सौरभ ने एक कचड़े की गाड़ी में भू्रण को पड़ा हुआ दिखाया है। वहीं दूसरी ओर एक किताब में बने पेड़ के तने से भ्रूण को चिपका हुआ दिखाया है। यानि एक तरफ भविष्य की किरण और दूसरी ओर विनास को दिखाया गया है। सौरभ ने फाइन आर्ट कॉलेज से ग्रेजुएशन की। उस समय सौरभ का टॉपिक कन्या भू्रण ही था। इसके बाद उन्होंने चंडीगढ़ से पोस्ट ग्रेजुएशन किया।
ये रहता है प्रोसेस हर साल दिए जाने वाले विश्वकर्मा अवार्ड के लिए पहले आवेदन करना होता है। इसमें फॉर्म के साथ अपनी थीम भी भेजनी पड़ती है। थीम फाइनल होने पर काम शुरू करना पड़ता है। इसके लिए तीन माह का समय मिलता है। बीच-बीच में भोपाल से ज्यूरी विजिट करने आती है। तैयार स्कल्प्चर को मेला परिसर स्थित मप्र हस्तिशिल्प एवं हथकरघा विभाग में जमा करना होता है। स्कल्प्चर देखने के बाद भोपाल की ज्यूरी द्वारा फाइनल कन्फर्मेशन लेटर आता है।
प्रदेश से 100 से अधिक लोगों ने किया था अप्लाई सौरभ ने बताया कि विश्वकर्मा अवार्ड के लिए शहर से 12 और प्रदेश से 100 से अधिक लोगों ने अप्लाई किया था, जिनमें से कुछ का चयन हुआ। सौरभ ने यह स्कल्पचर मोतीमहल स्थित ट्रेनिंग सेंटर में विश्वकर्मा अवार्डी दीपक विश्वकर्मा के मार्गदर्शन में तैयार किया।
शहर से इन्हें मिल चुके विश्वकर्मा अवार्ड विश्वकर्मा अवार्ड से नवाजे जाने वाले शहर से कई नाम हैं। शिल्पकारों ने स्टोन में अच्छा काम करके शहर को विश्वकर्मा अवार्ड दिलाए। इनमें श्रीराम विश्वकर्मा, भगवानदास विश्वकर्मा, देवकीनंदन बरोतिया, सतीश विश्वकर्मा, संतोष विश्वकर्मा, दीपक विश्वकर्मा शामिल हैं। इसके साथ ही शक्ति सिंह को टेराकोटा, राम गोपाल प्रजापति को पेपरमेसी, नानक माहौर को पेंटिंग, लक्ष्मण प्रजापति को पेपरमेसी, मनीष गुप्ता को पेंटिंग में अवार्ड मिला।
इन्हें मिलेगा विश्वकर्मा अवार्ड नीतू यादव, भोपाल सौरभ राय, ग्वालियर वसीम छीपा, उज्जैन ललित सोनी, बैतूल श्रुति गोखले, उज्जैन कासिम खत्री, धार राजेन्द्र कुमार, भोपाल