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ग्वालियर

ऐतिहासिक तालाबों के अस्तित्व पर संकट, बांधों में खेती, चल रहे ईंट भट्टे और भू माफिया का कब्जा

ऐतिहासिक तालाबों के अस्तित्व पर संकट, बांधों में खेती, चल रहे ईंट भट्टे और भू माफिया का कब्जा

ग्वालियरMar 24, 2019 / 12:46 pm

Gaurav Sen

water reservoir occupied in gwalior region

ऐतिहासिक तालाबों के अस्तित्व पर संकट, बांधों में खेती, चल रहे ईंट भट्टे और भू माफिया का कब्जा

ग्वालियर। 15 साल से लगातार जल संकट झेल रहे शहर को बीते साल हुई अच्छी बारिश से भूजल स्तर बढऩे और बांधों में पूरे साल पानी रहने की जो आस जगी थी, वह पूरी नहीं हुई है। शहर में पेयजल का सबसे बड़ा स्रोत तिघरा बांध ककेटो-पेहसारी के रहमो करम पर जीवित है, इसके बावजूद प्रशासनिक अधिकारियों ने पानी के वैकल्पिक स्रोत आसपास के पांच बांधों की क्षमता को बरकरार रखने पर ध्यान नहीं दिया।

इन बांधों में खेती की जा रही है और ईंट भट्टे चल रहे हैं, अतिक्रमण करने वाले लोग बांधों को भरने नहीं देते हैं, लेकिन अफसर अतिक्रमण चिन्हित करने के बाद भी हटा नहीं पा रहे हैं। अंचल में यही स्थिति तालाबों की है, 300 तालाबों का उद्धार करने का प्रशासनिक दावा दम तोड़ चुका है। रियासतकालीन 11 बड़े तालाब भी खनन माफिया और भू माफिया के लालच का शिकार हो गए हैं। स्थिति यह है कि शहर का हनुमान बांध हो या फिर पारसेन, अमरोल, उर्वा और सिमरिया का ताल, सभी की भराव क्षमता को लगभग समाप्त कर दिया गया है। जितने भी बड़े तालाब हैं, वे गर्मी शुरू होने से पहले ही खाली हो गए हैं। इन तालाबों में पानी रहता तो लगभग 22 लाख की आबादी वाले जिले को जल संकट से निजात मिल सकती थी।

शहर के बांधों की स्थिति

वीरपुर बांधइसके कैचमेंट की जमीन पर किसानों ने खेती के लिए और व्यवसाइयों ने ईंट भट्टों के लिए कब्जा कर लिया है, वहीं बंड पर पक्का अतिक्रमण हो रहा है। बीते 15 साल से बांध एक बार भी पूरी क्षमता से नहीं भरा है।
गिरवाई बांधइसके कैचमेंट में खेती होने के अलावा सबसे ज्यादा ईंट भट्टे हैं। ईंट बनाने वाले बांध की मिट्टी को उठाकर बांध की वास्तविक स्थिति को क्षति पहुंचा रहे हैं। इस बांध को भट्टा संचालक कभी भरने नहीं देते हैं।

यह है तालाबों की स्थिति
अमरौल11 वीं शताब्दी के स्मारकों को समेटे इस ऐतिहासिक तालाब का कैचमेंट एरिया लगभग 10 किलोमीटर है। इसकी मरम्मत पर लगभग 1 करोड़ 50 लाख रुपए खर्च हो चुके हैं। पिछले साल बेहतर बारिश के बाद भी तालाब को पूरी क्षमता से नहीं भरा जा सका।
हनुमान बांधस्वर्ण रेखा नदी के मुख्य स्रोत के रूप मौजूद हनुमान बांध की दोनों ओर की साइड वॉल पर भू माफिया ने प्लॉटिंग करके बेच दी है। वर्तमान में यहां 300 चिन्हित अतिक्रमण हैं, लेकिन प्रशासन ने इन्हें हटाने की कोशिश नहीं की, इनके कारण बांध अपनी पूरी क्षमता से नहीं भर सकता है।
उर्वालगभग 2 किलोमीटर की बंड और 3 किलोमीटर की परिधि में जल भराव क्षमता को समेटे इस तालाब का कैचमेंट एरिया घाटीगांव के जंगलों तक फैला है। बीते साल बंड टूटने के कारण लगभग 300 बीघा फसल खराब हो गई थी, इसके बाद इसकी मरम्मत को लेकर सवाल खड़े होते रहे हैं।
सिमरिया तालडबरा नगर पालिका क्षेत्र की सीमा में आए इस तालाब की परिधि 2 किलोमीटर तक है और बंड की लंबाई लगभग साढ़े तीन किलोमीटर है। तालाब में पहले पूरे साल पानी रहता था, लेकिन रेलवे लाइन की ओर से ओवरफ्लो टूटने के बाद से इसे पूरी क्षमता से कभी नहीं भरा गया है।
रमौआ बांधमुरार नदी के स्रोत के रूप में पहचान रखने वाले बांध की 6 हैक्टेयर जमीन पर चिह्नित अतिक्रमण है। प्रशासनिक स्तर पर हीला हवाली के कारण बांध की जमीन पर किसानों का कब्जा है। हालांकि, इस बार बांध में पानी आने का रास्ता साफ है, लेकिन अतिक्रमण के कारण पूरी क्षमता से नहीं भर पाएगा।
मामा का बांधपहाड़ी क्षेत्र से घिरे इस बांध में पूरे साल पानी रह सकता है, लेकिन कैचमेंट की जमीन को कब्जाए किसान बांध को भरने नहीं देते हैं।
पारसेनइस ऐतिहासिक तालाब को सुधारने के लिए 2009-10 में 20 लाख रुपए की लागत से काम हुआ था, इसके बाद यहां सालभर पानी रहता था। तीन साल से खनन माफिया के सक्रिय होने से तालाब के अस्तित्व पर संकट खड़ा हो गया है।

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