अध्ययनों से पता चला है कि लगातार व्यायाम हमारे दिल के आकार को नई आकृति प्रदान करता है। जब रोजाना एक स्थायी गति, दर और दोहराव वाले व्यायाम लंबे समय तक किए जाते हैं तो इससे दिल पर जोर पड़ता है जिससे यह फैलकर और बड़ा और मजबूत बनकर प्रतिक्रिया करता है ताकि यह व्यायाम के दौरान अधिक रक्त पंप कर सके। मेलबर्न विश्वविद्यालय (Melbourne University) के हृदयरोग विशेषज्ञ एंड्रे ला हरशे कहते हैं कि बारबेल उठाने से बाइसेप्स मजबूत और विकसित होते हैं। ऐसे ही लगातार लंबे समय तक बेहद जटिल एक्सरसाइज करने वाले एथलीट का दिल सामान्य व्यक्ति की तुलना में आकार से दोगुना बड़ा और अधिकसक्षम हो सकता है। लेकिन इस प्रक्रिया में दिल पर अत्यधिक दबाव पड़ता है।
अमरीका के कंसास शहर के कॉर्डियोलॉजिस्ट जेम्स ऑश्फीक का कहना है कि क्रॉनिक एक्सट्रीम एक्सरसाइज करने से एट्रियल फाइब्रिलेशन का खतरा लगभग 500 से 800 गुना तक बढ़ जाता है। 2013 में, स्वीडिश शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन प्रकाशित किया था जिसमें वेसलोपेट में भाग लेने वाले 52 हजार से अधिक स्कीइंग करने वाले खिलाडिय़ों के बीच एएफआइबी के जोखिम की जांच की गई। ये सभी स्कीयर्स 1989 से 1998 के बीच स्वीडन में 90 किलोमीटर की क्रॉस-कंट्री स्की दौड़ में भाग लेने वाले एथलीट थे। जांचकर्ताओं ने पाया कि जिन स्कीयर्स ने क्रॉस-कंट्री स्की दौड़ में सबसे तेज़ समय रेकॉर्ड किया था उन्हें एएफआइबी का जोखिम सबसे अधिक था। इतना ही नहीं 2019 में इन्हीं शोधकर्ताओं ने एक अन्य अध्ययन में 208,654स्वेडिश स्कीअर्स पर किए शोध में पाया कि जिन स्कीअर्स ने 1989 से 2011 के बीच 30 किमी या इससे ज्यादा की एक से ज्यादा क्रॉस कंट्री रेस पूरी की हैं उनमें भी एएफआइबी का होने का खतरा सबसे अधिक था। शोधकर्ताओं ने पाया कि जिन स्कीअर्स ने सबसे तेज या सबसे पहले फिनिश लाइन पार की है उनमें हृदय संबंधी परेशानियों के खतरे औरों से ज्यादा थे। हालांकि महिला स्कीअर्स में परिणाम के आंकड़े अपेक्षाकृत कम नजर आए।
अध्ययन का सबसे महत्वपूर्ण निष्कर्ष यह था कि वे स्की रेसर जिनमें एएफआइबी का होने का खतरा सबसे अधिक था उनमें स्ट्रोक का 27 फीसदी कम जोखिम था और सामान्य आबादी के व्यक्तियों की तुलना में हृदयाघात से मरने का 43 प्रतिशत कम जोखिम था। अध्ययन का तर्क है कि ऐसे एथलीट नॉन-एथलीट्स की तुलना में बेहतर करते हैं। लेकिन इस बात का निष्कर्ष नहीं निकल सका कि कितनी एक्सरसाइज करने पर किसी व्यक्ति या एथलीट में एएफआइबी विकसित होने का अंदेशा होता है। जॉन मैंडरोल का कहना है कि यह शायद केवल व्यायाम पर नहीं बल्कि अन्य चीजों जैसे व्यक्ति की आनुवंशिकी और पर्यावरणीय कारकों पर भी निर्भर करता हैं। हां इतना अवश्य है कि यह महिलाओं की तुलना में पुरुषों में ज्यादा है।
वहीं लेविन के समूह ने एक और संभावित चिंता का अवलोकन किया है। उनके अनुसार जो लोग उच्च स्तरीय भारी व्यायाम करते हैं उनमें कोरोनरी कैल्शियम का स्तर बढ़ सकता है। यह एथेरोस्क्लेरोसिस को बढ़ाता है जो अंतत: हृदय रोग का कारण बन सकता है। उन्होंने पाया है कि भारी व्यायाम करने वालों में लगभग 10 फीसदी तक कोरोनरी कैल्शियम के बढऩे का जोखिम होता है। वहीं ऐसी उच्च स्तरीय एक्सरसाइज करने वालों में कोरोनरी कैल्शियम के उच्च स्तर वाले कार्डियोवास्कुलर अटैक और मृत्यु दर का 25 फीसदी तक कम जोखिम था। साल की शुरुआत में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि मैराथन के प्रशिक्षण और मैराथन पूरा करने वालों की धमनियां अधिक कोमल बन गई थीं जैसे उनकी उम्र चार साल कम हो गई हो। लौरा एफ. डेफीना के नेतृत्व में एक शोध दल ने कूपर सेंटर लॉन्गिट्यूडिनल स्टडी के एक डेटाबेस का उपयोग करके 66 प्रतिभागियों का अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि प्रति सप्ताह लगभग 35 घंटे या अधिक शारीरिक गतिविधि के बराबर चरम स्तर पर व्यायाम करने वाले एथलीटों के हृदय रोग से मरने का खतरा नहीं होता है।
अच्छी खबर यह है कि एएफआईबी आमतौर पर पचार योग्य होता है। अक्सर एक शल्य चिकित्सा जिसे एक एबलेशन कहते हैं की जाती है। यह दोषपूर्ण विद्युत सिग्नलिंग में शामिल ऊतक को नष्ट कर देता है। इसे दूर करने का सबसे अच्छा तरीका है कि हम भारी एक्सरसाइज और लगातार हार्ड ट्रेनिंग ने करें। इसके अलावा अपनी जीवन शैली और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक आदतों को बदलकर भी इससे छुटकारा पाया जा सकता है। लंबे समय तक काम करना और पर्याप्त नींद लेने से भी इसका खतरा बढ़ जाता है। तनावपूर्ण काम छोडऩे के बाद ज्यादातर रोगियोंमें एबलेशन की जरुरत ही नहीं रह जाती क्योंकि एएफआईबी स्वत: बंद हो जाता है।