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ग्वालियर

दोस्त को बचाते हुए ट्रेन हादसे में एक हाथ गंवाया, दो साल बाद बीजिंग में गोल्ड

हौसले का दूसरा नाम है अजीत सिंह। दोस्त को बचाते हुए ट्रेन के नीचे आकर एक हाथ गवां बैठे। चोटें इतनी गंभीर कि डॉक्टरों ने बचने की उम्मीद कम ही बताई

ग्वालियरJul 09, 2019 / 12:56 am

रिज़वान खान

ajeet sing

दोस्त को बचाते हुए ट्रेन हादसे में एक हाथ गंवाया, दो साल बाद बीजिंग में गोल्ड

ग्वालियर. हौसले का दूसरा नाम है अजीत सिंह। दोस्त को बचाते हुए ट्रेन के नीचे आकर एक हाथ गवां बैठे। चोटें इतनी गंभीर कि डॉक्टरों ने बचने की उम्मीद कम ही बताई। पैरों में लकवा मारने का खतरा भी था। फिर भी इलाज शुरू हुआ तो डॉक्टरों ने दो माह में अजीत को पैरों पर खड़ा कर दिया। इसके एक माह बाद ही अजीत निकल पड़े नेशनल गेम्स खेलने। इवेंट में चौथे स्थान पर आए, लेकिन हौसला नंबर 1 पर रहा। अब नजरें थीं बीजिंग-2019 वल्र्ड पैरा एथलेटिक्स ग्रैंड प्री पर। अजीत ने मई में हुई इस चैंपियनशिप में जैवलिन थ्रो की एफ-46 कैटेगरी में गोल्ड मेडल जीतकर देश का का परचम फहराया। यह उपलब्धि हासिल करने वाले वे मध्यप्रदेश के पहले खिलाड़ी हैं।
लक्ष्य- वल्र्ड पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप जीतना
अब अजीत का लक्ष्य दुबई में नवंबर-2019 में होने वाली वल्र्ड पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप एवं पैरालिम्पिक गेम्स-2020 टोक्यो जापान में मेडल जीतना है। इसके लिए दिन में 4 से 6 घंटे समय दे रहे हैं। उनके शरीर के घाव आज भी पूरी तरह नहीं भरे हैं। दर्द लगातार बना रहता है, लेकिन उन्हें परेशान नहीं कर पता। इसकी दो वजह हैं- देश के लिए अच्छा करना और ऐसे लोगों के लिए प्रेरणा बनना जो किसी भी घटना के बाद जिंदगी से हार मान जाते हैं।
पीएचडी के साथ मैडल की तैयारी
इटावा के पास बरथना गांव के मूल निवासी अजीत ने एलएनआईपीई से बीपीएड एवं एमपीएड की पढ़ाई की है। अभी यहीं से पीएचडी कर रहे हैं। साथ ही डॉ. वीके डबास और संतोश दीक्षित के अंडर में प्रैक्टिस में भी जुटे हैं। पिता किसान हैं और बड़े भाई पैरा मिलिट्री में हैं।

डॉक्टरों ने भी खो दी थी उम्मीद
अजीत का एक्सीडेंट लापरवाही से नहीं बल्कि दोस्त को बचाने में हुआ था। 4 दिसंबर 2017 को वे दोस्तों के साथ ट्रेन से ग्वालियर लौट रहे थे। मैहर स्टेशन पर दोस्त पानी लेने उतरा। इतने में गाड़ी चल दी अजीत ने हाथ बढ़ाया और दोनों नीचे गिर गए। अजीत ट्रेन के नीचे आ गए। उन्हें मैहर के अस्पताल ले गए वहां से पहले सतना फिर जबलपुर रेफर किया। सही इलाज मिलने में 12 घंटे लग गए। ब्लीडिंग देख डॉक्टर भी उम्मीद छोड़ चुके थे। इलाज में उनका हाथ काटना पड़ा। दो माह तक इलाज चला और अजीत ग्वालियर आ गए। बचे एक माह में प्रैक्टिस की और नेशनल खेलने पहुंच गए।

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