कुपोषण का दंश बरकरार, तहसील मुख्यालय से 4 किमी की दूर मिला अतिकुपोषित बच्चा
पोषण माह जैसे अभियानों की सार्थकता का नहीं दिख रहा असरसही समय पर मिला उपचार तो बची कुपोषित की जिंदगी, लेकिन दूसरे कुपोषितों के लिए चिंता जरूरी
कुपोषण का दंश बरकरार, तहसील मुख्यालय से 4 किमी की दूर मिला अतिकुपोषित बच्चा
खिरकिया. नाम-दीप, उम्र-1 वर्ष, वजन-6 किलो, ऊंचाई 65 सेमी और शरीर में खून महज 3 ग्राम। यह स्थिति तहसील मुख्यालय से 4 किमी दूर स्थित ग्राम पड़वा के कुपोषित बच्चे की है। कुपोषण के दंश को मिटाने के लिए शासन द्वारा जमीनी स्तर से संस्थागत उपचार तक की व्यवस्था की गई है। ऐसे बच्चों पर नजर रखने के लिए मैदानी कर्मचारी लगाए गए है, उन्हें प्रोत्साहन राशि भी दी जाती है, लेकिन कुपोषण की भयावह स्थिति बनी हुई है। वर्षों से कुपोषण क्षेत्र के लिए नासूर बना हुआ है। पिछले कुछ वर्षों में कुपोषण की स्थिति में सुधार भी हुआ है, लेकिन अब भी वही ढांक के तीन पात की स्थिति बन रही है। कुपोषण को लेकर संचालित व्यवस्था भगवान भरोसे है। ऐसे में पोषण माह जैसे अभियान चलाने की सार्थकता भी नहीं दिख रही है। पड़वा का 1 वर्षीय दीप अतिकुपोषित श्रेणी में आता है। हालांकि बच्चे पर स्वास्थ्य विभाग के अमले की नजर पड़ गई। इससे बच्चा अब स्वस्थ्य हो रहा है, लेकिन ऐसे कई बच्चे है, जिन पर स्वास्थ्य या महिला बाल विकास की नजर नहीं है।
कुपोषण को मिटाने झाड़ फूंक का ले रहे सहारा-
कुपोषण को लेकर जागरूकता की कमी बनी हुई है। इसका उदाहरण भी देखने को मिल रहा है। आज भी कुपोषित बच्चों के इलाज के लिए चिकित्सा सुविधा की बजाए झाड़ फूंक का सहारा लिया जा रहा है। बच्चे को उपचार के लिए लाते वक्त उसके गले में बहुत सी माला वगैरह थी। परिजनों का कहना था कि बच्चा हमेशा बीमार रहता है, इसलिए उसकी झाड़-फूंक करवा रहे है। जबकि बच्चे के शरीर में पोषण तत्वों एवं खून की कमी थी। इसका एक मात्र उपचार चिकित्सा ही है। कुपोषित बच्चों के उपचार के लिए तमाम सुविधाएं मौजूद है। बावजूद इसके लोग आज भी झाड़ फूंक के चक्कर में जिंदगी गंवा रहे है। कहीं कहीं तो चचुआं प्रथा आज भी प्रचलित है।
एनआरसी में नहीं पहुंचा रहे कुपोषित बच्चे –
अस्पताल केे एनआरसी में कुपोषित बच्चे नहीं पहुंच रहे है। एनआरसी की स्थिति बंद जैसी है। जमीनी स्तर से कर्मचारी बच्चों को रैफर नहीं कर पा रहे है। ऐसे में कुपोषण के खिलाफ जंग बंद सी लग रही है। कुपोषित बच्चों को पोषित किए जाने का स्तर दिनों दिन गिरता जा रहा है। यदि सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र की एनआरसी में व्यवस्था होती तो बच्चे को भोपाल नहीं ले जाना पड़ता। स्थानीय स्तर पर ही उपचार मिल जाता, लेकिन व्यवस्थाओं में सुधार और इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है।
कार्यशाला में आया बच्चा, चिकित्सक ने दिखाई रूचि, अब सेहत में सुधार
पोषण माह के अंतर्गत 3 सितंबर को शासकीय आयुर्वेद औषधालय पड़वा में आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी डॉ. कामिनी नागराज ने कुपोषण के संबंध में कार्यशाला का आयोजन किया था। इसमें इस बच्चे को उपचार के लिए लाया गया था। बच्चे की स्थिति गंभीर थी। उसके शरीर में महज 3 ग्राम खून था। चेहरे और पैरों पर सूजन थी। बच्चे को एनआरसी में भर्ती करवाने के लिए उसके माता तथा पिता को प्रोत्साहित किया। शासन की योजनाओं के बारे में बताया। इसके बाद खिरकिया, फिर हरदा एवं वहां से बच्चे को भोपाल रैफर किया गया। जहां उसे खून भी चढ़ाया गया। भोपाल में कुछ दिन रहने के बाद बच्चे की मां और दादी उसे लेकर वापस आ गए, लेकिन चिकित्सक ने पुन: हरदा एनआरसी में भर्ती कराया। डॉ नागराज ने कहा कि कार्यशाला के माध्यम से ही हम उस बच्चे को चिह्नित कर पाए। शासन की योजना बताकर बच्चों को प्रोत्साहित किया। एएनएम इन्ना मार्कोवा, आशा कार्यकर्ता सीमा चौहान आदि के सहयोग से बच्चे को सहीं उपचार दिलाने में सफल रहे। उपचार मिलने से बच्चे के वजन बढ़कर साढ़े ७ किलो एवं हीमोग्लोबिन 8 हो गया है। बच्चे के शरीर की सूजन भी कम हो रही है। फिलहाल बच्चा स्वस्थ्य है। महिला चिकित्सक के प्रयास से बच्चे को नई जिंदगी मिल सकी।
डब्ल्यूएचओ की टीम ने किया भ्रमण –
टीकाकरण कार्य को लेकर डब्ल्यूएचओ भोपाल से अधिकारी एवं चिकित्सक गत दिवस ग्राम पड़वा पहुंचे। जहां पर उन्होंने टीकाकरण कार्य के दौरान कुपोषित बच्चे की स्थिति भी देखी। साथ ही उसे एनआरसी में भर्ती कराने के लिए बच्चे के माता पिता को परामर्श भी दिया। टीम में डॉ. अविनाश कनेरे के साथ सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र के बीपीएम राजकुमार इंदौरे भी मौजूद थे।
इनका कहना है-
बच्चे में खून की कमी थी। ब्लड चढाने के लिए उसे हरदा रैफर किया गया था। भोपाल में उपचार के संबंध में जानकारी नहीं है।
डॉ. प्रणव मोदी, मेडीकल ऑफिसर, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र खिरकिया
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