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ग्वालियर

निगम में हुए १ करोड १७ लाख के घोटाले की फिर जांच से अदालत का इंकार

आरोपियों के आवेदनों को विशेष न्यायालय ने किया खारिज, आरोपी अजय पांडवीय को डिस्चार्ज किए जाने का आवेदन भी खारिज

ग्वालियरFeb 18, 2020 / 12:05 am

Rajendra Talegaonkar

निगम में हुए १ करोड १७ लाख के घोटाले की फिर जांच से अदालत का इंकार

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ग्वालियर। विशेष न्यायालय ने नगर निगम के जलप्रदाय विभाग में हुए एक करोड़ १७ लाख ५० हजार रुपए से अधिक के घोटाले की फिर जांच कराए जाने के आरोपियों के आवेदन को खारिज कर दिया। आरोपियों ने कहा था कि इस मामले में लोकायुक्त ने सही जांच नहीं की है इसलिए इस मामले की फिर से जांच कराई जाए। वहीं न्यायालय ने विभाग के तत्कालीन सहायक यंत्री अजय पांडवीय को यह कहते हुए डिस्चार्ज करने से इंकार कर दिया कि उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों के पर्याप्त प्रमाण मौजूद हैं। नगर निगम के जलप्रदाय विभाग के तत्कालीन सहायक यंत्री अजय पांडवीय, तत्कालीन कार्यपालन यंत्री केके श्रीवास्तव तथा तत्कालीन कार्यपालन यंत्री आरके बत्रा ने इस मामले की फिर से जांच कराए जाने के लिए आवेदन दिया था। न्यायालय ने सभी के आवेदनों को खारिज करते हुए कहा कि इस मामले की जांच के दौरान उन्हें पर्याप्त अवसर प्रदान किया गया। प्रकरण में उनके खिलाफ जो तथ्य है उसे देखते हुए फिर से जांच के आवेदन को स्वीकार नहीं किया जा सकता है। दो हजार फर्जी फाइलें की थीं तैयार नगर निगम के जलप्रदाय विभाग में हुए इस घोटाले की शिकायत पर लोकायुक्त पुलिस ने मामले को जांच में लिया था। शिकायत में बताया गया कि अधिकारियों व ठेकेदारों ने दो हजार से अधिक फर्जी फाइलें तैयार कर भुगतान प्राप्त कर नगर निगम को आर्थिक नुकसान पहुंचाया है। लोकायुक्त पुलिस ने जब जांच शुरु की तो उसे एेसी ११७५ फर्जी फाइलें हाथ लगी थीं। बाकी फाइलें अधिकारियों ने ठिकाने लगा दी थीं। वर्ष २००४ में संधारण कार्य के नाम पर योजनाबद्ध तरीके से ११७५ फाइलें तैयार की थीं। निविदा के झंझट से बचने के लिए प्रत्येक फाइल १० हजार रुपए की तैयार की। जहां हैंडपंप नहीं थे, वहां कर दी उनकी मरम्मतफर्जीवाडा करने वालों ने यह नहीं देखा कि जो फाईल बनाई गई है वहां हैंडपंप है भी या नहीं। जांच में जहां हैंडपंप की मरम्मर करना बताया गया था वहां हैंडपंंप ही नहीं पाए गए। इसी तरह जहां नलकूप की मरम्मत करना बताया गया वहां भी नलकूप नहीं थे। इस भ्रष्टाचार में चुनिंदा अधिकारी और उनके प्रिय ठेकेदार शामिल थे। जो सामान खराब बताया गया वह स्टोर में जमा नहीं कराया गया। लोकायुक्त पुलिस ने इस मामले में पूर्व निगम आयुक्त विवेक सिंह सहित ११ आरोपियों पर जांच के बाद धारा ४२०, ४७१, १२० बी के तहत मामला दर्ज कर चालान पेश किया था। एक भी तरीके का नहीं हुआ पालनविशेष लोक अभियोजक अरविंद श्रीवास्तव का कहना था कि नगर निगम में तीन तरीकों से काम कराया जाता है लेकिन इन फाइलों के निर्माण में एक भी तरीके का उपयोग नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि अगर किसी क्षेत्र में कोई कार्य कराना हो तो पाष्ज्र्ञद अपने लेटर पेड पर निगम को पत्र लिखता है इसके बाद उसकी फाइल तैयार होती है। क्षेत्र का अधिकारी यदि उस क्षेत्र में समस्या है तो उस पर फाइल तैयार कर उसे भेजता है, जनता द्वारा ज्ञापन सौंपे जाने पर भी फाइल तैयार कर कार्य कराया जाता है। इस मामले में न तो पार्षद और न ही जनता और न ही अधिकारी ने कोई फाइल भेजी थी।

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