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ग्वालियर

महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों को ज्यादा होता है हीमोफीलिया

महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों को ज्यादा होता है हीमोफीलिया

ग्वालियरApr 18, 2019 / 11:38 am

monu sahu

hemophilia day

महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों को ज्यादा होता है हीमोफीलिया

ग्वालियर। हीमोफीलिया एक ऐसी बीमारी है जिसमें शरीर के बाहर बहता हुआ रक्त जमता नहीं है। इसके कारण चोट या दुर्घटना में यह जानलेवा साबित होती है क्योंकि रक्त के बहने पर बंद ही नहीं होता। यह बीमारी रक्त में थ्राम्बोप्लास्टिन नामक पदार्थ की कमी से होती है। थ्राम्बोप्लास्टिक में खून को शीघ्र थक्का कर देने की क्षमता होती है। खून में इसके न होने से खून का बहना बंद नहीं होता है। जिससे खून का बहना रुकता ही नहीं है। इसे ‘क्लॉटिंग फैक्टर’ भी कहा जाता है। इस फैक्टर की विशेषता यह है कि यह बहते हुए खून के थक्के जमाकर उसका बहना रोकता है। इस रोग में रोगी के शरीर के किसी भाग में जरा सी चोट लग जाने पर बहुत अधिक मात्रा में खून का निकलना आरंभ हो जाता है। इससे रोगी की मृत्यु भी हो जाती है।
महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों को हीमोफीलिया होने का खतरा ज्यादा होता है। इसकी वजह ये है कि महिलाएं आनुवांशिक इकाईयों की वाहक होती हैं। हीमोफीलिया ए और बी प्रभावित लोगों में अन्य की तुलना में लंबे समय तक रक्त स्राव होता है। हीमोफीलिया में रक्त जमता नहीं हैं। रक्त लगातार बहता रहता है, जिसके कारण जान भी जा सकती है। यह बात हीमोफीलिया दिवस पर आयुष मेडिकल एसोसिएशन के राष्ट्रीय प्रवक्ता एवं चिकित्सक डॉक्टर राकेश पांडे ने कही। उन्होंने हीमोफीलिया के बारे में बताते हुए कहा कि रॉयल ब्रिटिश नाम से यह बीमारी प्रचलन में है।
इस बीमारी के होने का कारण रक्त में थ्राम्बोप्लास्टिन पदार्थ की कमी से होता है। इसके बचाव के लिए हेपेटाइटिस बी का वैक्सीन समय से लगवा लें, बिना डॉक्टर की सलाह के दवा न लें। जहां भी यात्रा कर रहे हों तो वहां के अस्पतालों की जानकारी रखें व डॉक्टर का नम्बर अपने पास रखें। उन्होंने इस मौके पर केन्द्र के स्वास्थ्य मंत्रालय को सलाह दी है कि वे देश के सामुदायिक व प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर स्क्रीनिंग टेस्ट फॉर ब्लीडिंग डिस्ऑर्डर जांच के साथ फैक्टर 8 व 9 के इंजेक्शन की सुविधा नि:शुल्क कर देना चाहिए। रक्तस्त्राव के बंद होने से मरीज की जान बचाई जा सकती है। इसके लिए विटामिन के, विटामिन ए, विटामिन सी, कैल्शियम, मिनरल्स व योग में प्राणायाम जरूरी है। डॉ. पांडे ने आम जनता से भी आग्रह किया है कि अचानक यात्रा के दौरान सडक़ दुर्घटना में या कहीं भी ऐसे प्रभावित मरीज दिखें तो तुरन्त निकट के अस्पताल में भर्ती कराकर मदद करें। जिससे ऐसे लोगों की जान बच सके।
कैसे होती है ये बीमारी
बच्चों को हीमोफीलिया की बीमारी अपने माता-पिता से विरासत में मिलती है। इसके मरीजों में फैक्टर 8 की कमी होती है, जिससे शरीर में कटने या खरोंच लगने पर रक्त लगातार बहता है। शरीर में इस फैक्टर की कमी होने पर जोड़ों में तेज दर्द होता है। दर्द असहनीय होने पर बच्चे चिल्लाने लगते हैं और बेचैनी बढ़ जाती है। काफी महंगा होने के कारण सरकारी अस्पताल इसके अभाव का बहाना कर मरीजों को टाल देते हैं। फैक्टर 8 एक आवश्यक रक्त-थक्का बनाने वाला प्रोटीन है, जिसे एंटी-हीमोफिलिक कारक के रूप में भी जाना जाता है।
हीमोफीलिया क्या है
हीमोफीलिया बीमारी दो तरह की होती है हीमोफीलिया ए और हीमोफीलिया बी। यह एक अनुवाशिंक बीमारी होती है। इस बीमारी में शरीर में रक्त के थक्के बनने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है, जिसके कारण, चोट लगने पर रक्त जम नहीं पाता और वह असामान्य रूप से बहता रहता है। इस बीमारी पर तब तक लोगों का ध्यान नहीं जाता, जब तक कि उन्हें किसी कारण से गंभीर चोट न लगे और उनमें रक्त का बहना न रुकें।

हीमोफीलिया बीमारी का लक्ष्ण
शरीर में नीले नीले निशानों का बनना, नाक से खून का बहना, आंख के अंदर खून का निकलना तथा जोड़ों की सूजन आदि इसके लक्ष्ण है।

बचाव के तरीके
चोट लगने की स्थिति में खून जमाने और घाव भरने के लिए मुंह से खाने वाली दवाएं और चोट वाली जगह पर लगाने की दवाएं आदि भी दी जाती हैं। मांसपेशियों और हड्डियों की मजबूती के लिए नियमित व्यायाम करें। यह आपकी सामान्य तंदुरूस्ती के लिए भी जरूरी है और आपके जोड़ों को भी स्वस्थ रखने और उनमें इंटरनल ब्लीडिंग से बचाव में लाभदायक होगा। अगर आपका बच्चा बाहर खेल रहा है या साइकिल चलाना सीख रहा है अथवा चला रहा है तो आपको सावधानी बरतने की जरूरत है। खेलते समय हेलमेट, एल्बो और नी पैड्स एवं प्रोटेक्टिव जूते पहनाकर रखें।

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