कहते हैं कि प्रतिभा उम्र की मोहताज नहीं होती। इसका जीता जागता प्रमाण हैं 8 साल की अभिजिता गुप्ता। जिन्हें इंटरनेशनल बुक ऑफ रिकॉड्र्स द्वारा वल्र्ड यंगेस्ट ऑथर अवॉर्ड से सम्मानित किया जा चुका है। वहीं एशिया बुक ऑफ रिकॉड्र्स से उसे ग्रैंड मास्टर इन राइटिंग की उपाधि मिल चुकी है। अभिजिता कम उम्र में तीन किताबें लिख चुकी हैं। उनकी किताबें ‘हैप्पीनेस ऑल अराउंड, वी विल श्यौरली सस्टेन और टू बिगिन विथ लिटिल थिंग्स’ पब्लिश हो चुकी हैं।
खेल के शौक ने कशिश कुशवाह को अलग पहचान दी। उसने अभी तक वॉलीबॉल में कई नेशनल और एक इंटरनेशनल मैच खेले, जिसमें दस से अधिक मेडल अपने नाम किए। हाल ही में उन्होंने श्रीलंका में आयोजित वॉलीबॉल इंटरनेशनल प्रतियोगिता में अपना बेस्ट देकर गोल्ड मेडल हासिल किया। महज बीस साल की उम्र में कशिश ने सीनियर साथियों को पीछे छोड़ दिया है। उनकी तैयारी अभी कॉन्टीन्यू चल रही है।
उम्र से अधिक अवॉर्ड हासिल कर चुकी एमबीबीएस के दौरान सबसे अधिक गोल्ड मेडल पाने वाली डॉ शिराली रुनवाल का शोधपत्र ‘इंडियन जर्नल ऑफ ऑब्स्टेट्रिक्स एंड गाइनिकोलॉजी’ में संपादकीय टिप्पणी के साथ प्रमुखता से प्रकाशित हुआ है। ‘अ रेयर केस ऑफ हर्लिन वर्नर वंडरलिक सिंड्रोम … हाउ, व्हेन एण्ड व्हाय’ शीर्षक से प्रकाशित आलेख गर्भाशय विकास में भ्रूण स्तरीय अवरोध से उत्पन्न विषमतम परिस्थितियों को परिभाषित करता है। ओश्वीरा सिन्ड्रोम की इस दुर्लभ केस रिपोर्ट के फिजिकल प्रजेंटेशन के लिए डॉ शिराली को दिल्ली में आयोजित सत्या पॉल अवॉर्ड सेरेमनी में इन्वॉइट किया गया है।
मन में यदि कुछ अलग करने का जज्बा हो तो कोई भी काम असंभव नहीं होता। इसी जज्बे के साथ बेटी रक्षिता अग्रवाल ने नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी ओडिसा में एडमिशन लिया। पढ़ाई के साथ-साथ अदर एक्टिविटीज में भी पार्टिसिपेट किया। विपरीत परिस्थितियों में भी धैर्य रखा और अपने लक्ष्य पर फोकस कर 7 गोल्ड मेडल अपने नाम किए। यूनिवर्सिटी से रक्षिता पहली स्टूडेंट है, जिसने एक साथ 7 गोल्ड मेडल पर कब्जा जमाया। उन्होंने यह गोल्ड मेडल इसके पहले वह कोरोना की पहली लहर में 53 शहरों के 1500 मजदूरों पर रिसर्च किया था। वर्तमान समय में वे कैंब्रिज यूके से एलएलएम कर रही हैं।