बड़ी खबर : छह दिन में तीन लड़कियों का अपहरण,शहर में हड़कंप,वाहनों में तोडफ़ोड
लोगों को तो पता भी नहीं था कि उनकी आवाज उठाने वाले जनप्रतिनिधि की जुबान पर सेंसरशिप के लिए काला काननू बना दिया गया है। वो तो भला हो पत्रिका का, जिसने बिना किसी डर के निष्पक्ष और बुलंद आवाज उठाई। जिसके कारण आखिरकार सरकार झुकी, और काला कानून वापस लेना पड़ा। कुछ इसी तरह के विचार शहर के प्रबुद्धजनों ने शनिवार को पत्रिका कार्यालय में आयोजित टॉक शो में व्यक्त किए।सावधान! यहां न आए वरना आपको लौटना पड़ेंगा खाली हाथ
“विधानसभा या फिर संसद में जनप्रतिनिधि को नींद लेने, चाय पीने या फिर वेतन लेने के लिए नहीं भेजते, बल्कि वह तो जनता की आवाज के रूप में सदन में जाते हैं। लेकिन, जब उन जनप्रतिनिधि को ही बोलने नहीं दिया जाएगा तो यह लोकतंत्र की हत्या है। अगर आंख, कान और नाक पर ही ताला डाल दिया जाए तो पूरी व्यवस्था ही ध्वस्त हो जाएगी।”गायत्री सुर्वे, एडवोकेट
सुनील शर्मा,जिला उपाध्यक्ष, कांग्रेस कमेटी
MP के इस शहर की 150 अवैध कॉलोनियां होंगी नियमित,लोगों में खुशी कहीं आप भी तो नहीं है इसमें शामिल
“सरकार की मानसिकता ही ठीक नहीं लगती। सरकार यदि को कोई गलत कानून लेकर आती है तो उसका विपक्ष को विरोध करना चाहिए। लेकिन, यहां तो पत्रिका ने विपक्ष की भूमिका निभाते हुए जो काम किया वह सराहनीय है। इसके लिए काफी हद तक जनता भी जिम्मेदार है। जिस दिन हम जाग जाएंगे, सरकार की हिम्मत नहीं होगी हमारी आवाज दबाने की।”सुधीर सप्रा,सामाजिक कार्यकर्ता
आशीष वैश्य, उद्योगपति
प्रेम सिंह भदौरिया, पूर्व अध्यक्ष अभिभाषक संघ ग्वालियर
मोहन माहेश्वरी, जिलाध्यक्ष माहेश्वरी समाज