कारगिल युद्ध पर डायरेक्टर जेपी दत्ता ने फिल्म एलओसी कारगिल भी बनाई और इस फिल्म के जरिए शहीदों की कुर्बानी को बड़े पर्दे पर पेश किया था। लेकिन इस कारगिल युद्ध में ग्वालियर का एक सपूत भी था,जिसने हंसते-हंसते अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे। कारगिल में टाइगर हिल पर फतह के बाद सेकंड राजपूताना राइफल्स के जवान जब वहां तिरंगा फहरा चुके थे तभी वहां पाकिस्तानी सैनिक द्वारा फेंके गए हैंड ग्रेनेड से सरमन सिंह शहीद हो गए थे। वीर सपूत की मां शिवपती देवी कहती है कि सरमन ने देश के लिए अपने प्राणों को न्यौछावर कर ग्वालियर का मान बढ़ाया है।
पाकिस्तानी सैनिकों ने छिपकर किया था हमला
मई 1999 में पाकिस्तानी सेना और आतंकवादियों द्वारा कश्मीर के करगिल में हमला कर दिए जाने के बाद सेकंड राजपूताना राइफल टाइगर हिल पर कब्जा करने का टास्क दिया गया था। पाकिस्तानी सेना और आतंकवादी बंकरों में ऊपर की ओर छिपकर हमला कर रहे थे,जबकि भारतीय सेना नीचे की ओर थी।
इसके बाद भी राजपूताना राइफल ने विपरीत परिस्थितियों में 18 से 20 दिनों में टाइगर हिल पर पहुंचकर पाकिस्तानी सेना और आतंकवादियों पर हमला कर दिया। इसके बाद उन्होंने यहां तिरंगा फहराया। भारतीय सेना के हमले में कुछ पाकिस्तान की सेना के जवान बच गए थे और वे छुपकर बैठे थे। जैसे ही भारतीय सेना ने वहां तिरंगा फहराया इसके बाद ही एक हेंडग्रेनेड वहां आकर गिरा, हैंडगे्रनेड के हमले में 28 जून की रात को सरमन सिंह का बलिदान हो गया।
करगिल युद्ध में शहीद हुए जवानों के प्रति कृतज्ञता जताने के लिए 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस का आयोजन किया जाता है। शहीद सरमन सिंह का शव जब यहां लाया गया था तब उनके बेटे और बेटी छोटे-छोटे थे, अब उनका विवाह हो चुका है। सरमन की पत्नी सरोज कुमारी मुरार में ही रहती हैं। वहीं उनका बेटा सरकार की ओर से आवंटित पेट्रोल पंप चला रहा है।