24 हजार में से छह हजार पौधे बचे
बीते साल बारिश के सीजन में करीब 24 हजार से अधिक पौधे लगाने का दावा नगर निगम अफसरों ने किया था। एक अफसर ने नाम न लिखे जाने की शर्त पर बताया कि जो पौधे लगाए थे उनमें 70 फीसदी खत्म हो गए। गर्मी के सीजन में पानी न मिलने, जानवरों द्वारा नष्ट किए जाना वजह रही। वहीं, एक साल में तीन हजार से अधिक पेड़ जो हरेभरे थे जैस नीम, पीपल, बरगद, आंवला को काटा गया है। छह से सात हजार पौधे ही जिंदा बचे होंगे।
बिजली कंपनी के अधिकारियों का कहना है कि शहर में 60 हजार से अधिक एसी दिन-रात चल रहे हैं। इन एसी पर बिजली खर्च 10 लाख यूनिट प्रतिदिन है। बिजली कंपनी के शहरी वृत्त के महाप्रबंधक अक्षय खरे का कहना है कि एक एसी प्रतिदिन 12 से 15 यूनिट बिजली की खपत करता है। इस तरह 60 हजार से अधिक एसी पर दस लाख से अधिक बिजली खर्च हो रही है। वहीं, इलेक्ट्रोनिक कारोबारी नवीन माहेश्वरी का कहना है कि पिछले सालों की तुलना में इस बार एसी की मांग 40 फीसदी ज्यादा रही। इस बार मार्च से लेकर जून तक करीब दस से 12 हजार से अधिक एसी बिके हैं। जो पिछले सालों की तुलना में ज्यादा हैं।
एमआइटीएस की इलेक्ट्रीकल विभाग की डीन अकादमी डॉ मंजरी पंडित का कहना है कि एसी अप्रत्यक्ष तौर पर वातावरण को नुकसान पहुंचाती है। एक एसी दिनभर में दस यूनिट बिजली खपत करती है और एक यूनिट बिजली कोयले से जनरेट करने में 4.9 किलोग्राम पर सीओटू निकलती है। इस तरह छह महीने में 1800 यूनिट बिजली को जनरेट करना होता है जिससे 8820 किलोग्राम कार्बनडाइ ऑक्साइड पैदा होती है। वहीं एक पेड़ 22 किलोग्राम कार्बन ऑक्साइड ग्रहण करते है इस तरह चार सौ पेड़ों की जरूतर होती है।
एसी से वातावरण को होता नुकसान
शोध के अनुसार एसी से निकलने वाली हीट से वातावरण को नुकसान होता है। इससे होने वाले नुकसान को बैलेंस करने के लिए कम से कम 15 पेड़ों की जरूरत होती है। पेड़-पौधों तापमान को कंट्रोल करते हैं और वातावरण को शुद्ध करने में सहायक होते हैं। सीधा फॉर्मूला है, ज्यादा पेड़ यानी कम तापमान। इसका उदाहरण है जीवाजी विश्वविद्यालय परिसर। यहां 4800 से अधिक पेड़ है जो आसपास के तापमान को एक से दो डिग्री कम रखते हैं।
डॉ. हरेंद्र शर्मा, पर्यावरणविद जीवाजी यूनिवर्सिटी, ग्वालियर