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ग्वालियर

तीन सौ करोड़ के हरसी हाईलेवल नहर घोटाले के आरोपियों के आवेदन खारिज, नहीं मिल सकता धारा 19 का लाभ

न्यायालय ने आरोपियों के उन आवेदनों को भी खारिज कर दिया, जिनमें उनके खिलाफ अभियोजन स्वीकृति नहीं लिए जाने पर कार्यवाही समाप्त कर उन्हें दोषमुक्त किए जाने का निवेदन किया गया था

ग्वालियरMar 24, 2019 / 01:06 am

Rahul rai

,harsi Highvel canal scam

तीन सौ करोड़ के हरसी हाईलेवल नहर घोटाले के आरोपियों के आवेदन खारिज, नहीं मिल सकता धारा 19 का लाभ

ग्वालियर। तीन सौ करोड़ से अधिक के हरसी हाईलेवल नहर घोटाले में अदालत ने डीपीआर के विवाद पर विराम लगा दिया है। विशेष न्यायालय भ्रष्टाचार निवारण ने आरोपी तत्कालीन मुख्य अभियंता एचडी जोशी व चन्द्रमौली मिश्रा सहित अन्य के आवेदन खारिज कर दिए। कोर्ट ने कहा है कि चालान के साथ पेश की गई डीपीआर ही साक्ष्य के रूप में मान्य की जाएगी। न्यायालय ने आरोपियों के उन आवेदनों को भी खारिज कर दिया, जिनमें उनके खिलाफ अभियोजन स्वीकृति नहीं लिए जाने पर कार्यवाही समाप्त कर उन्हें दोषमुक्त किए जाने का निवेदन किया गया था।
आरोपी चन्द्रमौली मिश्रा ने कोर्ट में आवेदन प्रस्तुत कर कहा कि न्यायालय में अभी तक हरसी हाईलेवल नहर योजना की मूल डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट पेश नहीं की गई है। जब तक मूल डीपीआर वर्ष 1991 पेश नहीं की जाती है, तब तक प्रकरण की सुनवाई रोकने का निवेदन किया गया था। उनके आवेदन पर ईओडब्ल्यू की ओर से विशेष लोक अभियोजन अधिकारी अनिल मिश्रा ने कहा कि यह आवेदन प्रकरण को अनावश्यक विलंब करने के आशय से पेश किया गया है।
अधीक्षण यंत्री सिंध परियोजना नहर मंडल शिवपुरी द्वारा बताया गया कि जो डीपीआर न्यायालय में पेश की गई है, वही मूल डीपीआर है, वह कार्यपालन यंत्री द्वारा सत्यापित है। इसके अलावा और कोई डीपीआर नहीं है, जिसे पेश किया जाना है। उन्होंने कहा कि इस मामले में न्यायालय के आदेश की भी अवहेलना नहीं की गई है। इस पर न्यायालय ने मिश्रा के आवेदन को खारिज करते हुए कहा कि कोर्ट में पेश डीपीआर को ही सबूत के रूप में मान्य किया जाएगा।

न्यायालय ने तत्कालीन मुख्य अभियंता एचडी जोशी, घनश्याम उपाध्याय निरपत सिंह राजपूत एवं पीएनएस परमार द्वारा प्रस्तुत आवेदनों को भी खारिज कर दिया। जल संसाधन विभाग के इन सभी आरोपियों ने आवेदन में कहा कि उनके खिलाफ ईओडब्ल्यू द्वारा अभियोजन स्वीकृति की आवश्यकता न होना बताकर अभियोग पत्र प्रस्तुत किया है। उनकी ओर से कहा गया कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 19 में 26 जुलाई 18 से जो संशोधन किया गया है उसमें सेवानिवृत्त शासकीय कर्मचारियों के खिलाफ अभियोजन चलाने के लिए अभियोजन स्वीकृति की आवश्यकता है।
सभी की ओर से कहा गया कि उनके खिलाफ कोई अभियोजन स्वीकृति नहीं ली गई है, इसलिए उनके खिलाफ चल रही कार्यवाही समाप्त कर उन्हें दोषमुक्त किया जाए। इस पर ईओडब्ल्यू की ओर से कहा गया कि आरोपी एनएस राजपूत के खिलाफ 4 अक्टूबर 12 को तथा शेष आरोपियों के खिलाफ 17 जून 2010 को चालान पेश किया जा चुका है, तब सभी आरोपी रिटायर हो चुके थे, इसलिए उनके खिलाफ अभियोजन स्वीकृति लेना जरूरी नहीं था, सभी के खिलाफ आरोप तय हो चुके हैं।
न्यायालय ने सभी के आवेदन खारिज करते हुए कहा कि धारा 19 में जो संशोधन किए गए हैं वे भूतलक्षी प्रभाव रखते हैं, इस कारण स्वीकार किए जाने योग्य नहीं हैं। सभी के खिलाफ आरोप तय कर प्रकरण में विचारण आरंभ हो चुका है, इसलिए उनका आवेदन खारिज किया जाता है।
यह हैं आरोपी
इसके अलावा प्रभारी कार्यपालन यंत्री राजेश कुमार श्रीवास्तव, कार्यपालन यंत्री एके दीक्षित, प्रभारी कार्यपालन यंत्री बीएस यादव, एमएस भदौरिया अनुविभागीय अधिकारी, पीएस बाथम अनुविभागीय अधिकारी, उदय लाले अनुविभागीय अधिकारी, पीएस शर्मा प्रभारी अनुविभागीय अधिकारी, एके कोडेय, एमएल साहू, डीएस मुंडिया, एमके बराहे, केएन चतुर्वेदी, घनश्याम उपाध्याय, जीएन सिंह व अन्य उपयंत्रीगण व कर्मचारी ठेकेदार इस मामले में आरोपी हैं।
सभी के खिलाफ दर्ज है धोखाधड़ी का मामला
सभी के खिलाफ भादवि की धारा 120 बी, 420, 409 एवं भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मामला चल रहा है। इन अफसरों पर आरोप है कि उन्होंने वर्ष 2006 से 17 जून 2010 के मध्य षड्यंत्र कर हरसी हाईलेवल नहरों के निर्माण कार्य एवं पुनर्वास कार्यों में लगने वाली सामग्री के फर्जी दस्तावेजों के आधार पर कपटपूर्ण एवं बेईमानी से सामग्री प्रदाय के लिए अपात्र फर्मों को मध्यप्रदेश राज्य उपभोक्ता सहकारी संघ के माध्यम से ऊंची दरों पर अनुचित भुगतान किया।

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