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हरदा

31 साल से नि:शुल्क पढ़ा रहे ‘चुटिया वाले गुरुजी’, कई छात्र बन गए देश के बड़े अफसर

– सातवीं कक्षा पास लकवाग्रस्त किसान के पढ़ाए कई बच्चे अच्छी नौकरियों में जा चुके

हरदाSep 05, 2020 / 02:36 pm

gurudatt rajvaidya

शिक्षक दिवस विशेष . टेमागांव में 31 साल से नि:शुल्क पढ़ा रहे 'चुटिया वाले गुरुजीÓ, घर में भी लगाते हैं एक्सट्रा क्लास

शिक्षक दिवस विशेष . टेमागांव में 31 साल से नि:शुल्क पढ़ा रहे ‘चुटिया वाले गुरुजीÓ, घर में भी लगाते हैं एक्सट्रा क्लास

गुरुदत्त राजवैद्य

हरदा। खाली दिमाग, शैतान का घर बन जाता है। अत: ऐसे समय क्या किया जाए जिससे लोगों का भला हो और यह याद किया जाए। यही सोच रखकर टेमागांव निवासी एक किसान सरकारी स्कूल में बीते 31 साल से बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा दे रहे हैं। खास बात यह है कि बचपन से लकवाग्रस्त यह किसान खुद सातवीं तक शिक्षित हैं, लेकिन मुख्य विषय हिन्दी को वे इतना बखूबी पढ़ाते हैं कि इनका सिखाया सबक बच्चे ताउम्र न भूलें।

 

गांव के बच्चों के बीच ‘चुटिया वाले गुरुजी’ की छाप से पहचाने जाने वाले संतोष पिता शिवप्रसाद सोलंकी बताते हैं कि डेढ़ साल की उम्र में वे लकवा का शिकार हो गए थे। गांव के स्कूल में तीसरी कक्षा तक पढ़ाई करने के बाद वे हरदा चले आए। यहां कक्षा सातवीं में पढ़ते थे उसी दौरान वे फिट आने की बीमारी का शिकार हो गए। पिता ने इकलौते बेटे संतोष को अपने पास गांव में ही रखने का निर्णय लिया और उनकी पढ़ाई छूट गई।

 

जवान हुए तो फिट आने की बीमारी स्वत: ही खत्म हो गई और विवाह होने पर गृहस्थी संभालने में लग गए। लकवा की वजह से बड़ा कार्य करने में अक्षम 22 एकड़ के काश्तकार संतोष सोलंकी अब यही सोचने लगे कि खाली समय का सदुपयोग कैसे किया जाए। गांव में यहां-वहां बैठेंगे तो पिता का नाम खराब होगा। लिहाजा उन दिनों सरपंच रहे अपने एक रिश्तेदार को मन की बात बताई कि वे स्कूल में पढ़ाना चाहते हैं।

 

यह बात सुनकर उन्होंने सरकारी स्कूल के प्रधानपाठक के नाम एक पत्र तैयार कर दिया कि संतोष अब से नि:शुल्क शिक्षा देंगे। 16 अगस्त 1989 से शुरू हुआ यह पुनीत कार्य अब भी जारी है। वे प्राथमिक कक्षा के बच्चों को हिन्दी विषय पढ़ाते हैं। माध्यमिक स्कूल की कक्षा में शिक्षक न होने पर वे वहां भी इसी विषय का पीरियड लेते हैं। कोराना वायरस के संक्रमण काल में फिलहाल वे मोहल्ला क्लास लगाकर बच्चों पढ़ाई करा रहे हैं।


शिक्षक संतोष सोलंकी बताते हैं कि उनके पढ़ाई करीब सात छात्राएं और दस छात्र शिक्षक, तहसीलदार, इंजीनियर, सेना सहित अन्य नौकरियों में हैं। जब भी वे मिलते हैं तो उनके चरण स्पर्श कर आशीर्वाद मांगते हैं। यह क्षण संतोष के जीवन के अविस्मरणीय पलों में शुमार हैं। इसे ही वे अपनी कमाई मानते हैं। शिक्षक संतोष के मुताबिक पढ़ाने के साथ ही वे सरकारी स्कूलों के शिक्षकों से कराए जाने वाले जनगणना, वीईआर आदि सर्वे में भी हाथ बंटाते हैं। स्कूल के प्रधानपाठक शिवराज सिंह सावलेकर, शिक्षक राजेंद्र कुमार नागरे, शिक्षक गेंदालाल देवराले आदि शिक्षक सोलंकी के कार्यों से प्रभावित होकर सदा ही नमन करते हैं।


पांचों बच्चों को शिक्षित बनाया

शिक्षक संतोष सोलंकी की पांच संतान हैं। इनमें एक बेटा और दो बेटियां स्नातक तक शिक्षित हैं। वहीं एक बेटे और एक बेटी ने हायर सेकंडरी तक पढ़ाई की है। शिक्षा दान के पुनीत कार्य को करने वाले सोलंकी खाली समय में अपने घर में भी एक्सट्रा क्लास लगाकर बच्चों को नि:शुल्क पढ़ाते हैं।


जन्म से नेत्रहीन शिक्षक जला रहा शिक्षा की अलख

दुर्गेश गौर, टेमागांव। समीप के भादूगांव के सरकारी स्कूल में पदस्थ एक शिक्षक खुद नेत्रहीन हैं, लेकिन दुनिया में शिक्षा का अलख जगाकर बच्चों का जीवन रोशन कर रहे। इनके पढ़ाए कई बच्चों का जीवन संवरा है। मूलत: बैतूल जिले की मुलताई तहसील के अंधारिया के निवासी शिक्षक प्रेमचंद धाकड़े वर्ष 2009 से यहां संविदा शिक्षक वर्ग 2 के पद पर पदस्थ हैं।

बच्चों को सामाजिक विज्ञान विषय पढ़ाने वाले नेत्रहीन शिक्षक धाकड़े के अनुसार शिक्षा के क्षेत्र में आने से पहले उन्होंने अहमदाबाद (गुजरात) से मोटर बाइंडिंग की ट्रेनिंग ली थी। इसके बाद पाढर में लंबे समय यह कार्य किया। मन में था कि शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करना है। उनकी इच्छा पूर्ण भी हुई और भादूगांव के स्कूल में पहली पदस्थापना मिली।

शुरुआती दिन कुछ कठिन रहे, लेकिन इसके बाद से वे किसी भी व्यवधान के बगैर बच्चों को उनका विषय पढ़ाते हैं। खेलों में विशेष रुचि रखने वाले 48 वर्षीय शिक्षक प्रेमचंद धाकड़े के अनुसार वे बेडलिफ्टिंग, रनिंग, चकती फेंक, तैराकी आदि में राष्ट्रीय स्तर तक प्रदर्शन कर मैडल प्राप्त कर चुके हैं। शिक्षक दिवस की पूर्व संध्या पर उन्होंने बच्चों को मन लगाकर पढ़ने व साथी शिक्षकों को अपने कर्तव्य ठीक ढंग से निभाने का संदेश दिया। वहीं समाज के लिए उनका कहना रहा कि हर बच्चे को अपना समझकर व्यवहार किया जाए।

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