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पहले बताई टीबी से हालत गंभीर तो सूखे प्राण, बीकानेर की जांच में रोग मुक्त, आई जान में जान

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हनुमानगढ़Feb 28, 2019 / 11:52 am

adrish khan

hanumangarh jila hospital ka mamla

पहले बताई टीबी से हालत गंभीर तो सूखे प्राण, बीकानेर की जांच में रोग मुक्त, आई जान में जान

पहले बताई टीबी से हालत गंभीर तो सूखे प्राण, बीकानेर की जांच में रोग मुक्त, आई जान में जान
– जिला अस्पताल की जांच में बताई टीबी व फेफड़ों में दिक्कत
– बीकानेर में कराई जांच तो सब नॉर्मल, चिकित्सक ने कहा टीबी व अन्य कोई रोग नहीं
अदरीस खान. हनुमानगढ़. टीबी से फेफड़ा संक्रमित है। रोगी की हालत गंभीर है। अगर किसी की जांच रिपोर्ट के आधार पर डॉक्टर यह कहे तो तय है कि रोगी व परिजनों की हालत खराब हो जाएगी। नियमित दवा खाकर जिंदगी के लिए संघर्ष करने के सिवाय उनको कुछ नहीं सूझेगा। फिर अगर किसी हायर सेंटर पर दोबारा चिकित्सकीय जांच हो और रोगी को रोग मुक्त बता दिया जाए तो सोचिए क्या होगा।
ऐसा ही हुआ है गांव नवां की तीस वर्षीय मनप्रीत कौर और उनके परिवार के साथ। राजकीय जिला अस्पताल में करवाई जांच में उसे टीबी का मरीज घोषित कर दिया गया। स्थिति भी गंभीर बता दी गई। चिकित्सक ने भी मरीज की हालत कम और जांच रिपोर्ट पर अधिक ध्यान देते हुए उसे टीबी का गंभीर रोगी बताकर जल्द उपचार शुरू करने की सलाह दे दी। दो दिन बाद ही जब बीकानेर के पीबीएम अस्पताल में रोगी ने चिकित्सक से परामर्श लिया तथा जांच कराई तो उसे टीबी से मुक्त बताया गया। दो दिन पहले जहां पूरा परिवार रोग की चिंता में ढंग से खाना भी नहीं खा रहा था, वे रोग मुक्त होने की बात सुनकर खुश हो गए। मगर साथ ही उनमें गुस्सा भी है कि मरीजों के साथ इलाज व रोगों की जांच में इस तरह कोताही बरती जा रही है। इस संबंध में चिकित्सा निदेशालय तथा राज्य सरकार को शिकायत भी की गई है।
कौनसी जांच और क्या रिपोर्ट
जानकारी के अनुसार नवां निवासी मनप्रीत कौर को खांसी, बुखार के चलते जिला अस्पताल में चिकित्सक को दिखाया गया। टीबी रोग जांच के लिए जिला अस्पताल में 20 फरवरी को पीपीपी योजना के तहत संचालित सीटी स्कैन कराया गया। जांच रिपोर्ट में उसे टीबी का रोगी बताया गया। साथ ही एक्स-रे जांच के आधार पर भी फेफड़ों में दिक्कत बताई गई तथा शीघ्र टीबी क्लिनिक में परामर्श लेने को कहा गया। इससे मनप्रीत कौर व उसके परिजन सदमें में आ गए। रोगी व उसके पति जग्गा सिंह का चिंता के चलते ढंग से खाना-पीना ***** हो गया। एक दिन बाद जग्गा सिंह पत्नी को लेकर बीकानेर चला गया। वहां पीबीएम अस्पताल के चिकित्सक से घर पर परामर्श लिया। उसने दोबारा सीटी स्कैन सहित अन्य जांचें पुन: कराई। जांच रिपोर्ट पूर्णत: सामान्य आई। इसमें उसे टीबी से मुक्त बताया गया। एक्स-रे जांच के आधार पर चिकित्सक ने बताया कि मनप्रीत कौर का जन्म से ही एक फेफड़ा आधा है। उसे टीबी की बीमारी नहीं है। इसके बाद चिकित्सक ने उनको खांसी की सामान्य दवाई देकर भेज दिया। बीकानेर से रोग मुक्ति की रिपोर्ट व चिकित्सक का परामर्श मिलने के बाद रोगी व उसके परिजनों के जान में जान आई।
पहले खोली थी पत्रिका ने पोल
लैबोरेट्री की जांच रिपोर्ट में गड़बड़झाले की पोल पिछले बरस पत्रिका ने स्टिंग ऑपरेशन कर खोली थी। शहर की चार लैबोरेट्री पर एक ही दिन में एक ही जने की हिमोग्लोबिन की जांच कराई गई। किसी भी लैबोरेट्री की रिपोर्ट एक समान नहीं आई बल्कि चार से पांच ग्राम प्रतिशत तक का अंतर आया। इसी तरह सुरेशिया निवासी विक्रम सिंह की प्लेटलेट्स की रिपोर्ट में भी गड़बड़झाला पकड़ा गया। जिला अस्पताल की लेबोरेट्री में उसके प्लेटलेट्स काउंट मात्र 6000 आए। उसे रेफर कर दिया। अगले दिन बीकानेर के पीबीएम अस्पताल में पुन: जांच हुई तो प्लेटलेट्स काउंट 213000 आए।
कमाई पर ध्यान, गुणवत्ता पर नहीं
जानकारों के अनुसार लेबोरेट्री का संचालन मापदंडों के अनुरूप नहीं होने के कारण ही रिपोर्ट में गड़बडिय़ां होती हैं। कमाई व काम निपटाने के फेर में गुणवत्ता से समझौता किया जाता है। इसी कारण जांच रिपोर्ट में गड़बड़ी आती है। जांच मशीनों के संचालन में बड़ी सावधानी बरतनी होती है। तय संख्या में नमूने जांचने के बाद मशीन को विराम देना होता है। पुन: शुरू करने के दौरान जांच में विशेष ध्यान रखना होता है। यहां तक की लैबोरेट्री कक्ष के तापमान का असर भी जांच पर पड़ता है। प्रशिक्षित व अनुभवी लैब तकनीशियन तथा पैथोलॉजिस्ट नहीं होने पर जांच रिपोर्ट में गड़बड़ी की आशंका रहती है।
तो झेलनी पड़ती यातना
जिला अस्पताल की जांच में पत्नी को टीबी रोगी बता दिया। फेफड़ों में भी काफी दिक्कत बताई गई। इससे हम घबरा गए। मगर जांच रिपोर्ट में गड़बडिय़ों की खबरें पहले ही सुन चुका था। इस कारण बीकानेर में चिकित्सक को दिखाया तथा पुन: जांच कराई। जांच रिपोर्ट नॉर्मल आई। टीबी आदि की कोई शिकायत पत्नी को नहीं थी। यह बड़ा गंभीर मामला है। अगर हम बीकानेर नहीं दिखाते तो बेवजह ही पत्नी को छह माह तक टीबी की दवा खानी पड़ती। मानसिक यातना झेलनी पड़ती वो अलग। – जग्गा सिंह, निवासी नवां।

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