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ग्वालियर

मजाक बनी डिजिटल डिग्री 

उच्चशिक्षा मंत्रालय ने करीब तीन वर्ष पूर्व फर्जी मार्कशीटों के बढ़ते प्रकरणों पर रोक लगाने के लिए जीवाजी यूनिवर्सिटी (जेयू) सहित प्रदेश के सभी सभी परंपरागत यूनिवर्सिटियों को डिजिटल डिग्री देने के निर्देश दिए थे। करीब चार साल में 38 से ज्यादा छोटी-बड़ी बैठकें भी हो गईं, लेकिन नतीजा शून्य रहा है। 

ग्वालियरJul 17, 2017 / 06:58 pm

avdesh shrivastava

 Jivaji University

Jivaji University


ग्वालियर. उच्चशिक्षा मंत्रालय ने करीब तीन वर्ष पूर्व फर्जी मार्कशीटों के बढ़ते प्रकरणों पर रोक लगाने के लिए जीवाजी यूनिवर्सिटी (जेयू) सहित प्रदेश के सभी सभी परंपरागत यूनिवर्सिटियों को डिजिटल डिग्री देने के निर्देश दिए थे। करीब चार साल में 38 से ज्यादा छोटी-बड़ी बैठकें भी हो गईं, लेकिन नतीजा शून्य रहा है। छात्र हित के मामलों को तवज्जों न मिलना सभी विवि की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह लगाता है। दरअसल इस अभियान की शुरुआत पूर्व उच्चशिक्षा मंत्री उमाशंकर गुप्ता ने की थी। उनका मानना था कि कई जालसाज किसी भी विवि की डिग्री तैयार कर उच्चशिक्षा को चपत लगा रहे हैं। वे अधिकारियों के सील साइन असली जैसे बनाकर करोड़ों रुपए कमा रहे हैं। इस बात की पुष्टि समय-समय पर ग्वालियर के साथ भोपाल, इन्दौर में पकड़ी फर्जी मार्कशीटों से हुई हैं। प्रदेश में ग्वालियर की जेयू, भोपाल की बीयू और इन्दौर की देवी अहिल्याबाई विवि की सैंकड़ों फर्जी मार्कशीट को पुलिस ने जब्त किया था। 
 डिजिटल डिग्री हाईटेक होने के कारण फर्जीवाड़े से कोसों दूर है। इसमें विवि द्वारा प्रत्येक मार्कशीट को विशेष कोड दिया जाता है। इसका सत्यापन ऑनलाइन इसी कोड से होता है। अच्छी बात यह है कि इस कोड को कोई देख नहीं सकता, सिर्फ विशेष सॉफ्टवेयर से इसकी पहचान होती है। इसका कागज और प्रिंट बिल्कुल अलग होते हैं। जेयू में बीते तीन सालों में प्रबंधन ने करीब आधा दर्जन कंपनियों का प्रजेंटेशन तो देखा, लेकिन किसी भी निर्णय तक नहीं पहुंच सके हैं। यही हाल बांकी यूनिवर्सिटी का है। सूत्रों के अनुसार अभी तक किसी भी विवि ने इस मामले में रुचि नहीं दिखाई है। जिससे मार्केट में फर्जी डिग्रियों का कारोबार धड़ल्ले से चल रहा है। जिसका खामियाजा कहीं न कहीं अच्छे छात्रों को उठाना पड़ रहा है।

डिजिटल डिग्री के लिए हमने सभी विवि को पूर्व में निर्देशित किया था। यह मामला मेरे कार्यकाल से पूर्व का है। यह एक महत्वपूर्ण विषय है, आगामी समय में होने वाली कुलपतियों की बैठक में इस पर विचार किया जाएगा।
आशीष उपाध्याय, पीएस, उच्चशिक्षा विभाग
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