डिस्टिल्ड वाटर इस्तेमाल करने को लेकर हिदायत, जांच में जुटी रही चिकित्सकों की कमेटी
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जांच में जुटी रही चिकित्सकों की कमेटी
हनुमानगढ़. जिला अस्पताल में इंजेक्शन लगने के बाद कांपने लगी 32 प्रसूताओं के मामले को लेकर जांच कर रही सात सदसीय टीम मंगलवार को भी जुटी रही। जानकारी के अनुसार चिकित्सकों की टीम ने सुबह आठ से दोपहर एक बजे तक व शाम पांच से रात आठ बजे तक जांच की। इधर,पीएमओ डॉ. एमपी शर्मा ने सभी वार्ड के नर्सिंग कर्मियों को डिस्टिल्ड वाटर इस्तेमाल करने के लिए हिदायत दी है। बताया जा रहा है कि उपनियंत्रक व नङ्क्षर्संग अधीक्षक की ओर से वार्डों का निरीक्षण किया था। इसमें एंटीबायोटिक इंजेक्शन में इस्तेमाल होने वाला डिस्टिल्ड वाटर उचित तरीके से नहीं मिलाना होना पाया गया। निरीक्षण के दौरान पाया गया कि नर्सिंग कर्मी एक ही बोतल से बार-बार डिस्टिल्ड वाटर का प्रयोग एंटीबायोटिक के इंजेक्शन में इस्तेमाल करते हैं। जिससे संक्रमण होने की आशंका रहती है। इससे बचने के लिए नियमों के अनुसार ही डिस्टिल्ड वाटर प्रयोग करने के लिए सभी नर्सिंग कर्मियों को आदेश जारी किए हैं। सोमवार को जांच दल में शामिल चिकित्सकों ने प्रसूताओं के बयान भी लिए थे। प्रसूताओं की तबीयत इंजेक्शन लगने से खराब हुई या फिर किसी और कारणों से, इसकी विभिन्न पहलुओं से जांच की जा रही है। उल्लेखनीय है कि रविवार शाम को जिला अस्पताल के एमसीएच यूनिट के जेएसएसवाई वार्ड में एंटीबायोटिक इंजेक्शन लगने से करीब 32 प्रसूताएं कंपकपाने लगी थी। एंटीबायोटिक इंजेक्शन का नाम सैफ्ट्रियाजोन है। सिजेरियन या साधारण प्रसव के दौरान लगाए जाने वाले टांकों को सुखाने के लिए इस इंजेक्शन को प्रसूताओं को करीब तीन दिन तक लगाए जाते हैं। जब तक अस्पताल प्रबंधन को कुछ समझ आता महिलाओं के कांपने पर परिजनों ने शोर मचाना शुरू कर दिया। इससे वार्ड में ड्यूटी पर तैनात नर्सिंग कर्मियों के भी होश उड़ गए। स्थिति बिगडऩे पर अस्पताल प्रबंधन को सूचना दी गई थी। इसके बाद आधा दर्जन चिकित्सकों ने वार्ड में पहुंचकर प्रसूताओं के स्वास्थ्य की जांच की गई। करीब एक घंटे के बाद जाकर हालात सामान्य हो पाए थे। इसके चलते अस्पताल प्रबंधन के इस इंजेक्शन पर रोक लगा दी थी और औषधि निरीक्षक की ओर से जांच रिपोर्ट आने तक दवा स्टोर में पड़े 200 इंजेक्शन को सील भी किया जा चुका है।
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