खास बात यह है कि विभागीय अधिकारी अब इस बारे में बात करने से भी कतराने लगे हैं और यह कह रहे हैं कि इस तरह की प्लानिंग उनकी जानकारी में नहीं है। जबकि तत्कालीन माइनिंग ऑफिसर मनीष पालेवार के समय यह प्लानिंग बनाई गई थी और प्रदेश मुख्यालय से इस पर शुरुआती सहमति भी मिली थी, लेकिन बाद में राजनीतिक दबाव के कारण यह परवान नहीं चढ़ सकी। अब स्थिति यह है कि बिलौआ में न तो परिवहन की चैकिंग के लिए सही व्यवस्था है, न वाणिज्यकर विभाग ने कोई व्यवस्था की है।
प्रशासन अंकुश लगाने में नाकाम जिले की पत्थर खदानों से प्रति वर्ष लगभग 2 हजार करोड़ का काला पत्थर निकल रहा है, जबकि रेत खदानों से प्रति वर्ष लगभग 1500 करोड़ की वैध-अवैध रेत निकाली जा रही है। अवैध उत्खनन और परिवहन पर लगाम लगाने में प्रशासन, पुलिस और खनिज विभाग नाकाम हो रहा है। प्रशासन ने महीनेभर पहले नाके तय कर राजस्वकर्मियों की ड्यूटी लगाई थी, इसके बाद भी अवैध परिवहन पर अंकुश नहीं लगा है। इसके बाद भी सकारात्मक और प्रभावी प्रयास करने पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
यहां लगने थे सीसीटीवी -चिरवाई नाका, मोहनपुर टोल, पुरानी छावनी और महारापुरा पर सीसीटीवी कैमरे लगाने की योजना बनी थी।
-शहर के इन सभी प्रवेश स्थल पर सीसीटीवी कैमरे लगाने का प्लान 2017 में बना था।
-शुरुआत में खनिज विभाग ने दो जगह का प्रपोजल स्वीकार भी कर लिया था।
-जनवरी 2018 में दो और जगह का प्रस्ताव भेजा गया था, उसे भी अनुमति मिलने पर विचार हो रहा था। -बाद में सीसीटीवी कैमरे लगाने की फाइलों पर विचार होना बंद हो गया।
इस तरह होती सुरक्षा -सीसीटीवी कैमरों के जरिए ओवरलोड चैकिंग आसान होती।
-सुरक्षा के लिए सैनिक कल्याण बोर्ड से मदद लेने का प्लान बनाया गया था। -नाकों का संचालक करने के लिए सेवानिवृत सैनिकों को नियुक्त किया जाना था।
-सेना या अर्धसैनिक बलों के सेवानिवृत जवानों की तैनाती से अनियमितताएं होने की गुंजाइश नहीं रहती।
प्रतिदिन इतना परिवहन
-बिलौआ से करीब 1500 ट्रक गिट्टी निकाली जा रही है। -बिजौली क्षेत्र से 400 ट्रक गिट्टी निकाली जा रही है।
-जंगलों से स्टोन पार्क तक 25 ट्रॉली सफेद पत्थर आ रहा है।
-घाटीगांव से मुरम-मिट्टी से बनी करीब 50 डंपर नकली रेत आ रही है।
-भितरवार-डबरा क्षेत्र से 70 से 100 ट्रॉली और 15 से 20 डंपर अवैध रेत आ रही है।