खास बात यह है कि उस समय जब प्रदेश सरकार शिक्षा पर करोड़ों रुपए खर्च करके उसके स्तर को सुधारने के प्रयास में जुटी हुई है, जबकि कई ऐसे स्कूल हैं, जहां पढ़ाने के लिए पहले से ही शिक्षकों की बेहद कमी बनी हुई है।
सूत्र बताते हैं कि जिला शिक्षा अधिकारी, जिला प्रशासनिक अफसरों के सामने छात्र हित की बात भी नहीं रख पा रहे हैं। वहीं, शिक्षकों व अध्यापकों के बीएलओ ड्यूटी में अटैच किए जाने की रिपोर्ट लोक शिक्षण संचालनालय को भी नहीं भेजी जा रही है। सरकारी स्कूलों में अध्यापन कार्य को लेकर व्यवस्था बिगड़ी हुई है।
जिले में ऐसे शिक्षकों की संख्या अच्छी खासी है, जो महीनों से स्कूल नहीं गए। वे निर्वाचन कार्य में व्यस्त होने की बात कहकर कलेक्ट्रेट, तहसील कार्यालय में ही मौज काट रहे हैं। ऐसे में कक्षाएं खाली पड़ी हुई हैं। उन शिक्षकों की जगह पर अतिथि शिक्षकों को भी नहीं रखा जा रहा है।
शिक्षा विभाग के अधिकारी ऐसे बीएलओ ड्यूटी में व्यस्त शिक्षकों के कार्य की समीक्षा भी नहीं कर पा रहे हैं। वहीं ऐसे शिक्षकों की वेतन शिक्षा विभाग द्वारा जारी की जा रही है। बिना काम के ही इन शिक्षकों को शिक्षा विभाग द्वारा लंबे समय से वेतन दिया जा रहा है।
जिले में 1700 से अधिक शिक्षकों की कमी
जिले में करीब छह हजार अध्यापक हैं। इसके अलावा करीब 12 सौ से अधिक अध्यापकों की कमी बनी हुई है, जिनकी जगह पर अतिथि शिक्षकों को तैनात किया जाना है। वहीं साढ़े पांच सौ के आस-पास अध्यापकों को बीएलओ ड्यूटी में व्यस्त किए जाने की वजह से जिले में करीब 1700 के आस-पास अध्यापक व शिक्षकों की कमी खल रही है। स्कूल शुरू होने के बाद भी इन शिक्षकों को अध्यापन कार्य में लिए मुक्त नहीं किया गया।
निर्वाचन अति आवश्यक कार्य है। इसके लिए ड्यूटी में शिक्षकों को तैनात किया गया है। ऐसे शिक्षकों की सूची तैयार नहीं की गई है, इसलिए कितने शिक्षक ड्यूटी में तैनात हैं, इस बात की जानकारी नहीं दी जा सकती।
आरएन नीखरा, डीईओ