इस बार होलिका दहन सर्वार्थ सिद्धि और वृद्धि योग में उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में प्रदोष युक्त पूर्णिमा में किया जाएगा। वैसे तो तिथियों के और भद्रा के फेर में अक्सर पर्व-त्योहार आते रहते हैं, लेकिन भद्रा तिथि में होलिका दहन करना और राखी बांधना शास्त्रों में निषेध कहा गया है। होलिका दहन के लिए बाजारों में गुलरिया, कंडे आदि की बिक्री शुरू हो गई है। सराफा बाजार में 25 से 30 हजार कंडों की सबसे बड़ी होली सहित लगभग डेढ़ हजार स्थानों पर होलिका दहन होगा।
पुराणों के अनुसार भद्रा भगवान सूर्य की पुत्री और शनिदेव की बहन है। पंचांग शुद्धि में भद्रा का खास महत्व होता है। यह प्राय: अशुभ दृष्टि वाली है। ज्योतिष में तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण से मिलकर पंचांग बनता है। इनमें से सातवें करण विष्टि का नाम ही भद्रा है। यह सदैव गतिशील होती है। वैसे तो भद्रा का अर्थ मंगल करने वाला होता है, लेकिन इस अर्थ के विपरीत विष्टि या भद्रा करण में शुभ कार्य निषेध बताए गए हैं। वैसे लगभग प्रत्येक पूर्णिमा पर भद्रा आती है, लेकिन होली व रक्षाबंधन पर्व पर इसका प्रभाव अधिक रहता है। अलग-अलग राशियों के अनुसार भद्रा तीनों लोकों में घूमती है।
17 मार्च से होलाष्टक की शुरूआत हुई थी। ये 24 मार्च तक चलेंगे। इस दौरान सभी शुभ कार्य बंद रहते हैं। इन दिनों देवी-देवताओं की आराधना चलती है। होलाष्टक को लेकर एक पौराणिक कथा है कि राजा हिरण्यकश्यप बेटे प्रहलाद को भगवान विष्णु की भक्ति से दूर करना चाहते थे और इसके बाद 8वें दिन बहन होलिका, जिसे आग में नहीं जलने का वरदान था, वह प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि शैया पर बैठ गई। इस दौरान प्रहलाद बच गए और होलिका जल गई।