सभी मामलों में समान बात यह कि उसके पास किसी तरह की वैज्ञानिक सोच, योजना और प्रक्रिया नहीं है। तंत्र भी उसने विकसित नहीं किया है। तंत्र को यह जरूर देखना आता है कि उसकी कोताही व अयोग्यता भोपाल के किसी बड़े अधिकारी की नजर में नहीं आ जाए। इसलिए जब मुख्य सचिव का दौरा होता है, तो उससे पूर्व एक दो दिन दिन रात शहर में आवारा पशुओं की धरपकड़ कर उन्हें गोला का मंदिर और लाला टिपारा की अपनी दो गोशालाओं में भिजवा दिया जाता है, लेकिन इस दौरे से पहले और बाद में उन्हीं पशुओं को चिह्नित कर वापस विचरण करने व अड्डा बनाने के लिए सडक़ों पर छोड़ दिया जाता है। उसे इससे कोई सरोकार नहीं होता कि इन पशुओं के कारण शहर भर में अव्यवस्था होती है, पहले से बढ़ी हुई गंदगी और फैलती है, यातायात बुरी तरह प्रभावित होता है और दुर्घटनाएं होती हैं जिनमें जनहानि होती है। यह निगम का दायित्व होता है कि वह सडक़ों पर पशुओं को बैठने न दे। पशु सडक़ पर न बैठें, इसके लिए पशुपालकों को पाबंद करे कि वे पशुओं को अपने बाड़ों में ही रखें। इसके बावजूद खुले में छोड़े गए पशुओं की नियमित धरपकड़ हो और उनके पशुपालकों से भारी जुर्माना लागू करे।
जिन पशुओं के मालिक न हों, उन्हें पकड़ कर गौशालाओं में भिजवाए। उसकी खुद की दोनों गौशालाएं पूरी क्षमता से पशुओं से भर गई हों, तो निजी गौशालाओं में पशुओं को भेजने की व्यवस्था करवाए। अपनी खुद की अन्य गौशालाएं विकसित करने के उपाय भी उसे पूरी शिद्दत से करने चाहिए। पर दुर्भाग्य से उसके प्रयासों में कमी है। हमारे यहां गोधन की पूजा होती है, लेकिन नगर निगम तो यह देखने की कोशिश भी नहीं करता कि सडक़ों पर इन पशुओं को चारा व खाना नहीं मिल रहा है और वे कचरे में इधर-उधर मुंह मारने को विवश हैं। इसमें आम जनता की तकलीफ तो बनी हुई है। इसका बड़ा खमियाजा इस रूप में भोगना होगा कि ग्वालियर स्वच्छता की रैंकिंग में बहुत पिछड़ जाएगा, जिससे राष्ट्रीय स्तर पर उसकी छवि प्रभावित होगी। निगम के कर्ताधर्ताओं और जिला प्रशासन को इस पर गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिए।
जिला प्रशासन को इसलिए कि जिले की व्यवस्था को सुचारू व सुगम बनाने के लिए जिला प्रशासन को तालमेल बनाते हुए अन्य विभागों को निर्देशित व सहयोग करना होता है। सडक़ों पर पशुओं के कब्जे के मामले में कह सकते हैं कि जिला प्रशासन ने अपनी भूमिका का सही निर्वहन नहीं किया है। जिला प्रशासन को चाहिए कि निगम ने निकटवर्ती बरई नौनंदा इलाके के चारे से भरपूर 145 एकड़ क्षेत्र में खुली गौशाला विकसित करने में मदद करने का जो आग्रह किया है, उसे जल्दी से मानकर अमल में लाए। निगम को नियमित तौर पर पशुओं को पकड़ कर वहां व अन्य गौशालाओं में पहुंचाने के लिए पाबंद किया जाए और बेपरवाह पशुपालकों पर कड़ी कार्रवाई भी की जाए, तभी शहर समस्या मुक्त हो सकेगा।
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