पारसेन
-लगभग 20 लाख रुपए में मरम्मत होने बाद इस ऐतिहासिक तालाब की जल ग्रहण क्षमता बढ़ गई थी।
-इस क्षेत्र में क्रेशर आधारित लीज दिए जाने के बाद समस्या शुरू हो गई है।
-पत्थर निकालने वालों ने तालाब के पास मौजूद पत्थर निकालने के लालच में लगातार ब्लास्टिंग करना जारी रखा है, इस कारण तालाब की बंड को खतरा है।
-रियासतकालीन तालाब की मरम्मत के लिए बीते नौ साल में 1 करोड़ 40 लाख रुपए से अधिक खर्च हो चुके हैं।
-जल संसाधन विभाग के माध्यम से खर्च हुई इस राशि के बाद भी तालाब की बंड लगभग हर साल टूटती है या रिसती है।
-ग्रामीणों ने काम की गुणवत्ता में अनियमितताओं को लेकर कई बार शिकायत की, लेकिन जांच अभी तक पूरी नहीं हुई।
-लगभग 6 किलोमीटर के कैचमेंट वाले इस तालाब में कभी भी पूरी क्षमता से पानी नहीं भरा गया है।
-लगभग तीन किलोमीटर की बंड और 2 किलोमीटर भराव क्षेत्र वाले इस तालाब की बंड पिछले वर्ष टूट गई थी।
-अचानक पानी बहने से धान, सोयाबीन, उड़द आदि फसलें तबाह हो गई थीं।
-इसकी मरम्मत के लिए विभाग ने बोरियों में मिट्टी भरकर लगा दी थी, लेकिन बाद में ध्यान नहीं दिया।
-इस बार भी सितंबर के अंत में बारिश हुई तो इस तालाब की बंड में छेद होने के कारण खतरा पैदा हो सकता है।
-अंचल के तालाबों में सबसे सुदृढ़ बंड इस तालाब की थी।
-बांध की तरह से बने इस तालाब को पथरीले क्षेत्र में जलापूर्ति और जलस्तर बेहतर रखने के लिए बनाया गया था।
-इस बांध से जखौदा एवं आसपास के गांव के लोगों एवं मवेशियों को बहुत सहारा है।
-कुछ सालों में सफेद पत्थर की खुदाई कर रहे माफिया ने तालाब से बमुश्किल 40 मीटर दूर ही गहरी खाइयां खोद दी हैं।
-आसपास लगातार ब्लास्टिंग से तालाब की बंड से पानी का रिसाब पूरे साल जारी रहता है, लेकिन न तो प्रशासन ध्यान दे रहा है, न जल संसाधन विभाग ने कुछ बेहतर किया है।