जैव सूचना विज्ञान का उपयोग कई क्षेत्रों में प्रो. शैलेष ने बताया कि जीव विज्ञान लैब में अनुसंधान करता है और डीएनए व प्रोटीन अनुक्रम, जीन, अभिव्यक्ति आदि एकत्र करता है। कंप्यूटर वैज्ञानिक डेटा को स्टोर और विश्लेषण करने के लिए एल्गोरिदम, उपकरण, सॉफ्टवेयर विकसित करता हैं। बायो इंफॉर्मेटिक्स विभिन्न कार्यक्रमों और उपकरणों के साथ आणविक डेटा का विश्लेषण करके जैविक प्रश्नों का अध्ययन करते हैं। आज जैव सूचना विज्ञान का उपयोग बड़ी संख्या में कई क्षेत्रों में किया जाता है, जिसमें माइक्रोबियल जीनोम अनुप्रयोग, जैव प्रौद्योगिकी, अपशिष्ट सफ ाई, जीन थैली आदि शामिल थे। उन्होंने बताया कि चिकित्सा क्षेत्र में माइक्रोबियल जीनोम अनुप्रयोग और अन्य क्षेत्र में जैव सूचना विज्ञान के अनुप्रयोगों से महत्वपूर्ण और संक्षिप्त जानकारी प्राप्त करने का प्रयास किया गया है।
अणुओं की स्थिति का लगा सकते हैं पता दूसरे क्रम में डीआरडीई ग्वालियर के वैज्ञानिक डॉ राम कुमार धाकड़ ने आटोमटेड डोकिंग प्रणाली के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि ऑटोडॉक स्वचालित डॉकिंग टूल का एक सूट है। यह भविष्यवाणी करने के लिए डिजाइन किया गया है। उन्होंने बताया कि बायोइंफ ॉर्मेटिक्स की मदद से अणुओं के स्थानिक पैटर्न और स्थिति का आसानी से पता लगाया जा सकता है। कार्यक्रम के समापन अवसर पर जीवाजी यूनिवर्सिटी की कुलपति प्रोफेसर संगीता शुक्ला, प्रो. डीडी अग्रवाल, प्रो. अविनाश तिवारी, प्रो. रेणु जैन, प्रो. नलिनी श्रीवास्तव मौजूद विशेष रूप से रहे।