हर साल झूलेलाल का चालीस दिवसीय महोत्सव के शुभारंभ पर दानाओली से माधौगंज तक बाहिराणे साहिब की ज्योति यात्रा निकाली जाती है। यह ज्योति यात्रा में सिंधी समाज के लोग उत्साह से भाग लेते हैं। यह परंपरा सन् 1946 से चली आ रही है। हर साल चालीस दिवसीय झूलेलाल महोत्सव शहर में सिंध प्रांत के तर्ज पर सिंधी समाज मनाता चला आ रहा है। सिंधी समाज के लोगों भगवान झूलेलाल का अवतार की कथा बताते है कि पाकिस्तान के सिंध प्रांत में मिखर शाह नाम का एक शहंशाह हुआ करता था। सिंध प्रांत के लोग वरूण देव के रूप में जल की पूजा-अर्चना करते थे।
वे ङ्क्षसधु नदी का पूजन करते थे। यहां के राजा द्वारा धर्म परिवर्तन तलबार की डर पर किया जाने लगा। तभी ङ्क्षसधी समाज के धर्मात्माओं ने शहंशाह से ऐसा करने से मना किया। तब शहंशाह ने कहाकि तुम किस की पूजा करते हो, जिसको पूजते हो उसक प्रमाण भी दीजिए या फिर मेरा धर्म अपनाओ। इस पर उन महात्माओं ने आराधना शुरू की और आराधना के चालीस वें दिन आकाश वाणी के माध्यम से भगवान वरूण देव के अवतार के बारे में बताया गया गया। जब उनका जन्म हुआ तब पालना झूलाते समय मोहक रूप देख महिलाएं लाल..झूलेलाल के नाम से पुकारने लगी। इसके बाद भगवान झूलेलाल ने शहंशाह को सबक सिखाने के लिए उसका महल पानी में डुबो दिया था। झूलेलाल उत्सव में इस तरह की कथा श्रद्धालुओं को सुनाई जाती है। इस तरह भगवान झूलेलाल का चालीसा महोत्सव मनाया जाता है।
व्यापारी और कर्मचारी के रूप में ग्वालियर आए थे सिंधी
सिंधी समाज के राजेश वाधवानी का कहना है कि भारत पाकिस्तान के बटवारे से पहले शहर में मंघाराम व्यापारी आए थे। सिंध में उनका विश्व प्रसिद्ध बिस्कुट और बेफर का काम हुआ करता था। वह अपनी फैक्टरी को सिंध से ग्वालियर लेकर आए थे। व्यापारी मंघाराम के संबंध ग्वालियर राज घराने से थे इसलिए उन्हें माधौगंज में व्यापार के लिए एक स्थान मिला, उनके साथ ग्वालियर में करीब 150 परिवार आए थे। इनमें कुछ व्यापारी थे तो कुछ कर्मचारी।