विविध भावों को व्यक्त करते हैं मास्क
– राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय के नाटक एवं रंगमंच संकाय में मास्क मेकिंग कार्यशाला
विविध भावों को व्यक्त करते हैं मास्क
ग्वालियर. मास्क का इतिहास काफी पुराना है। जब से नाट्य परंपरा शुरू हुई है, तभी से इनका उपयोग किया जाता रहा है। मास्क मुख्य रूप से नाटक में इसलिए इस्तेमाल किए जाते हैं क्योंकि यह पर्टिकुलर एक भाव को मंच पर प्रस्तुत करने में सहायक होते हैं। मास्क के जरिए अभिनेता स्वभाव के मूल स्वरूप को दर्शकों तक पहुंचा पाता है। इसकी परंपरा ग्रीम से लेकर आधुनिक युग तक बनी हुई है। यह बात डॉ.हिमांशु द्विवेदी ने कही, वे यहां राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय के नाटक एवं रंगमंच संकाय में एमपीए प्रथम सेमेस्टर के स्टूडेंट्स के लिए डेढ़ माह से चल रही मास्क मेकिंग कार्यशाला में उद्बोधन दे रहे थे। स्टूडेंट्स को मास्क बनाने की जानकारी देते हुए उन्होंने कहा कि कागज से फेस मास्क बनाते समय किसी व्यक्ति के चेहरे पर पहले तेल का लेप करते हैं उसके बाद उस पर समाचार पत्र के छोटे-छोटे टुकड़े पानी में भिगोकर उसके चेहरे पर लगाया जाता है। जिसके सूखने के बाद एक चेहरा उभरकर मास्क के रूप में सामने आता है। फिर इस पर फेविकोल कॉर्डिंग की जाती है। उसे आकृति देने के लिए पीओपी लगाकर उस पर कलर किया जाता है। मास्क कई प्रकार के होते हैं। इनमें लेदर, कागज, लकड़ी, प्लास्टिक से निर्मित मास्क लोकप्रिय हैं। कार्यशाला में उन्होंने कागज से मास्क बनाने की कला सिखाई। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.पंडित साहित्य कुमार नाहर, विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ.कृष्ण कांत शर्मा एवं वित्त नियंत्रक दिनेश पाठक आदि मौजूद रहे।
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