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कोविड-19: रूस के बाद अब चीन भी पहुंचा वैक्सीन बनाने के करीब

हाल ही रूस ने दावा किया था कि उसने कोरोना वैक्सीन का आखिरी परीक्षण कर लिया है जो सफल रहा है। अब इसी दौड़ में चीन की सिनोवैक कंपनी भी शामिल होने जा रही है। कंपनी का दावा है कि वह जल्द ही मार्केट में टीका उतार सकती है।

Aug 11, 2020 / 04:21 pm

Mohmad Imran

कोविड-19: रूस के बाद अब चीन भी पहुंचा वैक्सीन बनाने के करीब

कोविड-19: रूस के बाद अब चीन भी पहुंचा वैक्सीन बनाने के करीब

दुनिया भर में 2 करोड़ से ज्यादा लोगों को संक्रमित और 7.35 लाख लोगों की जान ले चुके नोवेल कोरोना वायरस की वैक्सीन पर विभिन्न देशों में 100 से ज्यादा परीक्षण चल रहे हैं। लेकिन 7 महीने के थोड़े अंतराल में केवल ब्रिटेन के ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय (Oxford University), रूस की अग्रणी फार्मा कंपनियों में से एक आर. फार्म और चीन की सिनोवैक कंपनी ही अभी तक उम्मीद जगा पाए हैं। हाल ही कनाडा, ब्रिटेन और अमरीका में कोरोना वैक्सीन से जुड़ी रिसर्च को हैक करने का आरोप झेल रहे रूस ने दावा किया है कि उन्होंने कोविड-19 की संभावित वैक्सीन तैयार कर ली है। इस दौड़ में कूदते हुए अब चीनी कंपनी सिनोवैक ने भी अपनी वैक्सीन को लेकर कई अहम खुलासे किए हैं। मंगलवार को कंपनी सिनोवैक बायोटेक लिमिटेड ने अपने वैक्सीन के ह्यूमन ट्रायल के अंतिम चरण की शुरुआत करने की घोषणा की है। गौरतलब है कि चीन इंडोनेशिया के साथ एक साझा समझौते के तहत 1620 इंडोनेशियाई मरीज़ों पर किया जा रहा है। सिनोवैक बायोटेक लिमिटेड इंडोनेशिया की सरकारी कंपनी बायो फार्मा के साथ मिलकर यह वैक्सीन बना रही है।
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दूसरे चरण में सफल रही
कंपनी ने दावा किया है कि उनकी बनाई कोरोनावैक वैक्सीन के पहले और दूसरे चरण के नतीजे आशाजनक रहे और वे दूसरे चरण में भी सफल परीक्षण कर चुके हैं। इसके उपयोग के बाद संक्रमित रोगियों में वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी बन रही है। वहीं इंडोनेशिया के अलावा कोरोनावैक का आखिरी दौर का परीक्षण पहले से ही ब्राज़ील में भी किया जा रहा है। अब बांग्लादेश भी परीक्षण करवाने वाले देशों में शुमार हो सकता है। भारत के साथ सीमा विवाद के बाद चीन लगातार भारत के पड़ोसी देशों पर मेहरबान है। इसमें नेपाल, श्रीलंका और बांग्लादेश पर खास मेहरबानी की जा रही है। बांग्लादेश में वैक्सीन का ट्रायल इसी का हिस्सा हो सकता है।
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रूस का दावा कितना कारगर
रूस की यह तथाकथित कोरोना वैक्सीन देश के 26 प्रायोगिक कार्यक्रमों में से एक है। यह एक वायरल वेक्टर वैक्सीन है जो एक मानव एडेनोवायरस (सामान्य कोल्ड वायरस) पर आधारित है। जिसे सार्स-सीओवी-०२ के स्पाइक प्रोटीन के साथ जोड़कर एक प्रतिरक्षा प्रणाली विकसित करने का प्रयास किया जा रहा है। यह चीन की कैनसिनो बायोलॉजिक्स द्वारा विकसित की जा रही वैक्सीन के ही समान ही है जिसे कनाडा में परीक्षण किया जाने वाला है और रूस के हैकर्स ने इसी वैक्सीन का डेटा चुराने की कोशिश की थी। कैनसिनो के प्रारंभिक परिणामों से पता चला है कि टीका कुछ लोगों में कम प्रभावी था। रूस में शोधकर्ताओं ने दो अलग-अलग प्रकार के एडेनोवायरस वैक्टर परीक्षण कर रहे हैं। पुतिन ने कहा कि इस टीके का इंसानों पर दो महीने तक परीक्षण किया गया है और यह सुरक्षा मानकों पर खरा उतरा है। रूस के स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी वैक्सीन को मंजूरी दे दी है।
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ऐसे बनती है कोई वैक्सीन
इंसानी शरीर में ख़ून में श्वेत रक्त कणिकाएं (White Blood Cells) होती हैं। यह हमारे रोग प्रतिरोधक तंत्र को मजबूत करती है। यह बिना शरीर को नुक़सान पहुंचाए वैक्सीन के ज़रिए शरीर में बेहद कम मात्रा में वायरस या बैक्टीरिया डाल दिए जाते हैं। जब शरीर का रक्षा तंत्र इस वायरस या बैक्टीरिया को पहचान लेता है तो शरीर इससे लडऩा सीख जाता है। इसके बाद अगर इंसान असल में उस वायरस या बैक्टीरिया का सामना करता है तो उसे जानकारी होती है कि वो संक्रमण से कैसे निपटे। दशकों से वायरस से निपटने के लिए जो टीके बने उनमें असली वायरस का ही इस्तेमाल होता आया है।
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35 अरब तक का खर्च आता है
एक टीके को मानव उपयोग के लायक बनाने में आमतौर पर वर्षों का समय लगता है। एक अनुमान के अनुसार एक महामारी संक्रामक रोग की वैक्सीन पाने के लिए प्री-क्लिनिकल स्टेज से बड़े पैमाने पर वैक्सीन के परीक्षण और फिर उत्पादन की लागत करीब 25 अरब से 35 अरब (319 मिलियन और 469 मिलियन डॉलर) के बीच आती है। यह लागत और जोखिम कोरोना वायरस में और बढ़ गए हैं क्योंकि सामान्य लंबी और सतर्क प्रक्रिया के लिए अभी वैज्ञानिकों के पास समय नहीं है।

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