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हिंदूधर्मावलंबी होते हैं एकत्रित
भले ही आज यहां वहां सांप्रदायिकता की स्थिति नजर आती हो,लेकिन वर्षों पुरानी परंपरएं आज भी सांप्रदायिक सद्भाव को बढ़ाने का काम कर रही हैं। कुछ यही स्थिति है कि चंबस संभाग के श्योपुर शहर से मानपुर क्षेत्र के मेवाड़ा गांव में जहां पीर बाबा की मजार पर हर साल गुरुपूर्णिमा का मेला लगता है। इस अनोखे मेले में एक सूफी संत पीर बाबा की मजार पर हिंदूधर्मावलंबी एकत्रित होते हैं और पूजा करते हैं। जाहिर है 99 फीसदी हिंदू आबादी वाले गांव में एक सूफी संत की मजार पर मेला और पूजा-अर्चना करना और वो भी गुरुपूर्णिमा के दिन,अपने आप में एक सांप्रदायिक सद्भाव की अद्वितीय तस्वीर है। इतना ही नहीं इस मेले में हजारों की संख्या में भक्त बाबा का प्रसाद लेने के लिए आते है।
हिंदूधर्मावलंबी होते हैं एकत्रित
भले ही आज यहां वहां सांप्रदायिकता की स्थिति नजर आती हो,लेकिन वर्षों पुरानी परंपरएं आज भी सांप्रदायिक सद्भाव को बढ़ाने का काम कर रही हैं। कुछ यही स्थिति है कि चंबस संभाग के श्योपुर शहर से मानपुर क्षेत्र के मेवाड़ा गांव में जहां पीर बाबा की मजार पर हर साल गुरुपूर्णिमा का मेला लगता है। इस अनोखे मेले में एक सूफी संत पीर बाबा की मजार पर हिंदूधर्मावलंबी एकत्रित होते हैं और पूजा करते हैं। जाहिर है 99 फीसदी हिंदू आबादी वाले गांव में एक सूफी संत की मजार पर मेला और पूजा-अर्चना करना और वो भी गुरुपूर्णिमा के दिन,अपने आप में एक सांप्रदायिक सद्भाव की अद्वितीय तस्वीर है। इतना ही नहीं इस मेले में हजारों की संख्या में भक्त बाबा का प्रसाद लेने के लिए आते है।
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की जाती है पीर बाबा की पूजा
स्थानीय निवासियों के मुताबिक लगभग पांच सौ साल पहले एक सूफी संत पीर बाबा ग्राम मेवाड़ा में रहते थे और यहां शांति व भाईचारे का संदेश देते थे। शांति व भाईचारे का संदेश देते हुए उन्होंने यहीं जिंदा समाधि ली थी जिसके बाद उनके अनुयायियों ने उनकी मजार बनाई और तभी से हिंदूधर्मावलंबियों द्वारा पीर बाबा की पूजा-अर्चना की जाती है।
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सांप्रदायिक सद्भाव साफ झलकता है
यूं तो गांव के लोग अन्य दिनों में भी पीर बाबा की मजार पर जाते हैं, लेकिन गुरुपूर्णिमा के दिन का विशेष महत्व है। जिसके चलते गुरुपूर्णिमा पर यहां मेवाड़ा के लोग एकत्रित होते हैं, बल्कि वो लोग भी आते हैं जो या मेवाड़ा छोडकऱ बाहर रहे रहे हैं, या फिर यहां के निवासियों के रिश्तेदार हैं। यही वजह है कि मेले में सांप्रदायिक सद्भाव साफ झलकता है।
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चूरमा बाटी का लगता है भोग
हिंदू धर्मावलंबियों के प्रमुख त्योहार गुरुपूर्णिमा पर मेवाड़ा में पीर बाबा की मजार पर लगने वाले इस मेले के खास बात यह है कि यहां मेवाड़ा के हर घर से भोग जाता है और वो भी चूरमा-बाटी का। यही वजह है कि लगभग 300 घरों के ग्राम मेवाड़ा में गुरुपूर्णिमा के दिन चूरमा-बाटी बनाई जाती है और परिजनों के खाने से पहले पीर बाबा की मजार पर भोग लगाया जाता है। यही वजह है कि गांव में गरीब और अमीर सभी चूरमा बाटी बनाकर कूंडा (भोग)चढ़ाते हैं। वहीं इस मेले में हजारों की संख्या में भक्त बाबा का प्रसाद लेने आते हैं।