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ग्वालियर

ग्वालियर की सडक़ों पर गाय बैल की भरमार

देश के अग्रणी ऐतिहासिक शहरों में से एक ग्वालियर सडक़ पर गाय बैल की समस्या से जूझ रहा है। छोटी-बड़ी कोई सडक़ ऐसी नहीं बची है, जहां यह समस्या नहीं है। और सडक़ों को तो छोड़ दें, शहर की ऐसी कोई गली, कोई इलाका शेष नहीं है, जहां के बाशिंदे इस परेशानी से दो चार नहीं हों। सुबह हो शाम हो और या फिर रात का समय, एक पल भी इन पशुओं से निजात नहीं है। घर से बाहर पैदल निकलें या गाड़ी पर, एक भ्रम सा होता है कि हम मध्यप्रदेश के चौथे सबसे बड़े शहर में विचरण कर रहे हैं या किसी गांव खेड़े में।

ग्वालियरSep 28, 2019 / 07:48 pm

Hari Om Panjwani

cattle on roads of gwalior

ग्वालियर में इस तरह सडक़ों पर आवारा पशुओं का बोलबाला है। पत्रिका फोटो

टिप्पणी
हरिओम पंजवाणी
ग्वालियर. देश के अग्रणी ऐतिहासिक शहरों में से एक ग्वालियर सडक़ पर गाय बैल की समस्या से जूझ रहा है। छोटी-बड़ी कोई सडक़ ऐसी नहीं बची है, जहां यह समस्या नहीं है। और सडक़ों को तो छोड़ दें, शहर की ऐसी कोई गली, कोई इलाका शेष नहीं है, जहां के बाशिंदे इस परेशानी से दो चार नहीं हों। सुबह हो शाम हो और या फिर रात का समय, एक पल भी इन पशुओं से निजात नहीं है। घर से बाहर पैदल निकलें या गाड़ी पर, एक भ्रम सा होता है कि हम मध्यप्रदेश के चौथे सबसे बड़े शहर में विचरण कर रहे हैं या किसी गांव खेड़े में। 20 से 25 हजार की भारी संख्या में गाय बैल सडक़ों पर हैं। कौन जिम्मेदार है? निश्चित तौर पर नगर निगम और वे पशुपालक जो अपने दुधारू पशुओं को दुहने के बाद अपने बाड़ों में रखने के बजाय सडक़ पर छोड़ देते हैं और वे पशुपालक भी जो दूध न दे पाने वाले पशुओं का भार उठाने का कर्तव्य निभाने के बजाय उन्हें अपने हाल पर छोड़ देते हैं। सबसे बड़ा जिम्मेदार नगर निगम, वह नगर निगम जिसने शहर में सफाई व्यवस्था को बुरी तरह चौपट किया हुआ है, वह नगर निगम जिसने शहर की सडक़ों की सर्वथा अनदेखी करते हुए उन्हें बड़े-बड़े गड्ढों में तब्दील कर दिया है और इन सडक़ों पर चलना व वाहन पर सवार होना आम लोगों के लिए यातनादायी कर दिया है। इसी तरह का हाल उसने पशुओं के मामले में भी किया हैै।
सभी मामलों में समान बात यह कि उसके पास किसी तरह की वैज्ञानिक सोच, योजना और प्रक्रिया नहीं है। तंत्र भी उसने विकसित नहीं किया है। तंत्र को यह जरूर देखना आता है कि उसकी कोताही व अयोग्यता भोपाल के किसी बड़े अधिकारी की नजर में नहीं आ जाए। इसलिए जब मुख्य सचिव का दौरा होता है, तो उससे पूर्व एक दो दिन दिन रात शहर में आवारा पशुओं की धरपकड़ कर उन्हें गोला का मंदिर और लाला टिपारा की अपनी दो गोशालाओं में भिजवा दिया जाता है, लेकिन इस दौरे से पहले और बाद में उन्हीं पशुओं को चिह्नित कर वापस विचरण करने व अड्डा बनाने के लिए सडक़ों पर छोड़ दिया जाता है। उसे इससे कोई सरोकार नहीं होता कि इन पशुओं के कारण शहर भर में अव्यवस्था होती है, पहले से बढ़ी हुई गंदगी और फैलती है, यातायात बुरी तरह प्रभावित होता है और दुर्घटनाएं होती हैं जिनमें जनहानि होती है। यह निगम का दायित्व होता है कि वह सडक़ों पर पशुओं को बैठने न दे। पशु सडक़ पर न बैठें, इसके लिए पशुपालकों को पाबंद करे कि वे पशुओं को अपने बाड़ों में ही रखें। इसके बावजूद खुले में छोड़े गए पशुओं की नियमित धरपकड़ हो और उनके पशुपालकों से भारी जुर्माना लागू करे।
जिन पशुओं के मालिक न हों, उन्हें पकड़ कर गौशालाओं में भिजवाए। उसकी खुद की दोनों गौशालाएं पूरी क्षमता से पशुओं से भर गई हों, तो निजी गौशालाओं में पशुओं को भेजने की व्यवस्था करवाए। अपनी खुद की अन्य गौशालाएं विकसित करने के उपाय भी उसे पूरी शिद्दत से करने चाहिए। पर दुर्भाग्य से उसके प्रयासों में कमी है। हमारे यहां गोधन की पूजा होती है, लेकिन नगर निगम तो यह देखने की कोशिश भी नहीं करता कि सडक़ों पर इन पशुओं को चारा व खाना नहीं मिल रहा है और वे कचरे में इधर-उधर मुंह मारने को विवश हैं। इसमें आम जनता की तकलीफ तो बनी हुई है। इसका बड़ा खमियाजा इस रूप में भोगना होगा कि ग्वालियर स्वच्छता की रैंकिंग में बहुत पिछड़ जाएगा, जिससे राष्ट्रीय स्तर पर उसकी छवि प्रभावित होगी। निगम के कर्ताधर्ताओं और जिला प्रशासन को इस पर गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिए।
जिला प्रशासन को इसलिए कि जिले की व्यवस्था को सुचारू व सुगम बनाने के लिए जिला प्रशासन को तालमेल बनाते हुए अन्य विभागों को निर्देशित व सहयोग करना होता है। सडक़ों पर पशुओं के कब्जे के मामले में कह सकते हैं कि जिला प्रशासन ने अपनी भूमिका का सही निर्वहन नहीं किया है। जिला प्रशासन को चाहिए कि निगम ने निकटवर्ती बरई नौनंदा इलाके के चारे से भरपूर 145 एकड़ क्षेत्र में खुली गौशाला विकसित करने में मदद करने का जो आग्रह किया है, उसे जल्दी से मानकर अमल में लाए। निगम को नियमित तौर पर पशुओं को पकड़ कर वहां व अन्य गौशालाओं में पहुंचाने के लिए पाबंद किया जाए और बेपरवाह पशुपालकों पर कड़ी कार्रवाई भी की जाए, तभी शहर समस्या मुक्त हो सकेगा।
hari.panjwani@epatrika.com

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