अनिल चौधरी ने हाईस्कूल में पढ़ रहे अपने बेटे आदित्य को भी शामिल कर लिया है। अब पिता-पुत्र दोनों पहले पौधे खरीदते हैं और फिर कार में रखकर जगह देखने निकल पड़ते हैं। शहर में जहां भी खाली जगह दिखती है, वहां पौधे रोपकर आगे बढ़ जाते हैं। खास बात यह है कि पौधे लगाने के बाद हर दूसरे या तीसरे दिन इनको देखने के लिए भी जाते हैं ताकि अगर कोई नुकसान या दवा आदि की जरूरत हो तो पूर्ति की जा सके।
शहर में इन जगहों पर रोपे पौधे पिता-पुत्र ने शहर में पौधे रोपने के लिए डीआरडीई के सामने की खाली जगह को सबसे पहले चुना था। इसके साथ गांधी रोड पर सडक़ किनारे की खाली जगह, महलगांव पहाड़ी क्षेत्र के आसपास पौधे रोपे हैं। इनके अलावा शहर में और शहर की सीमा के आसपास मंदिरों के आसपास खाली भूमि पर पौधे रौपते हैं।
हरियाली के प्रति दीवानगी इतनी है कि चौधरी और उनका बेटा शहर से बाहर जाते समय कार में पौधे रखकर ले जाते हैं। बीच में हाइवे के किनारे जहां भी जल स्रोत हो वहां वाहन रोकते हैं और गड्ढा खोदकर एक पौधा रोप देते हैं। इससे पौधे को नमी मिलती रहती है और सूखता नहीं है।
इन पौधों का करते हैं चुनाव पर्यावरण संरक्षण के लिए किए जा रहे इस प्रयास में प्रकृति प्रेमी इंजीनियर पौधों के चयन में भी सावधानी बरतते हैं। जब भी पौधे खरीदने जाते हैं, तो आम, नीम, पीपल, बरगद, जामुन, पाखर, आंवला, ऊमर, अमरूद जैसे घने छायादार और फलदार पेड़ों को प्राथमिकता पर रखते हैं। इसके बाद फूलों के पेड़ों में कचनार, गुलमोहर लगाने की कोशिश रहती है।