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ग्वालियर

पत्थर माफिया की ब्लास्टिंग से अंचल के तालाब संकट में, कई की बंड में हुए छेद

मुरार क्षेत्र में पारसेन, भितरवार में उर्वा और अमरोल, घाटीगांव में जखौदा में मौजूद बड़े तालाबों की बंड में छेद हो गए हैं। इनमें हो रहे रिसाब से रियासतकालीन जल संरक्षण की संरचनाओं को खतरा बना हुआ है, लेकिन जिम्मेदार अधिकारी लगातार लापरवाह बने हुए हैं।

ग्वालियरSep 12, 2019 / 01:21 am

Rahul rai

पत्थर माफिया की ब्लास्टिंग से अंचल के तालाब संकट में, कई की बंड में हुए छेद

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ग्वालियर। वर्षा जल को संरक्षित रख भू जलस्तर को स्थिर रखने वाले अंचल के तालाबों का अस्तित्व खतरे में है। लगभग 400 छोटे-बड़े तालाबों में से अधिकतर को किसान खेती के लिए समय से पहले खाली कर देते हैं, वहीं माइनिंग क्षेत्र में मौजूद कुछ बड़े तालाब पत्थर निकालने वालों द्वारा की जा रही ब्लास्टिंग से संकट में हैं। मुरार क्षेत्र में पारसेन, भितरवार में उर्वा और अमरोल, घाटीगांव में जखौदा में मौजूद बड़े तालाबों की बंड में छेद हो गए हैं। इनमें हो रहे रिसाब से रियासतकालीन जल संरक्षण की संरचनाओं को खतरा बना हुआ है, लेकिन जिम्मेदार अधिकारी लगातार लापरवाह बने हुए हैं।
दरअसल, सिंचाई विभाग एवं ग्रामीण विकास विभाग द्वारा दो साल से लगातार जल संरक्षण के काम कराने का दावा किया जा रहा है। इसके बावजूद न तो बीते वर्ष पूरे साल पानी रोक पाए, न इस वर्ष नवंबर-दिसंबर तक पानी रुकने की उम्मीद है। वजह यह है कि इन तालाबों के ओवरफ्लो बेहद नीचे कर दिए गए हैं, जैसे ही पानी का स्तर बढ़ता है, ओवरफ्लो के जरिए बह जाता है। खास बात यह है कि बीते वर्ष की तरह इस साल भी सितंबर के आखिर में बारिश होने की संभावनाएं प्रबल हैं, अगर ऐसा हुआ तो जैसे बीते वर्ष उर्वा तालाब की बंड कटने के साथ ही दो अन्य बड़े तालाबों की बंड में दरार आ गई थी, उसी तरह इस बार भी हो सकता है।
इन तालाबों का नहीं रखा गया ध्यान
पारसेन
-लगभग 20 लाख रुपए में मरम्मत होने बाद इस ऐतिहासिक तालाब की जल ग्रहण क्षमता बढ़ गई थी।
-इस क्षेत्र में क्रेशर आधारित लीज दिए जाने के बाद समस्या शुरू हो गई है।
-पत्थर निकालने वालों ने तालाब के पास मौजूद पत्थर निकालने के लालच में लगातार ब्लास्टिंग करना जारी रखा है, इस कारण तालाब की बंड को खतरा है।
अमरोल
-रियासतकालीन तालाब की मरम्मत के लिए बीते नौ साल में 1 करोड़ 40 लाख रुपए से अधिक खर्च हो चुके हैं।
-जल संसाधन विभाग के माध्यम से खर्च हुई इस राशि के बाद भी तालाब की बंड लगभग हर साल टूटती है या रिसती है।
-ग्रामीणों ने काम की गुणवत्ता में अनियमितताओं को लेकर कई बार शिकायत की, लेकिन जांच अभी तक पूरी नहीं हुई।
-लगभग 6 किलोमीटर के कैचमेंट वाले इस तालाब में कभी भी पूरी क्षमता से पानी नहीं भरा गया है।
उर्वा
-लगभग तीन किलोमीटर की बंड और 2 किलोमीटर भराव क्षेत्र वाले इस तालाब की बंड पिछले वर्ष टूट गई थी।
-अचानक पानी बहने से धान, सोयाबीन, उड़द आदि फसलें तबाह हो गई थीं।
-इसकी मरम्मत के लिए विभाग ने बोरियों में मिट्टी भरकर लगा दी थी, लेकिन बाद में ध्यान नहीं दिया।
-इस बार भी सितंबर के अंत में बारिश हुई तो इस तालाब की बंड में छेद होने के कारण खतरा पैदा हो सकता है।
जखौदा
-अंचल के तालाबों में सबसे सुदृढ़ बंड इस तालाब की थी।
-बांध की तरह से बने इस तालाब को पथरीले क्षेत्र में जलापूर्ति और जलस्तर बेहतर रखने के लिए बनाया गया था।
-इस बांध से जखौदा एवं आसपास के गांव के लोगों एवं मवेशियों को बहुत सहारा है।
-कुछ सालों में सफेद पत्थर की खुदाई कर रहे माफिया ने तालाब से बमुश्किल 40 मीटर दूर ही गहरी खाइयां खोद दी हैं।
-आसपास लगातार ब्लास्टिंग से तालाब की बंड से पानी का रिसाब पूरे साल जारी रहता है, लेकिन न तो प्रशासन ध्यान दे रहा है, न जल संसाधन विभाग ने कुछ बेहतर किया है।

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