scriptजरा याद करो कुर्बानी… रूइया गढ़ी के राजा नरपत सिंह ने गोरी हुकूमत के छुड़ा दिए थे छक्के | A untold Brave Story Of Raja Narpati SIngh Of ruiya Durg in Hardoi 1857 Freedom Fight Hindi News | Patrika News
हरदोई

जरा याद करो कुर्बानी… रूइया गढ़ी के राजा नरपत सिंह ने गोरी हुकूमत के छुड़ा दिए थे छक्के

चार युद्ध में अंग्रेजों की फौज को खदेड़ दिया था, पांचवेें में हुए शहीद, ताजिंदगी अंग्रेजों को हरदोई की जमीन पर कदम नहीं रखने दिया

हरदोईAug 10, 2017 / 04:43 pm

आलोक पाण्डेय

Raja Narpati SIngh, 1857 Freedom Fight

Raja Narpat SIngh Statue in Hardoi

 नवनीत द्विवेदी

हरदोई. माधौगंज कस्बे से उत्तर दिशा में करीब दो किलोमीटर के फासले पर एक छोटा से गांव है रूइया गढ़ी। देश के दूसरे तमाम सामान्य गांवों की तरह यहां भी बदहाली मुंह बाये खड़ी है, लेकिन आजादी की लड़ाई में रूइया गढ़ी का नाम सुनकर गोरी हुकूमत कांपती थी। उस दौर में रूइया गढ़ी एक रियासत हुआ करती थी। राजा थे नरपत सिंह। अवध के ज्यादातर इलाकों में काबिज होने के बाद अंग्रेज फौज हरदोई में भी कब्जा करने की फिराक में थी, लेकिन नरपत सिंह की अदम्य बहादुरी और रणनीति के कारण अंग्रेजों को चार मर्तबा करारी हार का सामना करना पड़ा। पांचवे युद्ध में अंग्रेजों ने बड़ी संख्या में सैनिकों और तोप के साथ हमला बोला। इस जंग में भी नरपति सिंह और रूइया गढ़ी के सैनिकों ने मुंहतोड़ जवाब दिया। अंग्रेजों के पैर उखडऩे लगे थे, इसी दौरान अचानक राजा शहीद हो गए। ऐसे हालात में हरदोई में अंग्रेजों का कब्जा रोकने वाला सूरमा नहीं बचा था।
हरदोई में ब्रितानी झंडा लहराने के लिए तरसते रहे अंग्रेज

हरदोई मुख्यालय से 36 किलोमीटर दूर रूइया गढ़ी में आज भी अंग्रेजी हुकूमत की शिकस्त की गाथा करीने से पिरोई गई है। वाकई रूइया दुर्ग जनपद ही नहीं, बल्कि देश के लिए गर्व की कहानी है। तीन तरफ से झील से घिरा रूइया गांव आजादी से पहले रूइया दुर्ग या रूमगढ़ नाम से प्रसिद्घ था। अवध में अंग्रेजों का आधिपत्य स्थापित हो चुका था, लेकिन हरदोई की जमीन पर अंग्रेजों के ैपर नहीं टिक सके थे। रुइया दुर्ग के के राजा नरपत सिंह ने अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ बिगुल फूंक रखा था। इसी दौरान कानपुर से पेशवा ने राजा को आजादी की लड़ाई में सहयोग के लिए न्योता तो राजा ने उन्हें आश्वस्त किया कि नरपति के जिंदा रहते अंग्रेज हरदोई में ब्रितानी झंडा नहीं लहरा पाएंगे।
चार जंग में अंग्रेज फौज को राजा की सेना ने खदेड़ दिया

राजा की खिलाफत को अंग्रेजों ने अपना अपमान समझा और हरदोई पर हमला बोल दिया। राजा नरपत सिंह ने करीब डेढ़ वर्ष तक अंग्रेजों से लोहा लिया। रूइया के शूरवीर सैनिकों ने तमाम अंग्रेज सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया और हरदोई में अंग्रेजों को घुसने नहीं दिया। अंग्रेजों ने रुइया को घेरने के लिए मल्लावां में छावनी बनाने का प्रयास किया तो राजा ने 8 जून 1987 को धावा बोलकर मल्लावां में अंग्रेज फौज की टुकड़ी को मौत के घाट उतार दिया। जिले का डिप्टी कमिश्नर डब्ल्यू. सी. चैपर भागने में सफल रहा। इसके बाद अंग्रेजों ने बड़ी फौज के साथ राजा नरपत सिंह पर हमला बोल दिया, लेकिन शिकस्त की खानी पड़ी। इतिहासकारों के मुताबिक राजा पर अंग्रेजों ने चार मर्तबा आक्रमण किया था। पही मर्तबा 15 अप्रैल 1858 को रूइया दुर्ग पर, इसके बाद 22 अप्रैल 1858 रामगंगा किनारे सिरसा ग्राम में। तीसरा हमला 28 अक्तूबर को रूइया दुर्ग पर हुआ। आखिरी युद्ध 9 नवंबर 1858 को मिनौली में हुआ। इस जंग में काफी नुकसान हुआ। नतीजे में नरपत सिंह को छोड़ सभी राजा, नवाब, जमीदार अंग्रेजों के अनुयायी हो गए, राजा नरपति व अंग्रेजों में करीब डेढ़ साल युद्घ जारी रहा। डेढ़ साल तक चले युद्ध के बाद नरपति सिंह शहीद हो गए ।
यादगार के तौर पर एक स्मारक, विकास के लिए रूइया तरस रहा
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी उत्तराधिकारी संगठन के अध्यक्ष धर्मेंद्र सिंह सोमवंशी ने रूईया में 1857 की आजादी की क्रांति में अंग्रेजों के दांत खट्टे करने वाले रुइया नरेश नरपत सिंह की याद में स्मारक बनाए जाने को लेकर आवाज उठाई, जिसके बाद वर्ष 2000 में राजा नरपत सिंह की मूर्ति स्थापना के साथ स्मारक का निर्माण हुआ और तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने स्मारक का अनावरण किया। भाजपा नेता अशोक सिंह बताते हैं की आजादी के पर्व पर बड़ी संख्या में लोग श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं। अफसोसजनक यह है कि नरपत सिंह की वीर गाथा याद दिलाने वाली रुइया गढ़ी में स्मारक बनने के बाद और कोई विकास कार्य नहीं हुए।

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