कुएं, बावडिय़ों पर कब्जे कर लिए गए, जिससे शहर में जल संकट के हालात भयानक हो गए हैं। यही हाल ट्रैफिक का है, बेहिसाब दो पहिया,चार पहिया वाहनों का पंजीयन कर दिया गया,लेकिन इन्हें कंट्रोल करने कोई कारगर योजना नहीं बन सकी। सिग्नल और रोटरी बनाने और तोडऩे के नाम पर लाखों का बजट ठिकाने लगाया, लेकिन ट्रैफिक कंट्रोल नहीं हुआ।
शहर में लोग औसत २० से ३० कि मी की गति से अधिक पर वाहन नहीं चला पाते। शहर की हवा में वाहनों से निकलने वाला धुआं जहर घोल रहा है। शहर में गांवों से पलायन करके आने वाले लोगों के कारण भी आबादी का दबाव बढ़ा, लेकिन इन्हें रोकने के लिए सुविधाएं मुहैया नहीं कराई जा सकी हैं।
वर्ष 1930- शहर की करीब 50 हजार की जनसंख्या और आस पास के गावों में खेती के लिए तिघरा बांध का निर्माण हुआ था। इसके साथ ही मोतीझील पर वाटर ट्रीटमेंट प्लांट-77 एम.एल.डी क्षमता का बना। वर्ष 1986 में बढ़ती हुई जनसंख्या की मांग की पूर्ति के लिए मोतीझील पर 68 एम.एल.डी. क्षमता का पानी को शुद्ध करने का प्लांट लगाया गया।
वर्ष 2012- शहर की आबादी लगभग 10 लाख मानते हुए तिघरा बांध के पास प्रोजेक्ट उदय के अन्तर्गत 45 एम.एल.डी क्षमता का प्लांट तैयार किया गया। वर्तमान में तीनों प्लांटों से कुल 190 एम.एल.डी. पानी प्रदाय किया जाता है। करीब 1800 नलकूपों से 30 एम.एल.डी. पानी जमीन से निकाला जाता है।
नोट- सौ वर्ष बाद भी तिघरा का विकल्प तैयार नहीं हुआ, जबकि पानी निकालने वाले तीन प्लांट स्थापित हो गए। आबादी 50 हजार से 13 लाख तक पहुंच गई, जिसका लोड तिघरा पर बढऩे लगा और तिघरा तेजी से खाली होने लगा। शहर के आस पास बने 7 अन्य बांध भी खाली हो गए, जिससे शहर के सामने जल संकट के भयानक हालात पैदा हो रहे हैं।