scriptGWALIOR FORT: कई राज दफ़न हैं यहां, पर्यटकों के लिए ख़ास है ये जगह | Gwalior Fort have all the religions and culture in it, Jainism Art Flourished here | Patrika News
ग्वालियर

GWALIOR FORT: कई राज दफ़न हैं यहां, पर्यटकों के लिए ख़ास है ये जगह

ग्वालियर किला व जयविलास पैलेस देश-दुनिया में ख्यात है। किले पर जहां भारतीय स्थापत्य की दृष्टि से भव्य महल है, वही हिन्दू व जैन मंदिर एवं शैलोत्कीर्ण गुफाएं भी हैं, जिनमें कई राज आज भी दफन हैं। 

ग्वालियरSep 30, 2015 / 04:04 pm

ग्वालियर ऑनलाइन

Gwalior Fort and History

Gwalior Fort and History

ग्वालियर। ग्वालियर किला व जयविलास पैलेस देश-दुनिया में ख्यात है। किले पर जहां भारतीय स्थापत्य की दृष्टि से भव्य महल है, वही हिन्दू व जैन मंदिर एवं शैलोत्कीर्ण गुफाएं भी हैं, जिनमें कई राज आज भी दफन हैं। तोमर वंशी राजाओं के शासन काल में हुए कला एवं सांस्कृतिक विस्तार ने ग्वालियर किले को एक नई पहचान दी।

 आगरा से महज 110 किलोमीटर दूर ऐतिहासिक शहर ग्वालियर है। जिसे ऋषि गालव की नगरी कहां जाता है। यहां का ग्वालियर किला व जयविलास पैलेस देश-दुनिया में ख्यात है। इन दोनों ऐतिहासिक स्थलों को देखने के लिए प्रतिदिन बड़ी संख्या में विदेशी पर्यटक पहुंचते हैं। ग्वालियर का उल्लेख पौराणिक गाथाओं में भी मिलता है।



ग्वालियर किला गोपाचल पर्वत पर स्थिति है। विभिन्न अभिलेखों में गोपाचल पर्वत के अन्य नामों का भी उल्लेख मिलता है, जैसे गोपगिरि, गोप पर्वत, गोपाद्रि व गोपचन्द्र गिरीन्द्र। जैन समुदाय के लिए गोपाचल पर्वत एक पवित्र धर्म स्थली है। यहां प्रतिवर्ष महावीर जयंती पर हजारों श्रद्धालु जुटते हैं। 8वीं से 10वीं शताब्दी में मध्ययुगीन प्रतिहारी कछवाहा (कच्छपघात) शासकों के शासन काल के दौरान वैष्णव, शैव व जैन धर्मों को फलने-फूलने का मौका मिला। खास बात यह है कि साउंड सिस्टम में बालीबुड के महानायक अमिताभ बच्चन की आवाज सुनने को मिलती है।

चतुर्भुज मंदिर
चतुर्भुज मंदिर दौ सौ फीट ऊंचे पहाड़ी चट्टान पर बना है, जो एक पहाड़ी को ऊपर से नीचे की ओर काटकर बनाया है। मंदिर में लगे शिलालेख के अनुसार मंदिर का निर्माण 876-877 ई. में कन्नौज के शासक मिहिर भोज के शासन काल में नियुक्त कोटपाल अल्ल के निर्देशन में बनवाया गया। मंदिर के गर्भगृह में चतुर्भुजी विष्णु भगवान की स्थानक (खड़ी) मूर्ति है। गर्भगृह के सामने स्तंभों पर टिके मुख्य मंडप की छत के नीचे श्रीकृष्ण की लीलाएं उकेरी गई हैं। स्तम्भों पर कलश, कबूतर, घंटियां, देवी-देवताओं व पशुओं की आकर्षक आकृतियां उत्कीर्ण हैं। 

सास-बहू का मंदिर
सास-बहू का मंदिर किले के दक्षिणी भाग में पास-पास बने दो सहस्त्रबाहु मंदिर हैं, जो आज सास-बहू का मंदिर नाम से विख्यात हैं। यहां लगे शिलालेख के अनुसार इन देवालयों का निर्माण सन् 1093 ई. में पालवंश के राजा महिपाल कछवाहा द्वारा करवाया गया था । जनश्रुति के अनुसार उन्होंने बड़ा विष्णु मंदिर अपनी माता और समीप बने छोटे मंदिर को अपनी शिवभक्त पत्नी को समर्पित किया था । संभवत: इन्हीं कारणों से सहस्त्रबाहू मंदिर का नाम सास-बहू का मंदिर होकर रह गया।

तेली का मंदिर
समूचे उत्तर भारत में द्रविड़ आर्य स्थापत्य शैली का समन्वय यहीं ग्वालियर किले पर तेली मंदिर के रूप में देखने को मिलता है। इस मंदिर का वास्तविक नाम तैलंग या तैलंगाना मंदिर रहा होगा। जो बदलते समय के साथ बिगड़ कर तेली का मंदिर कहलाने लगा। लगभग सौ फुट की ऊंचाई लिये किले का यह सर्वाधिक ऊंचाई वाला प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर के निर्माण को लेकर इतिहासकार एकमत नहीं है किन्तु अधिकांश विद्वानों का मत है कि इसका निर्माण कन्नौज के राजा यशोवर्मन ने सन् 750 ई. में करवाया था।

शैलोत्कीर्ण शिल्प एवं जैन प्रतिमाएं
भारतीय इतिहास में पत्थरों पर आकृतियां उकरने की कला शैलोत्कीर्ण शिल्प लगभग २२ सौ वर्ष पुराना है। ग्वालियर किले में विभिन्न स्थानों पर हिन्दू देवताओं व जैन धर्म के तीर्थंकरों की मूर्तियां किले की चट्टानों को काटकर तराशा गया है। किले पर पाई जाने वाली शैलोत्कीर्ण शिल्प को हम दो वर्गों में बाँट सकते हैं। प्रथम वर्ग में 9वीं शताब्दी में प्रतिहार शासनकाल में मंदिरो के अलावा हिन्दू देवी देवताओं की चट्टानों पर उकेरी गई मूर्तिंयां हैं। दूसरे वर्ग में 15वीं शताब्दी में तोमर शासन काल में जैन धर्मावलंबियों द्वारा विभिन्न आकार प्रकार की पद्मासन एवं खड्गासन मुद्रा में चट्टानों पर उकेरी गई जैन मूर्तियां व गुफाएं हैं। जो लोगों के आकर्षण का केंद्र हैं। 

जैन प्रतिमाएं
दूसरे वर्ग की तोमर वंशी काल खंड में बनी जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों की विशालकाय से लेकर छोटी-बड़ी कई प्रतिमाएं हैं । ग्वालियर किले पर छह अलग -अलग स्थानों पर पहाड़ी चट्टानों को काटकर लघु आकार वाले चैत्य गुफा मंदिर बनाए गए हैं। जैन तीर्थंकरों की ये सभी मूर्तियाँ भारतीय शैलोत्कीर्ण मूर्तिशिल्प का श्रेष्ठ उदाहरण हैं। जैन तीर्थंकरों की मूर्तियों को उनके पाद-पाठ पर बने खास चिन्हों से पहचाना जा सकता है। जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर की मूर्ति के नीचे बैल की आकृति है। पाश्र्वनाथ जी की मूर्ति के पाद आधार पर सर्प की आकृति अंकित है। शंख चिन्ह वाली २२वें तीर्थंकर नेमिनाथ भगवान की मूर्तियां हैं तथा सिंह चिन्ह वाली 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी की मूर्ति है।

गोपाचल पर्वत 
गोपाचल पर्वत के पूर्वी भाग में एक पत्थर की बावड़ी समूह में 26 चैत्य गुफाएं हैं, जिनमें तीर्थंकरों की स्थानक व आसनानस्थ मूर्तियां हैं। ये सभी चट्टानों को काटकर बनाई गई हैं। प्रतिमाओं के पाद पाठ पर शिलालेख भी खुदे हुए हैं। सबसे बाईं तरफ एक पत्थर की बावड़ी है।

गुफानुमा प्रवेशद्वार वाली इस बावड़ी की छत को पत्थर के स्तम्भों से टिकाया गया है, जो एक ही चट्टान को काटकर बनाई गई है। गुफा समूह कीदाईं तरफ 26वीं गुफा में प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ की 57 फीट ऊंची प्रतिमा है जो, धेरी गुफा में एक ही चट्टान काटकर अन्दर-अन्दर बनाई गई है। जिसे देखकर शिल्पियों के धैर्य एवं लगन का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। इस गुफा समूह का निर्माण काल 15वीं शताब्दी का है। अब इस गुफा समूह तक पहुँचने के लिए पहाड़ी को काटकर 50 सीढिय़ां बनाई गई हैं।
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