वे अष्टभुजाधारी शारदा और दशभुजाधारी महिषासुर मर्दिनी मां भवानी की प्रतिमाएं तैयार करने के लिए जुट जाते हैं। वे हर साल दीपावली से पहले होने वाली मां काली की पूजा तक शहर में रहते हैं। 25 साल से दुर्गा की प्रतिमा बनाने के लिए कोलकता के नदिया जिले से आने वाले सपन पाल का कहना है कि बंगाली मूर्तियों की कलाकृति स्थानीय कलाकारों की मूर्तियों से भिन्न होती है। हालांकि स्थानीय कलाकार बंगाल की तर्ज पर मां का रूप देने की पूरी कोशिश करते हैं, लेकिन इतनी अच्छी से मां का रूप नहीं निखार पाते हैं। इसके अलावा गौर पाल और झुन्डु पाल भी मिट्टी की प्रतिमाएं बनाते हैं। बंगाली कलाकारों द्वारा प्रतिमाओं को अंतिम रूप दिया जा चुका है। इन्हें प्राकृतिक कलर से सजाया जा रहा है। यह प्रतिमाएं दो फीट से लेकर छह फीट तक तैयार की गईं हैं।
बंगाली समाज 25 वीं बार मनाएगा पर्व
प्रति वर्ष की भांति इस बार भी बंगाली समाज मां दुर्गा की प्रतिमा मानस भवन में सजाएगा। यहां नवदुर्गा उत्सव 25 वीं बार मनाया जा रहा है। इस बार प्रतिमा 8 फीट ऊंची रखी जाएगी। पारंपरिक बंगाली शैली की प्रतिमाओं की तर्ज पर मां का रूप निखारा जाएगा। बंगाली की सिल्क साड़ी, बनारसी साड़ी मां दुर्गा को पहनाई जाती है। जलीय पौधों से गहने-मुकुट आदि को बनाया जाता है। यह प्रतिमाएं मानस भवन, जेसी मिल, एयर फोर्स एरिया एवं अंचल के अन्य जिलों में भेजी जाती है।