्याय बताते हैं कि नाट्य मंचन हमारे शहर की पहचान रही है। इसे बनाए रखने के लिए लोगों को टिकट लेकर नाटक देखना होगा।

वरिष्ठ और नए रंगकर्मी नाट्य विधा में कर रहे काम
&सात राज्यों में शो कर चुके और 5 सीरियल में काम कर चुके 86 साल के रमेश उपाध्याय बताते हैं कि हमारे समय में एकांकी नाटक होते थे, फिर त्रियांकी हुए। इसके बाद ट्रेडिशनल प्ले होने लगे। हमारी टीम नाटक का मंचन करने प्रदेश के बाहर भी गई। उस समय नाट्य मंदिर में नाटक होते थे और लोगों को बैठने के लिए जगह नहीं होती थी। टिकट भी रखा जाता था और लोग पूरे उत्साह के साथ टिकट लेकर थिएटर में बैठते थे। इसके बाद कला परिषद और संगीत नाटक एकेडमी से संस्थाओं को ग्रांड मिलने लगी, तब नाटक का स्तर गिरने लगा। इसके बाद युग आया टीवी का, तो नाटक का स्तर थोड़ा थम सा गया, लेकिन आज फिर नई युवा पीढ़ी ने कमान संभाली है और नाटक की ओर लोग आकर्षित हो रहे हैं।
रमेश उपाध्याय, वरिष्ठ रंगकर्मी


नाट्य मंदिर के बाहर लगते थे हमारे पोस्टर
&1960-70 के दशक में हम लोग ग्वालियर में हर महीने नाटक किया करते थे। इसके साथ ही हम प्रदेश के बाहर भी मंचन करने जाते थे। ग्वालियर सहित शिमला-नैनीताल में नाटक के मंचन के पहले हम लोगों के ब्लैक एंड व्हाइट फोटो लगा करते थे। ये कल्चर ग्वालियर में भी था। कारण कि उस समय मनोरंजन का साधन केवल नाटक ही हुआ करते थे। बीच में नाटक में काफी गिरावट आई। अब पिछले कुछ सालों में फिर से नाटक का माहौल बनना शुरू हुआ है। आज वर्तमान परिप्रेक्ष्य में बन रहे नाटक पसंद किए जा रहे हैं। आज नाटक कोई टिकट लेकर देखना नहीं चाहता,जबकि पहले टिकट के लिए लाइन लगती थी। दर्शकों को बांधने के लिए अच्छे नाटक तैयार हों और कलाकार साफ छवि वाले होना जरूरी हैं।
वीरेन्द्र पचौरी, वरिष्ठ रंगकर्मी


अब टिकट नहीं सहयोग राशि लगती है
&पिछले 40 साल से अभिनय से जुड़े और लोगों को रंगमंच से जोडऩे का प्रयास कर रहे रंगकर्मी अशोक आनंद ने बताया कि टिकट लेकर अब नाटक देखने कोई नहीं जाना चाहता। दो महीने पहले परिवर्तन समूह की ओर से नाटक ‘अन्वेषक’ का मंचन हुआ था। उसमें बहुत ही कम सहयोग राशि रखी गई थी, लेकिन वह देने वाले भी बहुत कम लोग थे। पहले जहां नाटक देखने के लिए टिकट खरीदना होता था और लोग बड़े उत्साह के साथ टिकट खरीदते और परिवार के साथ बैठकर देखा करते थे। वहीं अब संस्थाओं ने टिकट की जगह सहयोग राशि का नाम दिया है। ताकि इस विधा के माध्यम से शहर को जो नाम देश में बना है, वो बरकरार रहे। इसके बाद भी कोई इंट्रेस्ट नहीं लेता।
अशोक आनंद, वरिष्ठ रंगकर्मी

फिल्म का टिकट ले सकते हैं, तो नाटक का क्यों नहीं
&आज संस्थाएं नाटक का मंचन नहीं कर पा रही हैं। क्योंकि एक प्ले में काफी अधिक खर्च आ रहा है। मराठी और बांग्ला थिएटर में टिकट रखा जाता है। वहां के लोग अपने महीने में खर्च का बजट बनाते समय नाटक में होने खर्च को भी एड करते हैं। लेकिन ग्वालियर के लिए नाटक का टिकट लेने से बचते हैं। वे फिल्म का टिकट देना तो पसंद करते हैं, लेकिन नाटक का नहीं।
अयाज खान, रंगकर्मी


क्लासिकल इंडियन ड्रामा से जोड़ूंगा लोगों को
&नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में सिलेक्ट हुए मनीष दुबे ने बताया हमारी परिवर्तन समूह संस्था नाट्य विधा को बचाए रखने के लिए काम रही है। हम हर माह प्ले करते हैं। इन दिनों मैं एनएसडी बनारस में ट्रेनिंग ले रहा हूं। ग्वालियर आकर मैं क्लासिकल इंडियन ड्रामा से लोगों को जोड़ूंगा, जिससे आज का बचपन वेस्टर्न थिएटर को भूलकर अपनी परंपरा में वापस लौट आए।
मनीष दुबे, रंगकर्मी


ओपन एरिया में तैयार कर रहे रंगमंच, रखेंगे टिकट
&म्यूजिक यूनिवर्सिटी में सेवाएं दे रहे हिमाशुं द्विवेदी बताते हैं कि संगीत और नाट्य विधा हमारे ग्वालियर की पहचान है। नाट्य से अधिक से अधिक लोगों को जोडऩे के लिए मैं नए-नए प्रयोग करता रहता हूं। यूनिवर्सिटी में रंगमंच नहीं है। इसके लिए मैं ओपन एरिया में रंगमंच तैयार कर रहा हूं, जो स्टूडेंट्स और मैं मिलकर तैयार करेंगे। इसमें टिकट लेकर नाटक दिखाने का काम करेंगे।
हिमांशु द्विवेदी, रंगकर्मी

ये संस्थाएं हैं रंगमंच में सक्रिय
आर्टिस्ट कम्बाइन
कला समूह
परिवर्तन समूह
युवा रंगकर्मी
प्रतिशोध
श्रीरंग संगीत एवं कला संस्थान
रंग कुटुम्ब

पीयूष मिश्रा, मनोज जोशी, राजा बुंदेला, रवीन्द्र खानवलकर, वीरेन्द्र सक्सेना, प्रदीप सक्सेना, वाय सदाशिव।

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