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हनुमानगढ़

रोटी के लिए घर छोड़ा, अब भूख के डर से घर वापसी

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हनुमानगढ़. रोटी के लिए घर छोडऩे वालों की अब भूख के डर से घर वापसी हो रही है। क्योंकि जिसके लिए घर छोड़ा था, वह मिलनी बंद हो गई। जब भूखे पेट ही दिन काटने हैं तो सड़क या किराए की दड़बेनुमा कोठरी की बजाय अपने टूटे-फूटे घर में ही रहा जाए। जैसे-तैसे अपने घर व गांव में वक्त गुजार लेंगे। कुछ ऐसी ही सोच और हालात के चलते देश से लेकर जिले तक में मजदूरों के जत्थे एक से दूसरे शहर में जा रहे हैं।

हनुमानगढ़Apr 01, 2020 / 10:19 pm

adrish khan

रोटी के लिए घर छोड़ा, अब भूख के डर से घर वापसी

रोटी के लिए घर छोड़ा, अब भूख के डर से घर वापसी

रोटी के लिए घर छोड़ा, अब भूख के डर से घर वापसी
– रोजी-रोटी के साथ ठिकाना छिन जाने के कारण लौट रहे मजदूर
– गुजरात व पंजाब की तरफ यात्रा करने वाले मजदूरों से भरे वाहन निरंतर आ रहे पकड़ में
हनुमानगढ़. रोटी के लिए घर छोडऩे वालों की अब भूख के डर से घर वापसी हो रही है। क्योंकि जिसके लिए घर छोड़ा था, वह मिलनी बंद हो गई। जब भूखे पेट ही दिन काटने हैं तो सड़क या किराए की दड़बेनुमा कोठरी की बजाय अपने टूटे-फूटे घर में ही रहा जाए। जैसे-तैसे अपने घर व गांव में वक्त गुजार लेंगे। कुछ ऐसी ही सोच और हालात के चलते देश से लेकर जिले तक में मजदूरों के जत्थे एक से दूसरे शहर में जा रहे हैं। हनुमानगढ़ में पिछले दो दिन में कई ट्रक व जीप श्रमिकों से भरे पकड़े हैं।
मजदूरों की पत्रिका से हुई बातचीत का सार यही रहा कि जहां मजदूरी कर रहे थे, वहां काम मिलना बंद हो गया। ताजा कमाकर ताजा खाते, इसलिए राशन-पानी का स्टॉक भी नहीं कर सके। जबकि कई मजदूरों को तो मालिकों ने ही कमरे खाली करने का आदेश दे दिया। जबकि ठेकेदार के जरिए मजदूरी करने वाले तो खानाबदोश ही थे। छत के नाम पर जहां काम करते वहीं रुक जाते। लॉकडाउन के चलते मजदूरों की न केवल मजदूरी बंद हुई बल्कि बहुत से श्रमिकों का रहने का ठिकाना भी छिन गया। यही वजह है कि पिछले कुछ दिन से निरंतर लाखों मजदूर देश के भीतर ही एक से दूसरे शहर का सफर कर रहे हैं। यह अलग बात है कि कोरोना संक्रमण संकट के इस समय में उनका सफर सबकी जान सांसत में डाल रहा है। कोरोना वायरस संक्रमण के भय के बीच दूसरे राज्यों व शहरों से घर लौट रहे लोग प्रशासन के साथ-साथ अन्य के लिए भी चिंता का सबब बने हुए हैं।
करते इंतजाम तो…
जीप में सवार होकर जम्मू से भीलवाड़ा जा रहे 30 मजदूर परिवारों को पुलिस ने सोमवार को सतीपुरा के पास रोका। यह परिवार जम्मू में ठेकेदार के यहां मजदूरी कर गुजारा कर रहे थे। मगर लॉकडाउन के कारण काम-धंधा ठप हो गया। जहां काम करते थे, वहीं रह लेते थे। ऐसे में उनका रोजगार व ठिकाना दोनों छिन गए। आखिरकार घर लौटने का ही रास्ता बचा। इसी तरह तीन ट्रकों में सवार होकर गुजरात के विभिन्न शहरों से पंजाब जा रहे 72 मजदूरों को टाउन पुलिस ने कोहला के पास पकड़ा। इनकी भी पीड़ा वही रोजी-रोटी व आसरा छिन जाने की थी। देश के दो से तीन राज्यों तक का सफर मजदूर कर घर लौट रहे हैं। कई पुलिस की पकड़ में आ रहे हैं और कई नहीं भी आ रहे हैं। मगर सवाल यह है कि लॉकडाउन के बाद आखिर क्यों इस तरह के मजदूर परिवारों को चिह्नित कर उनके उसी जगह रुकने व भोजन का इंतजाम नहीं किया गया। केवल आदेश की घुट्टी पीकर मजदूर आखिर क्यों रुकेंगे। कहीं ना कहीं यह वहां के स्थानीय शासन व प्रशासन की विफलता है।
जानकारी छिपाना खतरनाक
मजदूरों से इतर अगर बात करें ऐसे लोगों की जो विदेशों तथा अन्य राज्यों से पिछले एक-दो सप्ताह के दौरान जिले में आए हैं तो यह तथ्य निकल कर आता है कि लोग यात्रा संबंधी सूचना छिपा रहे हैं। जिला प्रशासन तथा चिकित्सा विभाग के नियंत्रण कक्ष को जो सूचनाएं मिल रही हैं, वह परिजनों की बजाय आस-पड़ोस के लोग ही दे रहे हैं। मगर यह खतरनाक स्थिति है। क्योंकि यदि किसी की ट्रैवल हिस्ट्री छिपाई गई और वह व्यक्ति कोरोना पॉजीटिव हुआ तो सबसे पहले उसके परिजन ही संक्रमित होंगे। इसलिए जरूरी है कि प्रशासन को सूचना दें। होम आइसोलेट का पालन करें। स्क्रीनिंग वगैरह करवा कर अपनी व परिजनों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।
दूसरे सप्ताह के बाद जरूरी
विदेश या अन्य राज्यों से जो लोग लौटे हैं, उन सबकी ही सूचना प्रशासन को देना आवश्यक नहीं है। अगर कोई व्यक्ति 15-16 मार्च या उससे पहले बाहर से आया है और अब तक उसे बुखार, खांसी, सांस में तकलीफ वगैरह की कोई दिक्कत नहीं है तो उसकी सूचना देना जरूरी नहीं है। क्योंकि कोरोना वायरस से संक्रमित व्यक्ति में 14 दिन के भीतर संक्रमण के लक्षण नजर आ जाते हैं।
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