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गुरुनानक देव जयंती: नानकदेवजी से ही पहली बार मिला था देश को ‘हिंदुस्तान’ नाम! 

locationग्वालियरPublished: Nov 13, 2016 03:40:00 pm

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rishi jaiswal

1507 में गुरुनानक जी यात्रा के लिए निकल पड़े। 1521 तक उन्होंने भारत, अफगानिस्तान, फारस और अरब के प्रमुख स्थानों का भ्रमण किया। कहते हैं कि उन्होंने चारों दिशाओं में भ्रमण किया था। लगभग पूरे विश्व में भ्रमण के दौरान नानक देव के साथ अनेक रोचक घटनाएं घटित हुईं। 

guru nanak ji

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ग्वालियर। सिख धर्म के दस गुरुओं की कड़ी में प्रथम हैं गुरु नानक। भारतीय संस्कृति में गुरु का महत्व आदिकाल से ही रहा है। गुरु नानकदेव से मोक्ष तक पहुंचने के एक नए मार्ग का अवतरण होता है। इतना प्यारा और सरल मार्ग कि सहज ही मोक्ष तक या ईश्वर तक पहुंचा जा सकता है। 

कबीर साहब ने कहा था कि गुरु बिन ज्ञान न होए साधु बाबा। तब फिर ज्यादा सोचने-विचारने की आवश्यकता नहीं है बस गुरु के प्रति समर्पण कर दो। हमारे सुख-दु:ख और हमारे आध्यात्मिक लक्ष्य गुरु को ही साधने दो।
‘ज्यादा सोचोगे तो भटक जाओगे। अहंकार से किसी ने कुछ नहीं पाया। सिर और चप्पलों को बाहर ही छोड़कर जरा अदब से गुरु के द्वार खड़े हो जाओ बस। गुरु को ही करने दो हमारी चिंता।’




कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन 1469 को राएभोए के तलवंडी नामक स्थान में, कल्याणचंद (मेहता कालू) नामक एक किसान के घर गुरु नानक का जन्म हुआ। उनकी माता का नाम तृप्ता था। तलवंडी को ही अब नानक के नाम पर ननकाना साहब कहा जाता है, जो वर्तमान में पाकिस्तान में है।
कहते हैं कि नानकदेवजी से ही हिंदुस्तान को पहली बार हिंदुस्तान नाम मिला। लगभग 1526 में जब बाबर द्वारा देश पर हमला करने के बाद गुरु नानकदेवजी ने कुछ शब्द कहे थे तो उन शब्दों में पहली बार हिंदुस्तान शब्द का उच्चारण हुआ था-
”खुरासान खसमाना कीआ 
हिंदुस्तान डराईआ।” 



माना जाता है कि 16 वर्ष की आयु में उनका विवाह हुआ। श्रीचंद और लक्ष्मीचंद नाम के दो पुत्र भी उन्हें हुए। 1507 में वे अपने परिवार का भार अपने श्वसुर पर छोड़कर यात्रा के लिए निकल पड़े। 1521 तक उन्होंने भारत, अफगानिस्तान, फारस और अरब के प्रमुख स्थानों का भ्रमण किया। कहते हैं कि उन्होंने चारों दिशाओं में भ्रमण किया था। लगभग पूरे विश्व में भ्रमण के दौरान नानक देव के साथ अनेक रोचक घटनाएं घटित हुईं। इसके बाद 1539 में उन्होंने देह त्याग दी।

गुरुद्वारा जन्म स्थान : गुरुद्वारा जन्म स्थान सिख धर्म का सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ है। इसे महाराजा रंजीत सिंह ने बनवाया था। इसी स्थान पर सिखों के पहले गुरु, गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ था। यह उनके पिता के घर राय भोई की तलवंडी में ही स्थित है। इसे ननकाना साहब के नाम से जाना जाता है। अब यह गुरुद्वारा लाहौर, पाकिस्तान में आता है।


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यह हैं नानकजी के दस सिद्धांत 
1. ईश्वर एक है।
2. सदैव एक ही ईश्वर की उपासना करो।
3. जगत का कताज़् सब जगह और सब प्राणी मात्र में मौजूद है।
4. सवज़्शक्तिमान ईश्वर की भक्ति करने वालों को किसी का भय नहीं रहता।
5. ईमानदारी से मेहनत करके उदरपूतिज़् करना चाहिए।
6. बुरा कायज़् करने के बारे में न सोचें और न किसी को सताएं।
7. सदा प्रसन्न रहना चाहिए। ईश्वर से सदा अपने को क्षमाशीलता मांगना चाहिए।
8. मेहनत और ईमानदारी से कमाई करके उसमें से जरूरतमंद को भी कुछ देना चाहिए।
9. सभी स्त्री और पुरुष बराबर हैं।
10. भोजन शरीर को जिंदा रखने के लिए जरूरी है पर लोभ-लालच व संग्रहवृत्ति बुरी है।



इसके बाद सिखों में कई गुरु हुए जिनमें से 6वें सिख गुरू हरगोविंद साहब थे। वहीं ग्वालियर का किला जब मुगलों के कब्जे में आया तो उन्होंने ग्वालियर के इस किले में 52 अन्य राजाओं के साथ 6वें सिख गुरु हरगोविंद साहब को कैद रखा था। कहा जाता है कि किसी रूहानी हुक्म से बादशाह ने आज के दिन ही गुरू हरगोविंद साहब को उनकी इच्छा के मुताबिक 52 राजाओं के साथ रिहा किया था। इसकी याद में किले पर गुरुद्वारा दाता बंदी छोड़ का निर्माण कराया गया।


 
52 कलियों के अंगरखे को पकड़ बाहर आए राजा
जहांगीर के मुताबिक उन 52 राजाओं को रिहा करना मुगल साम्राज्य के लिए खतरनाक था, लिहाजा उसने कूटनीतिक आदेश दिया। जहांगीर का हुक्म था कि जितने राजा गुरू हरगोविंद साहब का दामन थाम कर बाहर आ सकेंगे, वो रिहा कर दिए जाएंगे। 
सिख गरु चाहते थे कि उनके साथ कैद सभी राजा रिहा हों, लिहाजा गुरु जी के भाई जेठा ने युक्ति सोची। जेल से रिहा होने पर नया कपड़ा पहनने के नाम पर 52 कलियों का अंगरखा सिलवाया गया। गुरू जी ने उस अंगरखे को पहना, और हर कली के छोर को 52 राजाओं ने थाम लिया। इस तरह सब राजा रिहा हो गए।

 गुरूजी के इस कारनामे की वजह से उन्हें दाता बंदी छोड़ कहा गया। बाद में उनकी इस दयानतदारी की याद बनाए रखने के लिए ग्वालियर किले पर उस स्थान पर एक गुरुद्वारा स्थापित कराया गया, जहां गुरु हरगोविंद साहब 52 राजाओं के साथ कैद रहे थे। गुरु जी के नाम पर इसका नाम भी गुरुद्वारा दाता बंदी छोड़ साहिब रखा गया।


 
गुरू हरगोविंद साहब के नाम पर बना गुरु द्वारा
‘गुरुद्वारा दाता बंदी छोड़’ दरअसल 6वें सिख गुरु हरगोबिंद साहिब का स्मारक है। इतिहास के अनुसार राजा जहांगीर ने गुरु गोबिंद साहिब को ग्वालियर के किले में बंदी बनाकर लगभग दो साल तीन माह तक कैद में रखा गया था। गुरु हरगोबिंद सिंह की याद में 1968 में संत बाबा अमर सिंह जी ने गुरुद्वारे की स्थापना करवाई थी। करीब 100 किलो सोने का इस्तेमाल कर गुरुद्वारे का दरबार बनाया गया है। गुरु हरगोबिंद सिंह की याद में वर्ष 1970 में गुरुद्वारा दाता बंदी छोड़ बनाया गया। यह देश भर के सिखों के लिए महत्वपूर्ण धामिज़्क स्थान है।
यह हैं सिखों के पवित्र गुरुद्वारे 
गोल्डन टेंपल: गोल्डन टेंपल का असली नाम गुरुद्वारा हरमंदिर साहिब और श्री दरबार साहिब है। सन् 1601 में इस गुरुद्वारे का निर्माण पूरा हुआ था। इस गुरुद्वारे में 4 दरवाजे हैं, जिससे यह संकेत दिया गया है कि हर धर्म के व्यक्ति का यहां पर स्वागत है। 19वीं शताब्दी में महाराजा रंजीत सिंह ने इसे पूरी तरह सोने से ढकवा दिया। यह गुरुद्वारा अमृत सरोवर के बीच में स्थित है। इसका गुंबद उलटे रखे कमल के फूल जैसा है।



गुरुद्वारा नानक दरबार: गुरुद्वारा नानक दरबार दुबई में स्थित है। गल्फ देशों में यह सबसे बड़ा गुरुद्वारा है। इसे 17 जनवरी 2012 को शुरू किया गया था। इसे इटैलियन मार्बल से बनाया गया है और इसमें एक 5 स्टार किचन भी है।

गुरुद्वारा हेमकुण्ड साहिब : गुरुद्वारा हेमकुण्ड साहिब हिमालय की गोद में यानी उत्तराखंड में बसा है। हेमकुण्ड का अर्थ है बर्फ का कुंड। गुरुद्वारा समुद्र से 15,200 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां तक पहुंचने का एकमात्र रास्ता गोबिंदनाथ से होकर गुजरता है। इसे गुरु गोबिंद सिंह जी की याद में बनाया गया है। इसका आकार एक सितारे जैसा है। इसके पास ही अमृत सरोवर नाम की एक पवित्र झील बहती है।



गुरुद्वारा बंगला साहिब : गुरुद्वारा बंगला साहिब दिल्ली में कनॉट प्लेस से आधा किलोमीटर की दूरी पर है। गुरु हरकृष्ण देव जी के सम्मान में इसका निर्माण किया गया है। सन् 1664 में वे यहां आकर रुके थे। तभी से इसे बंगला साहिब गुरुद्वारे के नाम से जाना जाता है। इस गुरुद्वारे के प्रांगण में स्थित तालाब के पानी को अमृत के समान जीवनदायी और पवित्र माना जाता है। इस गुरुद्वारे में सिखों के इतिहास को दशातज़ एक म्यूजियम भी है। इस गुरुद्वारे का गुंबद सोने का है और फिलहाल अंदर के दरबार को भी सोने से ढका जा रहा है।

गुरुद्वारा दाता बंदी छोड़: गुरुद्वारा दाता बंदी छोड़ ग्वालियर में स्थित है। इसे सिखों के छठे गुरु हरगोबिंद साहिब की याद में बनवाया गया है। 
उन्होंने तत्कालीन मुगल शासक जहांगीर की कैद से 250 राजपूत राजाओं को आजाद किया था। यह गुरुद्वारा जहांगीर और गुरु हरगोबिंद जी के बीच चली लंबी लड़ाई का प्रतीक है। इस गुरुद्वारे के दरवाजे सोने के हैं।

गुरुद्वारा बेर साहिब : कपूरथला के सुल्तानपुर शहर में गुरुद्वारा बेर साहिब है। इसी जगह से सिख गुरु के तौर पर गुरु नानक देव जी की यात्रा की शुरुआत हुई थी। नानक जी जब काली बेन नदी में स्नान के लिए आए तो उन्हें नदी में एक प्रकाश दिखा। वे उस प्रकाश के साथ गायब हो गए और 3 दिन बाद सिख गुरु बनकर लौटे। उन्होंने यहां एक बेर का पेड़ लगाया था जो सैलानियों के लिए आकर्षण का प्रमुख केंद्र है। गुरु नानक देव जी यहां करीब 15 सालों तक रहे। 



मणिकरण गुरुद्वारा : मणिकरण गुरुद्वारा पार्वती और ब्यास नदी के बीच में स्थित है। यह मनाली में पार्वती पर्वत पर स्थित है। जमीन से इसकी ऊंचाई 1760 मीटर है। कुल्लू से यह 45 किलोमीटर की दूरी पर है। गुरु नानक देव जी 1574 में अपने पांच अनुयायिओं सहित यहां आए थे जिनमें भाई बाला और भाई मदानज़ भी थे। यह स्थान न सिर्फ धार्मिक कारणों से प्रसिद्ध है बल्कि यहां की खूबसूरती भी देखते ही बनती है। इस गुरुद्वारे में एक साथ 4000 भक्त रुक सकते हैं। गुरु नानक देव जी को यहां गर्म पानी का एक झरना मिला था, जिसमें उन्होंने बिना पके खाने को गायब कर दिया था और वह खाना पक कर दोबारा प्रकट हुआ था। यह वाक्या भाई मदार्न की आत्मकथा में भी दर्ज है।

गुरुद्वारा श्री गुरु सिंह सभा : गुरुद्वारा श्री गुरु सिंह सभा यूरोप में है। लंदन के पार्क एवेन्यू के पास साउथ हॉल में यह गुरुद्वारा बना हुआ है। 50वें दशक में लंदन पहुंचे सिखों ने इस गुरुद्वारे को शुरू किया था। इसे ग्रेनाइट पत्थर से बनाया गया है और इसका संगमरमर का गुंबद सोने के पानी से ढका गया है। इस गुरुद्वारे में एक साथ 3000 भक्त रह सकते हैं। नमस्ते लंदन और पटियाला हाउस जैसी कई फिल्मों की शूटिंग भी यहां की गई है।



गुरु तेग बहादुर साहिब गुरुद्वारा : ब्रह्मपुत्र नदी के पास असम के ढुबरी शहर में यह गुरुद्वारा स्थित है। गुरु नानक देव जी 1505 ईसवी में ढाका से असम की तरफ आते हुए ढुबरी आए थे। नानक देव जी के बाद 9वीं शताब्दी में गुरु तेग बहादुर सिंह यहां आए थे। इस गुरुद्वारे में आयताकार बरामदे में गुरु ग्रंथ साहिब की तीन प्रतियां रखी गई हैं।
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