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ग्वालियर

बच्चे व अपराधियों की काउंसलिंग जरूरी : अर्चना

महिला हो या पति-पत्नी के झगड़े उन्हें अच्छी तरोह से समझाती हैं और उनके बीच की तकरार को दूर करती हैं। कई बच्चे ऐसे हैं, जो अपराधी बन जाते हैं। उनकी काउंसलिंग कर उन्हें अपनी गलती का एहसास कराती हैं।

ग्वालियरOct 17, 2019 / 01:44 am

राजेश श्रीवास्तव

बच्चे व अपराधियों की काउंसलिंग जरूरी : अर्चना

बच्चे व अपराधियों की काउंसलिंग जरूरी : अर्चना

ग्वालियर. आज की महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलकर चल रही हैं। ऐसी ही समाज सेविका महिला हैं अर्चना शर्मा जो न सिर्फ अपने परिवार का ख्याल जिम्मेदारी से रखती हैं बल्कि समाज के लिए भी बेहतर कार्य कर रही हैं। फिर चाहे महिला थाना हो, कोर्ट हो या फिर किशोर न्यायालय हर जगह अपना समय दे रही हैं। महिला हो या पति-पत्नी के झगड़े उन्हें अच्छी तरोह से समझाती हैं और उनके बीच की तकरार को दूर करती हैं। कई बच्चे ऐसे हैं, जो अपराधी बन जाते हैं। उनकी काउंसलिंग कर उन्हें अपनी गलती का एहसास कराती हैं। बच्चों और महिलाओं को लेकर पत्रिका ने उनसे कई सवाल किए।
-परिवार की व्यस्तता के बीच समाज सेवा के लिए किस प्रकार समय निकल पाता है?
-मैंने हर दिन तय कर रखा है। कभी जेल में जाकर कैदियों की काउंसलिंग करना तो कभी महिला थाने तो कभी किशोर न्यायालय जाकर बच्चों को समझाना। अब तो आदत सी बन गई है मुझे कोई कठिनाई नहीं आती।
-बच्चे गलत संगत में पडकऱ अपराध करने लगते हैं, उन्हें किस प्रकार समझाती हैं?
-मैं हफ्ते में एक दिन किशोर न्यायालय में समय देती हूं, जो बच्चे गलत संगत में पडकऱ अपराध करते हैं। उन्हें समझाती हूं कि उनके लिए क्या गलत है क्या सही है। काउंसलिग में कभी-कभी कई घंटे लग जाते हैं, लेकिन जब बच्चों को समझ में आता है तो उन्हें अपनी गलती का एहसास होता है।
-वर्तमान में पति-पत्नी के झगड़ों की काफी शिकायतें आती हैं उनकी दूरी को किस प्रकार कम करती हैं?
– यह सही है पति-पत्नी के झगड़ों की शिकायतें सबसे ज्यादा आती हैं। अधिकांश पत्नी द्वारा मोबाइल पर मायके पर बात करने पर ज्यादा झगड़े होते हैं। पहले तो दोनों को अलग-अलग बैठाकर समझाती हूं। फिर दोनों को एक साथ बैठाकर बताया जाता है कि किसकी क्या गलती है। कई समझ जाते हैं तो सब कुछ भूलाकर घर लौट जाते है। कई नहीं भी मानते।
-आज की युवा पीढ़ी के लिए क्या कहना चाहेगी?
– युवा पीढ़ी से यही कहंूगी कि गलत संगत में न पढ़े। माता-पिता का कहा मानें। जितना कम हो मोबाइल का उपयोग करें।

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