स्थाई नौकरी मिलेगी
महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत एक सप्तााह से गांव के नजदीक वन क्षेत्र में चेक डैम निर्माण में काम कर रहा यह युवक कुछ साल पहले पास के जामुनवाली गांव के स्कूल में अतिथि शिक्षक रह चुका। बच्चों को पढ़ाने का अस्थाई काम छूटा तो यह सोचकर पीथमपुर गया कि स्थाई नौकरी मिलेगी और भविष्य संवर जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हो सका।
190 रुपए प्रतिदिन में मजदूरी शुरू कर दी
कला संकाय में स्नातक तोताराम को वहां की एक कंपनी में 14000 रुपए मासिक में मशीन ऑपरेटर का कार्य तो मिला, लेकिन संक्रमण काल में वह भी छूट गया। युवक के अनुसार परिवार सहित लौटने के बाद कुछ दिन तो जमा पूंजी से गुजारा किया, बाद में मनरेगा में पंजीयन कराके 190 रुपए प्रतिदिन में मजदूरी शुरू कर दी।
मजबूरी में पलायन करना पड़ेगा
योजना के तहत निर्धारित 100 दिन का रोजगार पूरा होने या बारिश में काम बंद होने के बाद परिवार का खर्च चलाने के सवाल पर उसका कहना रहा कि गांव में 5400 वर्गफीट के प्लॉट पर खेती कर गुजर-बसर करेंगे। मजदूरी कर दिन काट रहे अनुसूचित जाति वर्ग के इस शिक्षित युवक की सरकार से अपेक्षा है कि उसे स्वरोजगार मिले। ऐसा नहीं हुआ तो उसे एक बार फिर मजबूरी में पलायन करना पड़ेगा।
सभी ग्रामीणों को नहीं मिलता राशन
कांकरदा (कलेक्टर नगर) इंदिरा सागर बांध का पुनर्वास स्थल है। बांध के बैक वाटर से सटे इस गांव में सभी लोगों को राशन नहीं मिलता। मनेरगा के मेट करण ठाकुर व मजदूर कुंतीबाई ने बताया कि अजनाल नदी किनारे बसे इस गांव के लोगों के राशन कार्ड दूसरी पार के बिछौला गांव की दुकान के थे।
ट्रांसफर नहीं होना इसका कारण
नदी में बैक वाटर बढऩे से सभी लोग वहां राशन लेने नहीं जा पाते। जामुनवाली व भरतार गांव के 57 परिवारों को राशन नहीं मिलता। इनमें से 30 परिवारों के पास राशन कार्ड नहीं है। बचे परिवारों के कार्ड कांकरदा की दुकान में ट्रांसफर नहीं होना इसका कारण है।