तत्कालीन अधिकारी एमपीएस बुंदेला ने जांच रिपोर्ट बनाकर दे दी थी, लेकिन दोषी सरपंच और सचिव पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसी तरह शहर से सटे तिघरा क्षेत्र में दो जगह हरियाली करने का लक्ष्य रखा गया था। यहां सडक़ के एक ओर तो पितृवन तैयार किया गया, जबकि दूसरी ओर हरियाली महोत्सव के अंतर्गत 25 लाख की लागत से सघन पौधरोपण होना था। अब यहां पूरा मैदान खाली है, सिर्फ बोर्ड लगा रह गया है और निरीक्षण के लिए आने वाले अधिकारियों को पता न लगे, इसलिए तत्कालीन पंचायत कर्मियों ने लागत दर्शाने वाली पट्टिका तक उखाड़ दी है। शहर के जिन 120 पार्कों में हर साल पौधे लगाए जा रहे हैं, उनमें न तो पौधे पेड़ बनते दिख रहे हैं और न बच्चों को खेलने के लिए छाया हो सकी है।
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दरअसल, कुछ दिन पहले कलेक्टर अनुराग चौधरी ने बीते दस साल के दौरान लगाए गए पौधों की उत्तरजीविता की वास्तविकता जानने के लिए ऑडिट कराने का निर्देश दिया है। इस दौरान नगर निगम सहित अन्य नगरीय निकाय और 256 पंचायतों में लगाए गए पौधों की लागत, संख्या और वर्तमान स्थिति का पूरा ब्यौरा देना पड़ेगा। अचानक मांगे इस ब्यौरे के बाद विभागीय स्तर पर आनन-फानन में रिपोर्ट तैयार करने का काम किया जा रहा है, ताकि बेहतर परिणाम दर्शाकर लीपापोती की जा सके, जबकि वास्तविकता यह है कि 9 साल में 56 करोड़ खर्च कर 10 लाख से अधिक पौधे रोपे गए, लेकिन पहाडिय़ों के अलावा इक्का-दुक्का स्थान ही ऐसे हैं, जहां बेहतर हरियाली है, बाकी सभी जगह हरियाली के नाम पर जमकर घालमेल हुआ है।
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यहां से ली जा सकती है सीख
बंजर पहाडिय़ां अब हरियाली से आच्छादित
यहां सफल हुए व्यक्तिगत प्रयास
यह दे सकता है एक पेड़
अभी तक का खर्च और पौधों की संख्या
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पौधे लगाना है तो यहां संपर्क कर सकते हैं