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हरदा

शिक्षा मंत्री के गृह जिले के हाल, सात किमी नदी को एक हाथ से तैरकर पार कर स्कूल पहुंचते हैं बच्चे, पढ़ें पूरी खबर

सात किमी के पहाड़ी रास्ते पर रोज जोखिम उठाते हैं महागांव के 50 छात्र-छात्राएं

हरदाSep 09, 2018 / 11:29 am

sanjeev dubey

school education minister in mp latest news

शिक्षा मंत्री के गृह जिले के हाल, सात किमी नदी को एक हाथ से तैरकर पार कर स्कूल पहुंचते हैं बच्चे, पढ़ें पूरी खबर

हरदा. शिक्षा आदमी का जीवन बदल देती है। यह बात वनवासियों में दिलोदिमाग में फिट बैठी और उन्होंने बच्चों को स्कूल से जोड़ा। पढऩे के लिए जान का जोखिम उठाना पड़ रहा, तो भी उनके बच्चे पीछे नहीं हट रहे। इसके उलट विकसित समाज के सपने को साकार करने दशकों से जी जान लगाकर जुटी सरकार शिक्षा के विकास के लिए कितना और कैसा काम कर रही है यह वनग्रामों की स्थिति देखकर जाना जा सकता है। नौबत यह है कि स्कूल शिक्षा मंत्री विजय शाह के गृहजिले में ही बच्चों को पहले दुर्गम रास्तों पर चलकर, इसके बाद पहाड़ी नदी को तैरकर पार करते हुए स्कूल जाना पड़ रहा है। जिस गांव में स्कूल है वहां छात्रावास तो है, लेकिन जरुरत मुताबिक सीट नहीं। टिमरनी विधानसभा क्षेत्र के तहत आने वाले इस गांव के बच्चे सालों से इसी तरह जोखिम उठाते हुए स्कूल पहुंचते हैं। यहां बता दें कि इस क्षेत्र के विधायक संजय शाह, स्कूल शिक्षा मंत्री विजय शाह के छोटे भाई हैं। आदिवासियों का नेतृत्व करने वाले जिले की तत्कालीन मकड़ाई रियासत के वंशज दोनों भाई यह समस्या सालों बाद भी दूर नहीं करा सके।
ऐसे तय होता है सात किमी का जोखिम भरा सफर
टिमरनी ब्लाक के महागांव के माध्यमिक, हाइस्कूल व हायर सेकंडरी स्कूल में पढऩे वाले करीब 50 बच्चे रोज अपने स्कूली सफर की शुरुआत सुबह 8 बजे कर देते हैं। बोरी गांव के स्कूल जाने में 15 किमी लंबे फेर से बचने के लिए वे दुर्गम पहाड़ी रास्ते पर चलते हैं। बोरी तक सात किमी की दूरी उन्हें बागड़ फांदने के साथ ही जंगली झाडिय़ों के बीच पहाड़ी पगडंडियों पर चलते हुए तय करना पड़ता है। रास्ते में गंजाल नदी तैरकर पार करने की चुनौती उनके शिक्षा के प्रति मजबूत इरादे को दर्शाती है। किनारे पर छात्र स्कूल ड्रेस और बस्ता हाथ में रखकर नदी में उतर जाते हैं। छात्राओं की मदद करते हुए उनके बस्ते भी छात्र ही रखते हैं। चट्टानों के बीच फिसलन पर संतुलन बनाते हुए नदी में कुछ दूरी चलकर तय होती है। पानी गहरा होते ही सभी बच्चे हाथ ऊंचा कर तैरना शुरू करते हैं, ताकि कपड़े और बस्ता भीग न जाए। पहाड़ी नदी के तेज बहाव को चीरते हुए दूसरे किनारे पहुंचकर वे झांडिय़ों के पीछे कपड़े बदलकर स्कूल के लिए निकल पड़ते हैं। पानी कम होने पर उन्हें लकड़ी टेककर नदी पार करना पड़ती है।
बोरी में छात्रावास खुले तो दूर हो परेशानी
मिडिल स्कूल की छात्रा राखी, आरती, लीलावती, अनुजा और हायर सेकंडरी की छात्रा संगीता आदि के मुताबिक गांव में प्राथमिक तक ही स्कूल है। माध्यमिक, हाईस्कूल व हायर सेकंडरी स्कूल बोरी में है। गांव से बोरी की सड़क मार्ग से दूरी करीब 15 किमी है। सीधा रास्ता सात किमी पड़ता है। इस बीच सभी बच्चे तैरकर नदी पार करते हैं। वे पढऩा चाहते हैं। बोरी में छात्रावास नहीं होने से उन्हें मजबूरी में ऐसा करना पड़ रहा है। ढेगा गांव के कई बच्चों को भी इसी तरह अन्य नदी पार कर बोरी के स्कूल जाना पड़ता है।
सालों बाद भी बालिका छात्रावास नहीं बना सकी सरकार
क्षेत्र के लोगों को इस बात पर मलाल होने के साथ ही आक्रोश भी है कि आदिवासियों के विकास का दम भरने वाली सरकार बोरी में बालिका छात्रावास नहीं बनवा सकी। बोरी में आदिम जाति कल्याण विभाग का 50 सीटर बालक आश्रम व इतनी की सीट वाला प्री मैट्रिक छात्रावास है। सर्व शिक्षा अभियान के तहत मिडिल के बच्चों के लिए 50 सीटर छात्रावास भी है। यानि यहां 150 बच्चों के रहने की व्यवस्था ही है। जबकि हायर सेकंडरी स्कूल खुलने के बाद बोरी आसपास के कई गांवों की शिक्षा का केंद्र बिंदु बन चुका है। यहां छात्रावासों की जरुरत होने के बावजूद इसे पूरा नहीं किया जा सका।
दोनों विभाग एक-दूसरे पर ढोल रहे जिम्मेदारी
पत्रिका ने इस संबंध में जिला शिक्षा अधिकावारी सीएस टैगोर व आदिम जाति कल्याण विभाग के जिला संयोजक सीपी सोनी से चर्चा की तो दोनों ही अधिकारी इस समस्या को दूर करने का जिम्मा एक-दूसरे के विभाग पर ढोलते रहे। वे मौजूदा व्यवस्था को बताने के अलावा कोई ठोस जवाब नहीं दे सके।
मंत्री लालसिंह आर्य ने भी किया नजरअंदाज
ज्ञात हो कि आदिम जाति कल्याण विभाग के मंत्री लालसिंह आर्य करीब दो साल तक जिले के प्रभारी मंत्री भी रहे। इसके बावजूद वे वनग्रामों में व्याप्त इन गंभीर समस्याओं का निदान नहीं करा सके।

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