कालीबंगा संग्रहालय हनुमानगढ़ जिला मुख्यालय से करीब 29 किलोमीटर दूर है। किसी समय यह सम्पूर्ण क्षेत्र सिंधु घाटी सभ्यता का हिस्सा था। हनुमानगढ़ जिले के कालीबंगा में हुई खुदाई में इसके कई प्रमाण मिले हैं। हड़प्पा से भी प्राचीन संस्कृति के अवशेष कालीबंगा के थेहड़ से मिल चुके हैं। इसमें मानव की करीब पांच हजार वर्ष पूर्व की प्रगति शामिल है। कालीबंगा से प्राप्त अवशेषों से पता चला है कि यह क्षेत्र पहले ही खूब उन्नति कर चुका था। कालीबंगा में 5000 वर्ष पूर्व विकसित सभ्यता समय के चक्र के चलते नष्ट हो गई। उस युग में रहने वाले लोगों के कठिन परिश्रम से बनाए उक्त नगर खंडहर बनकर जमीन में दफन हो गए। मगर अतीत में पनपी सभ्यता एवं संस्कृति के निशान आज भी हनुमानगढ़ की जमीन में मौजूद हैं। प्राचीन सभ्यता के गवाह खंडहर व खुदाई में मिले प्रमाण यह साबित करते हैं कि मानव सभ्यता के उत्थान में हनुमानगढ़ क्षेत्र प्रारम्भिक काल से ही शामिल रहा है। कालीबंगा में निर्मित संग्रहालय में पुरातत्व अवशेष संजो कर रखे गए हैं।
दुनिया में विकसित हुई सभ्यताओं की दृष्टि से विश्व मानचित्र पर अहम भूमिका रखने वाले कालीबंगा संग्रहालय में रखे दुर्लभ अवशेषों को देखने के लिए आसपास के कुछ लोग वहां पहुंचते भी रहे हैं। संग्रहालय की गैलरी में रखा तांबे का बैल आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। कालीबंगा संग्रहालय में बनी गैलरी में करीब 1400 वस्तुओं की प्रदर्शनी लगाई गई है। जो पर्यटकों के लिए खुला रहता है। इसके अलावा संग्रहालय के स्ट्रांग रूम में करीब 14000 वस्तुएं भी रखी गई है।
कालीबंगा संग्रहालय में पक्की मिट्टी का बैल, मिट्टी के मणके, आभूषण आदि प्रमुख हैं। संग्रहालय परिसर में रखा मॉडल मानव कंकाल भी पर्यटकों का ध्यान खींचता है। इसके अलावा पक्की मिट्टी के बने हार, मिट्टी के बर्तन, तांबे का शीशा, मिट्टी की चूडिय़ां, रसोई में पत्थर के सामान, पशु पक्षियों की आकृतियां, खेलने की सामग्री, घरेलू व खाने-पीने संबंधी मिट्टी के बर्तन, शिकार करने के लिए औजार तथा पानी निकासी के लिए पत्थर से बनी नालियां आदि प्रमुख हैं। संग्रहालय में कई दुर्लभ अवशेष रखे गए हैं। इतिहास के जानकार बताते हैं कि अफगानिस्तान के बाद हनुमानगढ़ जिले का कालीबंगा ऐसा दूसरा गांव है, जहां हड़प्पाकालीन सभ्यता से भी प्राचीन सभ्यता के निशान मिले हैं।
कालीबंगा में सिंधु घाटी सभ्यता के महत्वपूर्ण अवशेष मिले हैं। जानकारी के अनुसार हड़प्पा काल में कालीबंगा एक छोटा नगर था। यहां एक मिट्टी का दुर्ग भी मिला है। प्राचीन सरस्वती नदी के यहां से प्रवाहित होने के निशान भी यहां मिले हैं। प्राचीन सरस्वती नदी को अब घग्घर के नाम से जाना जाता है। इसी नदी के किनारे सिंधु घाटी सभ्यता विकसित हुई। बताया जाता है कि सर्वप्रथम 1952 ई में अमलानंद घोष ने इसकी खोज की। बीके थापर व बीबी लाल ने 1961-69 में यहां उत्खनन का कार्य शुरू किया। यहां विश्व का सर्वप्रथम जोता हुआ खेत मिलने की बात भी कुछ इतिहासकार कहते हैं।
प्राचीन सभ्यता का केन्द्र होने के कारण जिले में 100 से भी अधिक थेहड़ मिले हैं। वहां आज भी प्राचीन संस्कृति के अवशेष दबे पड़े हैं। वक्त की मार सहते हुए नष्ट हो चुके गांव व शहर थेहड़ों में दफन हैं। जिले के पल्लू, सिरंगसर, खोडा, न्योलखी, धांधूसर, धानसिया, करोती, सोती, मसानी, गंगागढ़ रोही, पांडुसर, सोनड़ी, थिराना, रावतसर, खोडा, मंदरपुरा, जबरासर, भौमियों की ढाणी, भूकरका, बिरकाली, बिसरासर, हनुमानगढ़, मुण्डा, मक्कासर, सहजीपुरा, बहलोल नगर, रंगमहल, बड़ोपल तथा कालीबंगा में प्राचीन सभ्यताओं के निशान मिल चुके हैं। हालांकि वर्ष 1951 से पहले तक जमीन के सीने में दफन यह राज सामने नहीं आ सके थे। मगर वर्ष 1951 में जब कालीबंगा में खुदाई हुई तो पूरी दुनिया चकित रह गई। क्योंकि यहां नील, वोल्गा और सिंधू घाटियों से भी प्राचीन सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए थे। कुछ थेहड़ की खुदाई के बाद इन पर प्लास्टिक की शीट लगाकर इन्हें संरक्षित रखा गया है। पुरातत्व विभाग की ओर से इसे संरक्षित रखा जा रहा है।
सरकार चाहे तो कालीबंगा संग्रहालय, भटनेर दुर्ग, भद्रकाली मंदिर, शहीद स्मारक, रावतसर स्थित गढ़, नेचर ड्राइव धन्नासर, पल्लू ब्रह्माणी मंदिर, गोगामेड़ी गोगाजी का मंदिर और गोगाजी स्मारक पैनोरमा, टाउन में गुरुद्वारा सुखासिंह महताबसिंह, शिलापीर/ माता स्थल आदि प्रमुख हैं। पर्यटन की दृष्टि से काफी अहम हैं। इस पर काम करके सरकार पर्यटन का पूरा का पूरा हब बना सकती है।